संजय द्विवेदी: पिछले एक महीने से देश की सीमा पर भारतीय सेना के जवान शहीद हो रहे हैं लेकिन एक भी नेता उनके घरों में नही गया.. जबकि आज एक सैनिक ने आत्महत्या कर ली तो मोदी सरकार पर निशाना बनाने के लिए नेताओं ने अपनी दुकाने सजा ली
वन रैंक वन पेंशन (OROP) मुद्दे पर पूर्व सैनिक रामकिशन ग्रेवाल की खुदकुशी के बाद कांग्रेस और AAP इस मौके को भुनाने में लग गए हैं। ग्रेवाल के परिजनों से मिलने के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को पुलिस ने तिलक मार्ग थाने में दोबारा हिरासत में ले लिया था जहां से कुछ देर पहले उन्हें छोड़ दिया गया है। वहींं दूसरी तरफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी लेडी हॉर्डिंग अस्पताल से बाहर निकलने के बाद हिरासत में ले लिया गया है। वहीं जी न्यूज के पत्रकार रोहित सरदाना ने सैनिक की खुदकुशी पर हो रही राजनीति पर निशाना साधा है।
रोहित सरदाना ने अपनी फेसबुक अकाउंट पर लिखा, ‘पूर्व सैनिक रामकिशन ने वन रैंक वन पेंशन के मामले पर नाराज़ हो कर जान दे दी। युद्ध के मुहाने पर खड़े एक देश के सैनिकों का मनोबल तोड़ने वाली इससे बड़ी बात नहीं हो सकती. तसल्ली की बात ये है इस देश के बड़े बड़े नेता राम किशन को इंसाफ़ दिलाने के लिए अस्पताल के दरवाज़े से ही लाइनें लगा कर खड़े हो गए।
बहुत दिन नहीं हुए, कुरूक्षेत्र के अंटेहड़ी गांव के रहने वाले मंदीप के शरीर को पाकिस्तानी फौज ने क्षत विक्ष कर दिया था। तिरंगे में लिपट कर मंदीप का शव उसके गांव पहुंचा। जो बड़े नेता लाइन लगा कर राम किशन की आत्महत्या पर शोक जता रहे हैं, उनमें से एक को भी मंदीप के घर जाने की फुर्सत नहीं मिली।
पिछले दस दिनों में एक के बाद एक शहीद सैनिकों के पार्थिव शरीर, ऐसे ही तिरंगे में लपेट कर घर भेजे गए हैं.। राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। किसी के यहां कोई सांसद या मंत्री पहुंच गया तो पहुंच गया, नहीं भी पहुंचा तो गांव वालों ने नम आंखों से श्रद्धांजलि दे दी। जो बड़े नेता लाइन लगा कर राम किशन की आत्महत्या पर गुस्सा दिखा रहे हैं, उनमें से एक को भी किसी सैनिक के अंतिम संस्कार में जाने का समय नहीं मिला।
रामकिशन जी के बेटे के साथ फोन पर उनकी आखरी बातचीत टीवी चैनलों पर चल रही है। क्या रामकिशन जी के साथ एक भी ऐसा आदमी नहीं था जो उन्हें ज़हर खाने से रोक लेता? क्या उनमें से किसी ने इतना अपनापन नहीं दिखाया कि समय रहते उनको अस्पताल ही पहुंचा देता ? या कि उनकी तैनाती ही इस लिए हुई थी कि आत्महत्या ‘सक्सेसफुल’ हो जाए, ये भी जांच का विषय है।
दिल्ली के बाहर राजनीतिक ज़मीन तलाश रहे अरविंद केजरीवाल की बेसब्री समझ में आती है। उनकी पार्टी के बड़े बड़े नेताओं के सामने गजेंद्र सिंह ने खुद को फांसी लगा ली और भाषण चलते रहे थे। लेकिन कांग्रेस ? वो क्या लोगों को ये समझाने के लिए मैदान में कूद पड़ी कि ‘खून की दलाली’ असल में क्या होती है ?