राजेश तिवारी : आजकल बहुत से मैसेज आ रहे हैं कि मंदी हो गई मंदी। दोस्तों आप अपने आसपास के माहौल को देखकर अपने दिलो दिमाग से पूछिए कि वास्तव में मंदी है कि एक षड्यंत्र के तहत पूरे भारत में यह फैलाया जा रहा है कि मंदी का दौर चल रहा है। मैं उन मित्रों से कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूं जो सुबह शाम यही चिल्लाते रहते हैं कि मोदी ने देश में मंदी का दौर ला दिया है कृपया शांत मन से सोचिए और उत्तर देने का प्रयास कीजिए।
- मंदी है तो, किसने अपना 20 हजार का स्मार्टफोन फोन बेचकर बटन वाला फोन लिया?
- मंदी है तो, किसने अपनी बड़ी कार बेचकर छोटी कार खरीद ली?
- मंदी है तो किसने अपने बच्चों को महंगे स्कूल से हटाकर सरकारी स्कूल में लगवाया है?
- मंदी है तो किसने होटलों से खाना मंगवाना बन्द कर दिया है?
- मंदी है किसने मल्टीप्लेक्स में फिल्में देखना बन्द कर दिया है?
- क्या आपने मंदी के चलते हुए कुछ ऐसे काम करने बंद कर दिए या खाना बंद कर दिया जो आप से पहले आप कर रहे थे या खा रहे थे
मंदी का रोना मत रोइए, यूं कहिए ईमानदारी से कमाने में मेहनत ज्यादा करनी पड़ रही है ।
अजय अग्रवाल जी ने बहुत सही समझाया की मंदी किसे कहते हैं? जब घोटालें करनें का मौका ना मिले, जब उपरी आमदनी बंद हो जाए, जब सीबीआय और अदालते बिकना बन्द हो जाय, मिडिया भय के कारण बिक ना सके, जब पूर्व वित्त और गृहमंत्री जेल में फिट हो जाये, जब पत्थर फैंकने के लिए पत्थरबाज ना मिले, जब सरकार किसी भी प्रभावशाली व्यक्ति की अनुपातहीन संपत्ति जब्त कर ले, जब सरकारी बैंके सख्ती से लोन वसूली करने लगे, जब बिना जमानत और आवश्यक कागजात के बिना लोन मिलना बंद हो जाय, जब हर बिक्री और सेवा पर बिना टैक्स के धंधे होना बंद हो जाए, जब सभी प्रकार की चोरी पर अंकुश लगना शुरू हो जाए, जब हर बडे ट्रांजेक्शन की निगरानी की जाए, जब हर खरीद बिक्री का बिल लेना देना आवश्यक हो जाए, जब हर सरकारी फंड के जमा खर्च की निगरानी होने लग जाए और *ऐसे सभी राष्ट्रहित के काम जिस से चोरी की गुंजाइश ना रह जाए ऊसे मंदी कहते है।