जगदीश भाटी : क्या यह व्यक्ति राष्ट्रपिता कहलाने के योग्य है? मुझे तो लगता है कि यह व्यक्ति इंसान कहलाने के योग्य भी नहीं है। लेखक गुरुदत्त की पुस्तक “विश्वासघात” में मोहनदास गांधी का ये किस्सा मौजूद है, कई अन्य जगहों पर भी गांधी का ये किस्सा मौजूद है एक बार एक वाल्मीकि बस्ती में मंदिर में गाँधी कुरान का पाठ करा रहे थे. तभी भीड़ में से एक दलित औरत ने उठकर गाँधी से ऐसा करने को मना किया. गाँधी ने पूछा .. क्यों?
तब उस औरत ने कहा कि ये हमारे धर्म के विरुद्ध है, गाँधी ने कहा…. मै तो ऐसा नहीं मानता , तो उस औरत ने जवाब दिया कि, “हम आपको धर्म में व्यवस्था देने योग्य नहीं मानते आप कोई धर्मगुरु या ऋषि नहीं हो” गाँधी ने कहा कि यहाँ उपस्थित लोगों का मत ले लिया जाय, चूँकि वाल्मीकि बस्ती में गांधी अपने चले चपाटियों के साथ गए थे, वाल्मीकि लोगो से उनकी संख्या अधिक थी जाहिर है मत में गांधी जीत जाते, औरत ने जवाब दिया कि क्या धर्म के विषय में वोटो से निर्णय लिया जा सकता है.
गाँधी बोला कि आप मेरे धर्म में बांधा डाल रही हैं.
औरत ने जवाब दिया कि आप तो करोडो हिन्दुओ के धर्म में नाजायज दखल दे रहे हैं.
गाँधी बोला ..मै तो कुरान सुनूंगा .
औरत बोली …मै इसका विरोध करुँगी.
और तभी औरत के पक्ष में सैकड़ो वाल्मीकि दलित नवयुवक खड़े हो गए.और कहने लगे कि मंदिर में कुरान पढवाने से पहले किसी मस्जिद में गीता और रामायण का पाठ करके दिखाओ तो जाने.
विरोध बढ़ते देखकर गाँधी ने अंग्रेजी पुलिस को बुला लिया. गांधी के कहने पर वाल्मीकि हिन्दुओ को पुलिस ने पीटा, और विरोध करने वालों को पकड़ कर ले गयी .और उनके विरुद्ध दफा 107 का मुकदमा दर्ज करा दिया गया . दरअसल उन गांधी और अंग्रेजो के बीच बहुत ही मधुर सम्बन्ध भी थे और इसके पश्चात गाँधी ने पुलिस सुरक्षा में उस मंदिर में कुरान पढ़ी, ये था गांधी का सेकुलरिज्म, जिसमे तुष्टिकरण मुस्लिमो का और शोषण हिन्दुओ का
NOTE : जो लोग मोहनदास गाँधी को अहिंसा का प्रतिक बताते है वो मक्कार झूठे है क्यूंकि मंदिर में कुरआन पढ़वाने के लिए मोहनदास ने हिन्दुओ के खिलाफ हिंसा करवाई थी ! इसी मोहनदास ने बंगाल मे कई हिन्दुऔ को मरवाया था !
इसी मोहनदास ने बंटवारे के समय लाखों हिन्दु व सिक्खों को कटवाने में मौन स्वीकृति दी थी ! इसी मोहनदास ने दिल्ली के जामा मस्जिद में पाकिस्तान से आये लाखों हिन्दु सिक्ख शरणार्थीयों को जाड़े की रात मे बाहर खदेड़वाया था ! जरा भी दया नहीं आयी जबकि खुद मुस्लिम मौलानाऔ ने हिन्दुऔ को ठहराया था, इन्होने जाकर बाहर निकाला था, फिर ये अहिंसा परमो धर्म के अधुरे गीता-श्लोक को गांधी से जोड़कर ये इनकी बपौती समझकर क्यों हमें गुमराह किया जाता रहा है ?
और गाँधी को महान बताने वाले इतिहासकार अपनी किताबों में इस किस्से को भी जगह क्यों नहीं दें ? होना तो ये भी चाहिये था !
बंधुओं ! क्या ऐसे होते है राष्ट्रपिता ! मै तो नहीं मानता गांधी को राष्ट्रपिता ! क्या आप मानते है ? नहीं ना, तो क्यों नहीं हर किताब पर इनके नाम को साथ लिखा ये टाईटल हटा दिया जाय ?? काहे का राष्ट्रपिता ??
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