विजय कुमार दीक्षित ; हम अकर्मण्यता की सभी सीमाएँ लाँघ चुके हैं क्या, हम अपने घर तक सिमट कर रह गए हैं क्या, सिर्फ हमारी सोंच ही घर के बाहर जा पाती है ऐसा क्यों …..? हमारी सोंच के कुछ उदाहरण जैसे ..
मन्दिर-सरकार बनवाए।
गाय-सरकार बचाए।
बच्चियों को- सरकार बचाए।
हमारी_गरीबी- सरकार मिटाए।
कोरोना महामारी से भी सरकार ही बचाये
हमें बैठे बैठे सरकार खिलाए।
घर से बुलाकर सरकार नौकरी दे आदि। कहने का अर्थ हम कुछ भी न करें।
हम 100 करोड़ भारतीय कितने लाचार हैं …..?
यह लाचारी आयी कहाँ से, इस लाचारी को हमारा भाग्य किसने बना दिया, हमे कुछ बिंदुओं पर विचार करने की आवश्यकता है जैसे सब कुछ सरकार करे, हमारी कोई जिम्मेवारी नहीं है ऐसा क्यों…….? इसी गैरजिम्मेदाराना_सोंच की वजह से हम यह नहीं कह पा रहे कि यह राष्ट्र_हमारा है तो इसकी चिंता भी हम ही करेंगे।
जनता की इस कायराना सोच को समझने के लिए हमें राजनीतिज्ञों के द्वारा किए जा रहे आवाहनों को संज्ञान में लेना पड़ेगा, भारत के सभी राजनीतिक दल सरकार से मांग करते हुए पाए जा रहे हैं कि जनता की जेब में सब कुछ फ्री में डाल दो, जबकि फ्री पाने और देने की सोंच भारतीय नहीं है यह राष्ट्र विरोधी सोच है जो विदेशी साजिशकर्ताओं के द्वारा इन भारतीय नेताओं को फ्री में दी गई है।
जो हमारे नागरिकों को नाकारा व धीरू बना रही है जबकि उन्हें स्वावलंबी व आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ही वर्तमान भारत अपने कदम बढ़ा रहा है, राजनीति की इस साजिश का संज्ञान लेकर हम सब यह संकल्प लें कि अब भारत भूमि पर …
राजनीति_नहीं
सिर्फ_राष्ट्रनीति
को ही अंगीकार करेंगे, स्वीकार्य करेंगे तभी हमारे मन मस्तिष्क में यह भाव उत्तिष्ठ हो सकेगा कि यह राष्ट्र हमारा है तो इसके प्रति जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ हमारी ही है हम इस जिम्मेदारी को किसी भी दशा में पूरा करेंगे।।
।।। भारत माता की जय।।।