वरुण : कभी इतिहास के पन्नों में नदियों, झरनों और सुंदर झीलों से सुसज्जित प्रसिद्ध वसुंधरा भारत के कई हिस्से आज पानी की भीषण कमी की त्रासदी से गुजर रहे हैं l इसके कई कारण है परंतु सबसे प्रमुख है की हमारा अपनी संस्कृति, तौर-तरीकों और जीवन पद्धति में औद्योगीकरण के प्रभाव के अंतर्गत नकारात्मक परिवर्तन l
अगर भारतीय सभ्यता के शुरुआत से लेकर के आज तक के इतिहास पर नजर डाली जाए तो हम पायेंगे कि हमारे जीवन के तौर तरीके, संस्कृति और सभ्यता में विशेषत:, ग्रामीण जीवन में तालाबों, झीलों एवं कुओं का खास स्थान था l इसका कारण यह था कि हमारे पूर्वज यह बात समझते थे, की भारत में वर्षा इतनी मात्रा में होती है कि अगर वर्षा के जल का सही प्रकार से संग्रह करके सदुपयोग किया जाए तो यह हमारी सिंचाई से लेकर के औद्योगिक जरूरत और रोजाना जीवन में जल की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त है l
हमारी संस्कृतिक कथाओं, कहानी और किस्सों के जरिए भी उन्होंने आने वाली पीढ़ियों को इसी कारण कुआं, तालाबों, झीलों और झरनों की पवित्रता और महत्व को समझाने का पुरजोर प्रयत्न किया l परंतु पिछले कुछ सालों से यह देखने में आ रहा है औद्योगिकरण और पश्चिमीकरण के दौर मे तालाबों, झीलों एवं कुआं का स्थान बड़े-बड़े समर्सिबल यंत्रों और धरती के गर्भ से भूमिगत जल के बाहर निकालने वाली मशीनों ने ले लिया है l
इसका दुष्परिणाम यह हुआ है कि एक तरफ तो तालाबों कुओं और झीलों पर निर्भरता खत्म होने के कारण यह बहुमूल्य धरोहर हमारे जीवन से खत्म हो रही है, जिसके परिणाम स्वरूप धीरे धीरे कुआं, तालाबों आदि का ग्रामीण जीवन से खात्मा होता जा रहा है l और दूसरा मशीनीकरण के नशे में चूर आधुनिक मानव भूमिगत जल का अंधाधुंध दोहन करके धरती के गर्भ से भी जल को समाप्त कर रहा हैं l
वह यह समझने में असमर्थ प्रतीत हो रहा है कि भूमिगत जल इतना नहीं है कि वह सिंचाई, औद्योगिक और रोजाना जीवन की सभी जरूरतों को पूरा कर सकें l यह भी आशंका है कि उन क्षेत्रों में जहां पर नदियां , नालो, झरनों आदि की कमी है उन क्षेत्रों में अगर भूमिगत जल खत्म हो गया और वर्षा का पानी संयोजित करने का समय रहते हैं उचित प्रबंधन भी नहीं कर सके तो आने वाले कुछ ही वर्षों में वहां जल की ऐसी भीषण कमी पैदा होगी कि पूरा जीवन ही संकट में आ जाएगा l इसके लिए जरूरत है सरकार और समाज ऐसा प्रबंधन करें कि हम उन क्षेत्रों में वर्षा के पानी का पूरी तरह सदुपयोग कर सकें l
इसके लिए एक समाधान तो गांवों में तालाबों झीलों और कुओं का निर्माण है और दूसरा उपाय ऐसी व्यवस्था एवं प्रबंधन करना है कि वर्षा का पानी उचित प्रकार से संयोजित किया जा सके एवं प्रयोग में लाया जा सके ताकि भूमिगत जल का दोहन खत्म किया जा सके l इसके लिए स्कूलों के पाठ्यक्रम से लेकर के विश्वविद्यालय के शोध तक इस विषय पर भारतीय संदर्भ, परिस्थितियों, भूगोल, प्राचीन तौर-तरीकों आदि को ध्यान में रखते हुए काम करने की आवश्यकता है