मत्स्य पुराण में वर्णन है कि जब प्रलय आता है, युग का अंत होता है. पृथ्वी जलमग्न हो जाती है और सब कुछ डूब जाता है….. उस समय भी
चार वटवृक्ष नहीं डूबते. उनमें सबसे महत्वपूर्ण है वह वटवृक्ष, जो
प्रयागराज नगरी में यमुना के तट पर अवस्थित है…. मान्यता है कि ईश्वर इस
वृक्ष पर बालरूप में रहते हैं और प्रलय के बाद नई सृष्टि की रचना करते हैं. अपनी इसी विशिष्टता के कारण यह वटवृक्ष #अक्षयवट के नाम से जाना जाता है.
ऐसा वट जिसका क्षय नहीं हो सकता..
बीते 10 जनवरी, 2019 को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस
वटवृक्ष को हिन्दू श्रद्धालुओं के लिये खोल दिया है…. इसके साथ ही
सरस्वती कूप में देवी सरस्वती की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी की गई…
जैन मत में यह मान्यता है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी ने इसी वटवृक्ष के
नीचे तपस्या की थी….बौद्ध मत में भी इस वृक्ष को पवित्र माना गया है….
वाल्मीकि रामायण और कालिदास रचित ‘रघुवंश’ में भी इस वृक्ष की चर्चा है…
आशा और जीवन का संदेश देता यह वटवृक्ष भारतीय संस्कृति का एक प्रतीक है…. किंतु प्रश्न है कि इतने महत्वपूर्ण वटवृक्ष से हिंदुओं को 425 वर्षों से
दूर क्यों रखा गया था?
वास्तव में यह वृक्ष जिस तरह सनातनता का विचार देता है, वह अत्यंत विपरीत समयकाल
में भी हिंदुओं को भविष्य के लिये आशा का प्रतीक था… अकबर इसे एक चुनौती
मानता था… इसीलिए उसके आदेश पर वर्षों तक गर्म तेल इस वृक्ष के जड़ों में डाला गया लेकिन यह वृक्ष फिर भी नष्ट नहीं हुआ…. अकबर के बेटे जहाँगीर
के शासनकाल में पहले अक्षयवट वृक्ष को जलाया गया. फिर भी वृक्ष नष्ट नहीं
हुआ…. इसके बाद जहाँगीर के आदेश पर इस वृक्ष को काट दिया गया. लेकिन जड़ो से फिर से शाखायें निकल आई…. जहाँगीर के बाद भी मुगल शासन में अनेकों
बार इस वृक्ष को नष्ट करने का प्रयास हुआ….. लेकिन यह वृक्ष हर बार
पुनर्जीवित होता रहा. ऐसा प्रतीत होता है मानो यह पवित्र वट वृक्ष बारम्बार पुनर्जीवित होकर इस्लामिक आक्रांताओं को यह कठोर संदेश देता रहा कि तुम
चाहे जितने प्रयास कर लो किन्तु सनातन धर्म को समाप्त नहीं कर सकोगे.. .
साथ ही अपने आस्तित्व को मिली हर चुनौती से सफलतापूर्वक निबटकर यह
सनातनधर्मियों में नवीन आशा का संचार करता रहा.
मुगलों के बाद यह किला अंग्रेजों के पास रहा और उन्होंने भी मुगलों द्वारा लगाए
प्रतिबन्ध को जारी रखा.. स्वतंत्रता के पश्चात यह किला भारतीय सेना के
नियंत्रण में है. यहाँ आम श्रद्धालुओं का आना सम्भव नहीं था….श्रद्धालुओं और सन्तों की लगातार मांग के बाद भी किसी सरकार ने इस वृक्ष के दर्शन के
लिए सुलभ बनाने में रुचि नहीं दिखाई… किन्तु उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री
#योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से यह सम्भव हो सका है जिसके लिए वह साधुवाद
के पात्र हैं..।
धन्यवाद मुख्यमंत्री व गोरक्षनाथ पीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ महाराज जी…