हमारा राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’… एक ऐसा गीत है, जिसके नारे बुलंद करते हुए हज़ारों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने ख़ून की नदियां बहा दीं।
नौजवानों में जोश भर देने वाला यह गीत 7 नवंबर 1876 को बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था। बंगाल विभाजन से लेकर तमाम क्रांतिकारी आंदोलनों में वंदे मातरम् देशभक्ति का मंत्र बन गया।
1882 में इस गीत को आनन्दमठ उपन्यास का हिस्सा बना लिया गया। यह उपन्यास बंगाल के किसानों की बदहाली, भुखमरी और 1771 में हुए संन्यासी आन्दोलन के इर्द-गिर्द लिखा गया था।
इसके बाद वन्दे मातरम जनमानस की रगो में जा दौड़ा। 1905 में बंग-भंग के बाद आन्दोलकारियों की जमा भीड़ में वन्दे मातरम् का नारा गूंज रहा था।
यह पहली बार था जब इतने लोगों ने खुद से ही वन्दे मातरम् को धारण किया। वंदे मातरम महज दो शब्द नहीं, वंदे मातरम सिर्फ एक गीत नहीं, यह हमारी आजादी की लड़ाई का सूत्रवाक्य है।