नीरज आर्य जन्धेडी : बैरिस्टर का परीक्षा पास कर सावरकर ने डिग्री के उस अंडरटेकिंग पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था जिस पर लिखा था ” डिग्री प्राप्त होने के बाद मैं ब्रिटीश सरकार का वफादार रहूंगा ” जिसके कारण उन्हें बैरिस्टर की डिग्री नही मिली…लेकिन गांधी और नेहरू ने इसी अंडरटेकिंग पर हस्ताक्षर कर बैरिस्टरी की डिग्री प्राप्त की और प्रैक्टिस की और देशभक्त भी कहलाये.. ब्रिटिश हुकूमत के विरोध करने पर गांधी और नेहरू भी जेल गए और जेल में भोजन से लेकर रहन सहन में विशेष सुविधा उन्हें ब्रिटिश हुकूमत द्वारा जेल में दी गयी जबकि सावरकर हिंदुस्तान के जनता के लिए बहुत प्रिय थे अतः ब्रिटिश हुकूमत के लिए खतरनाक माने गए.. इन्हें कालापानी दिया गया जो सेल्युलर जेल के नाम से अंडमान में था.. वह 11 वर्षो तक कोल्हू पेरते रहे.. लेकिन ब्रिटिश हुकूमत के साथ अपने स्वाभिमान के खिलाफ कभी समझौता नही किया..” लेकिन सेल्युलर जेल में उनके साथ हो रहे अन्याय पर ब्रिटिश हुकूमत के पास जरूर लिखा कि जघन्य अपराध करने वाले अनेक उनके साथ D श्रेणी में सजा भुगत रहे अनेक कैदियों को रिहा किया जा रहा है लेकिन मुझे क्यो नही..? अतः दया कर कानून और ब्रिटिश संविधान के अनुसार मुझे भी अन्य के भांति रिहा किया जाय या भारतीय जेल में भेजा जाय ” इनके विचारधारा के विरोधी ने इस पत्र को अंग्रेजो से क्षमा याचना की बात कहते है..लेकिन उन्हें इस अनुरोध के बाद भी नही छोड़ा गया….जब सावरकर की तबियत काफी खराब हो गई तो अंग्रेजी हुकूमत उन्हें जनांदोलन के भय से छोड़ा.. जब वह भारत आये तो गांधी जी और नेहरू की चौकड़ी स्वतंत्रता संग्राम के शीर्ष पर थी.. और असली सेनानी थे जिन्होंने अपना जीवन निच्छवर किया था एक साजिश के तहत वैसे सेनानी हाशिये से भी बाहर कर दिए गए थे… किसी को उनके देशभक्ति पर संदेह है तो सेलुलर जेल ,अंडमान में जा कर उनके बारे में दस्तावेज पढ़े… देश के अनेक देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी का दुर्भाग्य है जो ब्रिटिश हुकूमत और कम्युनिस्ट इतिहासकारो के दुष्प्रचार के केंद्र बने…. यह देश का दुर्भाग्य ही है जो सावरकर को ‘ वीर ‘ नही कहने की दलील देते है…
अनेक अपने को उच्च कोटि के जर्नलिस्ट और परिष्कृत कहे जाने वाले राजनीतिक लोगो ने सावरकर के बारे भले न पढ़ा होगा लेकिन अंग्रेजी हुकूमत और कांग्रेस के द्वारा सावरकर के चरित्र मलिन करने की दुष्प्रचार को ही अनुशरण करते रहे है.. मात्र इसलिये की 11 वर्षो के कालापानी की सजा काटने के बाद गोलवरकर जी ने उनका देश के प्रति समर्पण देख राष्ट्रीय सेवक संघ में आने का प्रेरित किया और उन्होंने स्वीकार भी किया.. उनकी सम्मान जनता के बीच कम करने के लिये उन्हें गांधी जी के हत्या कांड में भी कांग्रेसी सरकार ने ग्रिफ्तार किया लेकिन हर बार न्यायालय से निर्दोष साबित हुए… हिन्दू के हित के लिये समर्पित सावरकर को साम्प्रदायिक होने का तमगा बार बार लगाने की कोशिश की गई जबकि वे देश के बटवारा के कट्टर विरोधी थे…. उनके साथ ब्रिटिश हुकूमत के बाद कांग्रेस ने भी अन्याय ही किया जो अत्यंत दुःखद ही है..