श्वेता चक्रवर्ती से प्रश्न – दीदी युवाओं में बढ़ती नशे की लत के पीछे कारण क्या है? इससे बचाव के उपाय बताएं?
उत्तर – आत्मीय भाई, कुछ निम्नलिखित कारण युवाओं को नशे की ओर खींचते हैं:-
मनुष्य की प्रकृति कुछ इस तरह बनी हुई है कि वो सुख की चाह करता है और दुःख से छुटकारा पाना चाहता है, जब भी वो असफ़ल होता है या दुःखी होता है, तो वर्तमान परिस्थिति से पलायन करना चाहता है भूलना चाहता है। दो मार्ग है उसे दुःख को कुछ क्षण भुलाने का एक है अध्यात्म और दूसरा नशा। अध्यात्म तो समस्या का समाधान देता है, लेकिन यदि बच्चा अध्यात्म की शरण मे नहीं है तो वो नशा चुनेगा।
नशे से वो कुछ क्षणों के लिए वर्तमान से दूर हो जाता है, अतः बार बार भूलने के लिए बार बार नशा करता है। बच्चे के घर मे माता पिता जब अत्यधिक झगड़ते हो या उन्हें समय नही देते तो भी बच्चे नशे की तरफ झुकते है।
मनुष्य के अंदर बंदर के समान नक़लची स्वभाव होता है, मन जिसे पसन्द करता है उसका नकल करने लगता है। उदाहरण माता के चाल चलन और साज सृंगार की नकल लड़कियां और पिता के चाल चलन व्यवहार और नशे की नकल बच्चे स्वयंमेव करने लग जाते है। प्रिय दोस्त की नकल करते हुए भी नशे के प्रति झुकाव होता है।
फिल्में और टीवी सीरियल नशे की ओर युवाओं को प्रेरित करते हैं। वो बच्चों को सिखाते है कि दुःख है तो नशा करो, ख़ुश हो तो नशा करो, पार्टी है तो नशा करो, कोई भी अवसर हो नशा करो। बच्चो को लगता है हीरो बोल रहा है और हीरोइन बोल रहे है तो यह ज़िंदगी जीने का सबसे बेहतर तरीका होगा। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य कोकोकोला पेप्सी का विज्ञापन देने वाले इसे नहीं पीते, शराब और नशे का विज्ञापन करने वाले खुद इसका सेवन नहीं करते। नशे का व्यापारी और कार्यकर्ता इनका सेवन नहीं करते।
बच्चे बुरी संगति में पड़कर भी दोस्तों के दबाव में नशा करना शुरू कर देते है।
कभी कभी बच्चो के अंदर की जिज्ञासा और कौतूहल भी उन्हें नशे के प्रति आकर्षित करता है।
कुछ पढ़े लिखे मूर्खो ने नशे को हाई फाई सोसायटी का स्टेटस सिंबल मान लिया है। कॉरपोरेट में बैठे नशेड़ियों ने इसे और ज्यादा बढ़ावा दिया है।
नशा युवा पीढ़ी को बर्बाद कर रहा है, सरकार इसे रोकती क्यों नहीं।
देश के 80% कानून बनाने वाले नेता और नौकरशाह स्वयं नशेड़ी है, अतः जो ख़ुद ही गलत कर रहा है वो भला उसे रोकने का प्रावधान क्यूँ लाएगा? जनता मरती है तो मरने दो। नोट छापने में व्यस्त है।
नशे के समान से टैक्स सरकार को जितना मिलता है, उससे दुगुना-तिगुना नशे के कारण लोगो के मरने, विभिन्न बीमारियों और एक्सीडेंट्स में सरकार का खर्च होता है। फिर भी सरकार टैक्स की लालच में नशा बन्द नहीं करती।
नशे के व्यापारी विभिन्न राजनीतिक पार्टियों को चुनाव लड़ने के लिए मोटा फंड सिर्फ इसलिए देते है, जिससे नशे के व्यापार में सरकार रोक न लगा सके।
नशे के व्यापारी समस्त नौकरशाहों को भी भरपूर पैसा खिलाते है, जिससे उनका धंधा चलता रहे।
फ़िर नशा रुकेगा कैसे?
जनजागृति से नशा रुकेगा, बचपन से घर मे बच्चो को अध्यात्म से जोड़कर अच्छे संस्कार दिए जाएं, उनके मन मजबूत बनाये जाएं। जिससे समाजिक दबाव को वो झेल सकें, और नशा न करें। सँस्कार से मनुष्य चंदन बन जाता है- चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग। कुसंग का प्रभाव आध्यात्मिक संस्कारी व्यक्ति पर नहीं पड़ता।
जगह जगह यज्ञादि अनुष्ठान और जनजागृति कैम्प लगाकर योग प्राणायाम मंन्त्र चिकित्सा से लोगों का मनोबल मजबूत करें जिससे नशा उनका छूट जाए।
बच्चे घर पर हड़ताल कर दें, माता पिता को नशा न करने दें।
जब डिमांड ही नहीं होगी तो सप्पलाई करने वाले स्वतः गायब हो जाएंगे। जैसे गधे के सर पर से सींग।
केवल जनजागृति से मतदाता जागरूक होकर सही नेता चुने और उसे तभी वोट दे जब नशे की दुकानें बंद हो। तो राम राज्य आ जायेगा।
हमारे देश मे प्रति वर्ष हज़ारों मौतें नशे के कारण हो रही है, प्रति दिन नशे के कारण कई जाने जाती है। अखिलविश्व गायत्री परिवार के व्यसनमुक्ति अभियान से जुड़िये और व्यसनमुक्त और योगयुक्त भारत बनाइये
श्वेता चक्रवर्ती ,अखिलविश्व गायत्री परिवार