चंडीगढ़, 26 मई आखिरकार जीवन का उद्देश्य उसे जीना और इष्टतम अनुभवों को हासिल करना, नए और समृद्ध अनुभवों को उत्सुकता से और निर्भर होकर आजमाना है।’’ इसलिए अपने लिए एक नई राह बनाएं, ताकि अपने जीवन को भरपूर जी सकें। गुरुनानक ने कहा था-‘‘मनुष्य सांसों से बना है, एक बार में एक सांस। अगर सांस आती है तो हम मनुष्य हैं, वरना मिट्टी के पुतले।’’ सांस की तरह हमारे भीतर अनेक शक्तियां हैं, जो हमें बचा सकती हैं, हमें समस्याओं के समाधान दे सकती है। लिनेश सेठ ने लिखा है-‘‘जीवन के साथ एक सामंजस्यपूर्ण संबंध स्थापित करने का सबसे सरल तरीका है-अपने श्वास के साथ एक पे्रमपूर्ण, खुशनुमा संबंध विकसित करना।’’ एक और शक्ति संकल्प की शक्ति है। अनावश्यक कल्पना मानसिक बल को नष्ट करती है। लोग अनावश्यक कल्पना बहुत करते हैं। यदि उस कल्पना को संकल्प में बदल दिया जाए तो वह एक महान शक्ति बन जाए। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने सैक्टर 18सी गोयल भवन 1051 मे में कहे।मनीषीसंत ने आगे कहा एक विषय पर दृढ़ निश्चय कर लेने का अर्थ है- कल्पना को संकल्प में बदल देना। यह संकल्प का प्रयोग करें तो वह बहुत सफल होगा। संकल्प एक आध्यात्मिक ताकत है। संकल्पवान व्यक्ति अंधकार को चीरता हुआ स्वयं प्रकाश बन जाता है। चंचलता की अवस्था में संकल्प का प्रयोग उतना सफल नहीं होता जितना वह एकाग्रता की अवस्था में होता है। हर व्यक्ति रात्रि के समय सोने से पहले एक संकल्प करे, उसे पांच-दस मिनट तक दोहराए, मैं यह करना या होना चाहता हूं, इस भावना से स्वयं को भावित करे, एक निश्चित भाषा बनाए और उसकी सघन एकाग्रता से आवृत्ति करे, ऐसा करने से संकल्प बहुत शीघ्र सफल होता है। मारग्रेट शेफर्ड ने यह खूबसूरत पंक्ति कही है-‘‘कभी-कभी हमें सिर्फ विश्वास की एक छलांग की जरूरत होती है।’’ इसी से व्यक्ति में आत्म विश्वास उत्पन्न होता है और इसी से एक समाधान सूत्र मिलता है कि- मेरी समस्याओं का समाधान कहीं बाहर नहीं है, भीतर है। ध्यान का प्रयोजन है- व्यक्ति में यह आत्मविश्वास पैदा हो जाए- जो मुझे चाहिए, वह मेरे भीतर है। यदि यह भावना प्रबल बने तो मानना चाहिए- ध्यान का प्रयोजन सफल हुआ है। ध्यान का अर्थ यही है कि हमारे शरीर के भीतर जो शक्तियां सोई हुई हैं, वे जाग जाएं। ध्यान से व्यक्ति में यह चेतना जगनी चाहिए-मुझमें शक्ति है, उसे जगाया जा सकता है और उसका सही दिशा में प्रयोग किया जा सकता है। शक्ति का बोध, जागरण की साधना और उसका सम्यग् दिशा में नियोजन- इतना-सा विवेक जाग जाए तो सफलता का स्रोत खुल जाए। मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया गलतफहमी किसी कांटे की तरह होती है चाहे वह चरित्र पर शक करना और जब वह आपके रिश्ते में चुभन पैदा करने लगती है, ये सब चरित्रहीनता के लक्षण होते है। चरित्रहीन कभी भी अपना विकराल रूप धारण कर सकती है ओर इसकी निशानियां रिश्तो मे भी छलकनी लगती है। यही कारण है कभी फूल लगनेवाला रिश्ता आपको खरोंचे देने लगता है। जो जोड़ा कभी एक-दूसरे पर जान छिडक़ता था, एक-दूसरे की बांहों में जिसे सुकून मिलता था और जो साथी की ख़ुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था, वो जब ग़लतफ़हमी का शिकार होने लगता है, तो रिश्ते की मधुरता व प्यार को नफऱत में बदलते देर नहीं लगती। ऐसे में अपने रिश्तें को टूटने से बचाने के लिए कुछ ऐसा करे। यह बात सही है कि बात करने के दौरान आपको कुछ ऐसा सुनने के लिए भी मिल सकता है जो आपको अच्छा ना लगे, पर आपको समस्या का समाधान करना है और इससे अच्छा तरीका कुछ भी नहीं है।