अमित तोमर, देहरादून : बहुत लोगो को यह लेख चुभेगा अतः आग्रह है धर्म और जात की काली पट्टी आंखों पर बांधने वाले यह ना पढ़े।
आज एक कथाकथित “सरकारी कट्टर हिन्दू” सनातन के पतन के लिए इस्लाम और ईसाइयों को दोषी बता रहा था। मैंने पूछा कि क्या कभी किसी वाल्मीकि भाई को डाइनिंग टेबल पर बैठ खाना खिलाया है या कभी किसी दलित भाई के घर जाकर जो बना है वो खाया है??
मेरा प्रश्न इस “कट्टर हिन्दू” भाई को बड़ा अटपटा प्रतीत हुआ, वो मुझे ताकने लगा शायद उसने सोचा होगा कि मैं उसकी तकरीर से सहमत हो मुस्लमानो और ईसाइयों को गाली दूंगा पर उसे मेरे प्रश्न से झटका लगा। वो बोला, “अमित जी हम समरसता की बात करते है और सभी को बराबर समझते है, हिन्दू हम सब एक है।” मैंने दोबारा प्रश्न दोहराया और गंभीर स्वर में पूछा, ” भाई साहब जो वाल्मीकि भाई रोज़ सुबह आपके आलीशान घर के बाहर बनी नाली में घुसकर उसे साफ करता है क्या वो हिन्दू नही है फिर क्या आपने उसे कभी नाश्ते की मेज पर साथ बैठ भोजन करने को बुलाया?” वो बोला, “यह क्या ऊल-जलूल प्रश्न है, वो गटर साफ करता है उसके साथ कैसे भोजन कर सकता हूँ?” मैंने कहा, ” वो गटर क्यो साफ करता है?” अब यह ‘सरकारी हिन्दू’ बिदकने लगा और बोला,”उसके पूर्वज भी यही करते थे, निश्चित ही उसने पिछले जन्म में बहुत पाप किया होगा जो उसे ऐसा हीन कुल मिला होगा।”
मैंने दूसरा प्रश्न दाग़ दिया,” भाई साहब चलो इसे छोड़ो पर यदि इसका बेटा पढ़-लिख कर अफ़सर बन जाये तो क्या अपनी बेटी का विवाह उससे कर दोगे?” इस प्रश्न को सुन ‘कट्टर हिन्दू’ इस कदर बौखला गया कि चेहरा तमतमा उठा और आवेश में बोला,” आप दे दोगे अपनी बेटी किसी हीन कुल में?” मैंने कहा, ” निश्चित ही यदि मेरी बेटी उसे चुनेगी तो विवाह कर दूंगा हर्ज़ क्या है, व्यक्ति कर्म से ब्राह्मण/क्षत्रिय/वैश्य/शुद्र होता है ना कि धर्म से।”
अब इस ‘कट्टर हिन्दू’ के पास कोई शब्द नही थे, उसका मुहँ बहुत छोटा हो गया, फक्क सफेद। निश्चित ही वो जान गया था कि सनातन धर्म के पतन का मुख्य कारण ना मुस्लमान है और ना ईसाई अपितु कारण है घिनोना जातिवाद जो युगों से तोड़ता आ रहा है।