श्री मोहन भागवत जी का उत्तर
लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा। ये सुनिश्चित करने के लिए दो-तीन बातें करनी पड़ेंगी। पुराने जमाने में जब घर के अंदर महिलाओं का बंद रहना निश्चित रहता था तब उसकी जिम्मेदारी परिवार पर रहती थी। लेकिन अब महिलाएं भी पुरूषों की बराबरी से बाहर आकर कर्तृत्व दिखा रही हैं और दिखाना चाहिए उन्होंने। तो उनको अपनी सुरक्षा के लिए भी सजग और सक्षम बनाना पड़ेगा। इसलिए किशोर आयु के लड़के और लड़कीयां दोनों का प्रशिक्षण करना पड़ेगा। किशोरी विकास, किशोर विकास। ये काम संघ के स्वयंसेवक कर रहे हैं क्योंकि महिला असुरक्षित कब हो जाती है, जब पुरूष उसकी ओर देखने की अपनी दृष्टि को बदलता है। इस पर बड़ी चर्चाएं चली हैं तो एक मीडिया की पत्रकार महिला बोल रही थी। मैं सुन रहा था। जब सजा हो गई थी, बलात्कारियों को कड़ी सजा हो गई थी सुप्रीम कोर्ट से। उसकी चर्चा चल रही थी। मैं बैठा था तो वो महिला कह रही थी कि केवल अपराधियों को सजा होने से काम नहीं चलता। मूल समस्या यह है महिलाओं को देखने की पुरुष की दृष्टि बदलनी पड़ेगी। और ये दृष्टि हमारी परम्परा में है। मातृवत परदारेषु। अपनी ब्याहता पत्नी छोड़कर बाकी सबको माता के रूप में देखना। ये अपना आदर्श है। उन संस्कारों को पुरुषों में भी जगाना पड़ेगा। इसलिए किशोर और किशोरी विकास का क्रम चले और महिलाओं आत्मसंरक्षण की कला सिखाने वाले क्रम भी बढ़ें। इसमें भी स्वयंसेवकों ने काम प्रारंभ किया है। तो बड़ी मात्रा में और स्कूल, कॉलेज की छात्राओं को इसका प्रशिक्षण देना और फिर प्रशिक्षण की स्पर्धाएं भी आयोजित करना पिछले वर्ष से ये उपक्रम शुरू हुआ है। देश के सब राज्यों में ये शुरू होगा आगे चलकर। संघ के स्वयंसेवक इसको करते हैं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ केवल शाखा चलाता है, कुछ नहीं करता। लेकिन संघ के स्वयंसेवक ये करते हैं तो विद्यार्थी परिषद के द्वारा यह उपक्रम शुरू किया गया है। और उसके बड़े-बड़े कार्यक्रम हो रहे हैं और यह प्रशिक्षण दिया जा रहा है। देशव्यापी ये कार्यक्रम वो चलाएंगे। अब कानून का डर अपराधियों में कम रहता है क्योंकि कानून एक हद तक चल सकता है। समाज के धाक संस्कारों का चलन इसका परिणाम ज्यादा होता है। कानून की यशस्विता समाज के मानस पर निर्भर करती है। लाल बत्ती है, लेकिन लाल बत्ती न तोड़ने वाला सामर्थ्य आ जाए तो लाल बत्ती का चलता है। इसलिए कानून तो कड़े से कड़े बनने चाहिए और उनका अमल ठीक से हो कर अपराधी को उचित सजा मिलनी चहिए। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती। लेकिन उसके साथ-साथ समाज भी इसकी नजर रखे। आंखों की शर्म हो लोगों में। समाज का वातावरण ऐसा हो जो अपराधों को बढ़ावा नहीं देता। ये हमारी जिम्मेदारी है। उस दृष्टि से ये संस्कार जागरण का पक्ष भी इन मामलों में उतना ही महत्व का है। हम देखते हैं कि कहीं-कहीं पांच, साढ़े पांच बजे के बाद महिलाएं बाहर जाती नहीं और कहीं-कहीं अपने देश में ऐसे इलाके हैं, ऐसे राज्य हैं जहां पर रात को भी सब अलंकार पहनकर महिला कहीं जाती है अकेली भी जाती है तो भी उसके मन में कोई भय नहीं है। ये परिणाम कानून का नहीं है, ये परिणाम वहां के वातावरण का है। उस वातावरण को हमको बनाना पड़ेगा, प्रयासपूर्वक। हम सबको उसके लिए काम करना पड़ेगा, वो करना चाहिए।