श्री मोहन भागवत जी का उत्तर
जाति व्यवस्था कहते हैं, उसमें गलती होती है। आज व्यवस्था कहां है वो अव्यवस्था है। कभी ये जाति व्यवस्था रही होगी, वो उपयुक्त रही होगी, नहीं रही होगी। आज उसका विचार करने का कोई कारण नहीं है वो जाने वाली है। जाने के लिए प्रयास करेंगे तो पक्की होगी। उसको भगाने के लिए प्रयास करने के बजाय जो आना चाहिए उसके लिए हम प्रयास करें तो ज्यादा अच्छा होगा। अंधेरे को लाठी मार-मार कर भगाएंगे अंधेरा नहीं जाएगा। एक दीपक जलाओ वो भाग जाएगा। एक बड़ी लाईन खींचो तो सारे भेद विलुप्त हो जाएंगे। यही संघ कर रहा है और हम मानते हैं कि सामाजिक विषमता का पोषण करने वाली सभी बातें, ‘लॉक स्टॉक एंड बैरल’ बाहर जानी चाहिए। हम विषमता में विश्वास नहीं करते। ये प्रत्यक्ष आचरण में आने वाली अफरा-तफरी है लेकिन वो करनी ही पड़ेगी। और उस पर हमने कदम बढ़ाया।
संघ का काम जैसे-जैसे बढ़ेगा और सर्वत्र पहुंचेगा, वैसे-वैसे संघ के कार्यकर्ताओं में अब ऊपर जाति का हमने निश्चित किया और अनुसूचित जाति के कितने लोग हैं हम पूछ रहे हैं, इसलिए उत्तर देना जरा कठिन हो रहा है। लेकिन आज की दृष्टि से देखें तो जिनको हम अनुसूचित जाति, जनजाति के मानते हैं उन बंधुओं का भी प्रमाण दिखने लगेगा। हम संघ में पूछते नहीं।
एक बार मैं सरकार्यवाह चुना गया, पहली बार। हमारे सहसरकार्यवाह सुरेश जी सोनी, उनकी नियुक्ति हो गई। तो मीडिया ने चलाया कि ये भागवत गुट की विजय हो गई लेकिन ओ.बी.सी. को रिप्रेजेंटेशन देना है इसलिए सोनी जी को रखा है। तो मैंने सोनी जी को पूछा कि सोनी जी आप ओ.बी.सी. में आते हैं क्या? तो उन्होंने थोड़ा-सा स्माइल कर दिया और उत्तर नहीं दिया। तो अभी-भी सोनी जी कहां आते हैं मैं नहीं जानता। ये संघ में वातावरण है। तो अगर हम इसी ढंग से बढ़ते हैं तो ये परिवर्तन होता है।
नागपुर में, मैं पढ़ रहा था, विद्यार्थी था। उस समय नागपुर संघ के लगभग सब अधिकारी एक ही जाति के थे, ब्राम्हण जाति के थे। लेकिन मैं नागपुर का प्रचारक बनकर 80 के दशक में जब वापस आया तो जगह-जगह जितनी बस्तियां थीं उस प्रकार की कार्यकारिणी बनी थी। इसलिए बनी थी कि हमारी शाखाएं बढ़ीं, हम उस बस्ती में पहुंचे, हमने काम बढ़ाया, स्वाभाविक उसमें से कार्यकर्ता तैयार हुए, वो आ गए। कोटा सिस्टम करेंगे तो जाति का भान रहेगा। सहज प्रक्रिया से सबको लाएंगे तो फिर जात नहीं रहेगी। सहज प्रक्रिया लाते समय लाने वालों के मन में ये भान रहना चाहिए क्योंकि स्वाभाविक प्रवृत्ति मनुष्य की अपने जैसे को पकड़ने की होती है। हमको अपने जैसे को नहीं पकड़ना है, सबको पकड़ना है। ये ध्यान रखकर अगर काम चलता है तो ऐसा होता है। 50 के दशक में आपको ब्राम्हण ही नजर आते थे। क्योंकि आप पूछते हो तो थोड़ा बहुत ध्यान में आता है कि जोन स्तर पर, प्रांत और प्रांत के ऊपर जोन, जोन स्तर पर सभी जातियों के कार्यकर्ता आते हैं। अखिल भारतीय स्तर पर भी अभी एक ही जाति नहीं रही। वो बढ़ता जाएगा और सम्पूर्ण हिन्दू समाज का संगठन जिसमें काम करने वालों में सभी जाति वर्गों का समावेश है। ऐसी कार्यकारिणी आपको उस समय दिखने लगेगी। मैंने कहा यात्रा लम्बी है लेकिन हम उस ओर आगे बढ़ रहे हैं ये महत्व की बात है।
घुमंतु जातियों के लिए हमने काम किया है। मैं मानता हूं कि स्वतंत्रता के बाद उनकी दखल लेकर काम करने वाले हम पहले होंगे। महाराष्ट्र में ये काम शुरू हुआ। और उसके चलते बहुत सारी बातें हुईं। उनको स्थिर करना, उनके बच्चों को शिक्षा में भेजना, शिक्षा प्राप्त करके वो समाज में आगे बढ़ें इसको देखना। उनकी जो परम्परा से आने वाली रूढ़ियां कुरीतियां हैं उसको हटाने का भाव उनके ही मन में उत्पन्न करके उसको गृहस्थ करना आदि सारी बातें करते-करते कार्य का परिणाम ऐसा हो गया कि पहले महाराष्ट्र सरकार ने और केन्द्र सरकार ने भी उनके लिए यानी अलग कमीशन बनाया है और वो पायलट प्रोजेक्ट हमारा चला है। यमगरवाडी नाम का स्थान है। वहां उसकी केन्द्रीयभूत जानकारी और कार्य का प्राथमिक स्वरूप आपको देखने को मिलेगा। जिनको जाना है जरूर जाइए। ये जो विदेशों में यात्रा करते हैं आप मनोरंजन के लिए, एक बार वहां की भी यात्रा कीजिए। कितने पापड़ बेलकर कार्यकर्ताओं ने इस समाज को बराबरी में लाने का प्रयास चलाया है। ये आप जान सकेंगे। उसको देखिए उस कार्य को अब अखिल भारत में जितनी घुमंतु विमुक्त जातियां है, उनके लिए बढ़ाने का भी हमने उपक्रम पिछले वर्ष से प्रारंभ किया है और हम उनके लिए भी काम करेंगे।