लगभग ३६ वर्ष पहले कानपुर में गंगामैया उन्नाव की तरफ बहने लगी थी। गंगा की धारा के घाटों को छोडकर अलग बहाव हो जाने से वहां के पण्डों का रोजगार एक तरह से छिन गया। वहीं कानपुर के धर्मपरायण जनता का गंगा स्नान भी दुर्लभ हो गया था। गंगामैया को घाटों की ओर लाने के लिए सरकारी स्तर पर भी काफी प्रयास हुए लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद स्वामी परमानन्द जी महाराज ने एक लाख कार सेवकों को लेकर एक समातान्तर नहर की खुदाई करवाई। स्वामी जी का प्रयास सराहनीय था लेकिन गंगामैया घाट पर नहीं आई। इस दौरान कानपुर के बुद्धिजीवियों के एक शिष्ट मण्डल ने दशनामी संप्रदाय के सन्यासी स्वामी श्री प्रखर जी महाराज से संपर्क किया ।
एक वर्ष के चिंतनके बाद इस आदिशक्ति को नियंत्रित करने के लिए एक यज्ञ के आयोजन का निर्णय लिया गया। श्री प्रखर जी महाराज ने जनवरी १९९६ में पांच सौ ब्राह्मणों को लेकर गंगा की धारा को घाट पर लाने के उद्देश्य से अयुतचण्डी यज्ञ का आयोजन किया । राष्ट्रीय मीडिया मे प्रखर जी महाराज के इस यज्ञ को लेकर कई सवाल उठाए गए लेकिन यज्ञ के आयोजन के बाद जून में कानपुर पर इन्द्र प्रसन्न हुए व मूसलाधार वर्षा होने से गंगा के पवित्र पानी का बहाव तीन किलामीटर धरती को काटकर पुनः घाटों की ओर हो गया ।
ब्राह्मण का तप क्या होता है इसे समझने के लिए यह एक बेहतर उदाहरण है । ब्राह्मण जन्म लेना पर्याप्त नहीं । कर्म और साधना तथा आचार विचार वैसे होंगे और अपने नियम में रहने मात्र से ही ब्राह्मण जगत के लिए एक विभूति हो जाता है । यह अस्पृश्यता फैलाने से नहीं होगा , अपना तेज और शौर्य बढ़ाने से होगा । वर्तमान में जब वर्ण व्यवस्था और वर्ण के प्रभाव पर चारों ओर से प्रश्नों की बौछार हो रही हैं , ऐसे समय में इन यज्ञों के चमत्कार के आगे सभी प्रश्नों के उत्तर स्वतः ही मिलने लगते हैं । प्रखर महाराज जी ने ऐसे बहुत ही यज्ञ अनुष्ठानों का आयोजन करवाया है जिनमें अपेक्षित प्रभाव समाज ने देखा है ।