जब पकिस्तान इस एल ओ सी का उलंघन कर सकता है तो भारत क्यों नहीं करता है?
रविंदर पडलिया, हल्द्वानी : भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य पर कब्जा करने के लिए 1947 – 48 में पकिस्तान ने एक बहुत बड़ी मुहीम चलाई थी जिसमें वह कुछ हद तक आंशिक रूप से सफल भी हो गया था. उसकी इस आंशिक सफलता के लिए हमारे तत्कालीन एक राजनेता ने भी पकिस्तान की बहुत सहायता कर दी थी – कश्मीर समस्या को UNO में ले जा कर.
उस समय जब भारत और पकिस्तान की सेनाओं के बीच संघर्ष हो रहा था और भारतीय सेना तेजी से पाकिस्तानियों को मार भगाते हुवे आगे बढ़ रही थी. लेकिन, इस समस्या को UNO में लेजाकर भारत ने जाने-अनजाने गलती कर दी और एल ओ सी अस्तित्व में आ गयी.
एल ओ सी को सेना की भाषा में सीजफायर लाइन कहते हैं. यानि एक ऎसी रेखा जो आमने-सामने युद्ध के लिए खड़ी विरोधी सेनाओं के बीच से गुजरती है. यह केवल और केवल अस्थायी तौर पर शांति बनाये रखने के लिए दोनों देशों के सैनिक कमांडरों के द्वारा केवल और केवल नक्से पर खींची गयी हुई होती है और जमीन पर किसी भी प्रकार की मार्किंग नहीं होती है. इसी लिए इस सीस फायर लाइन को अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं माना जाता है.
यही कारण है कि पकिस्तान आतंकियों को भारत में भेजने के लिए अक्सर इस एल ओ सी नामक सीज फायर लाइन का उलंघन करता रहता है और हमारे नेता कुछ फौजी कारवाही ना करते हुवे लोगों के सामने रोते रहते आये हैं.
जब पकिस्तान इस एल ओ सी का उलंघन कर सकता है तो भारत क्यों नहीं करता है? ऐसा करने के लिए भारत को कोई नहीं रोकता है पर हमारे नेताओं में ऐसा करने के लिए इच्छा-शक्ति ही नहीं है. काश, यदि हमारे नेता प्रारम्भ से ही ऐसा करते तो पकिस्तान हमको डरपोक देश समझने की भूल नहीं करता और एल ओ सी पर एक भी गोली फायर करने से पहले सौ बार सोचता.
अक्सर एल ओ सी पर फायर करने वाले पकिस्तान को उसी की भाषा में उत्तर देने के लिए अब भी समय है. भारत को चाहिए कि अब एल ओ सी पर अनेक स्थानों पर वही कारवाही करे जो पाकिस्तान ने कारगिल में किया था – फर्क केवल इतना होना चाहिए कि सेना वहीँ डटी रह कर अपना कब्ज़ा बनाये रखे और पाकिस्तानी सेना पर हमेशा हावी रहे.
कुछ मंद-बुद्धि लोग यह तर्क दे कर इसके विरुद्ध शोर भी मचाएंगे कि इसमें नुक्सान बहुत होगा. अरे भाइयो, नुक्सान तो अब भी हो ही रहा है. ऐसा करने से पाकिस्तान का भी बराबर का या अधिक नुक्सान होगा.