श्रावण मास का हमारे सनातन धर्म मे विशेष महत्व है इस पवित्र महीने में समस्त जन द्वादश ज्योतिर्लिगों की यात्रा एवम अपने अपने शहरों व गावो में स्थिर शिवालयों एवं देवालयों में जाकर शिव रुद्राभिषेक एवम शिवलिंग पर दूध दही शहद शक्कर व घी से उन्हें स्नान कराते है आज हमारे समाज मे हमारे धर्म को समाप्त करने के लिए कुछ टीवी चैनलों एवम तथाकथित बुद्धिजीवियों ने एक मुहिम चला रखी है के शिवलिंग पे दूध ना चढ़ाके वो दूध गरीबो में बांट दो शिवलिंग कोनसा दूध पीते है ये समस्त लोग केवल ओर केवल सनातन धर्म के ही विरुद्ध बोलते है अन्य किसी धर्म के बारे में ये कभी एक शब्द नही बोलते ना इनको मुस्लिमो की इस पे कटते हुए वो पशु दिखाई देते है और ना क्रिसमिस का हुड़दंग इन्हें सारी कमिया केवल हमारे सनातन धर्म मे ही दिखलाई देती है इन लोगो के प्रश्न का आज इस पोस्ट से हम उत्तर दे रहे है जिस समय भगवान शिव ने सारे जगत की रक्षा के लिए हलाहल विष का पान किया तब विष के ताप उनका तन जलने लगा जिस से समस्त देवताओं ने उनका दूध से अभिषेक किया आयुर्वेद में स्पष्ट रूप से लिखा है के श्रावण ओर भादो इन महीनों में दूध और दही का सेवन नही करना चाहिए क्योंकि इस समय मानसून के कारण फसलों ओर घास में किट पतंग पैदा हो जाते है जिसे पशु खाते है इस समय इन पशुओं के दूध में पोष्टिक तत्व ना होकर विषैले तत्व मिल जाते है जो शरीर मे बीमारियां पैदा करते है इसलिए इन दो महीनों में दूध व दही का सेवन उत्तम नही माना जाता इसलिए इस समय ये दूध शिवार्पण करना सर्वोत्तम होता है क्योंकि शिव तो सारे जगत के तत्वों को अपने मे समाए हुए है ओर जहाँ तक प्रशन दूध को गरीबो में बांटने का है तो हमारे धर्म मे तो सदा दुसरो के हित को ही सर्वोपरि माना जाता है किसने मना किया हमे हमारा जितना मन करे उतना हम गरीबो में बांटे परन्तु शिवजी को एक पाव आधा किलो या सवा किलो का या अपनी इच्छा से जितना भी हमारा मन करे दूध हम चढ़ाए उसके बाद जितना हमारा मन करे हम गरीबो में बांटे परन्तु ऐसे लोगो तो केवल शिवजी के हिस्से के दूध से ही समस्या है ऐसे लोगो को समझना चाहिए के सनातन केवल एक धर्म नही अपितु दुनिया का सारा विज्ञान इस धर्म मे समाया है सूर्य को अर्घ्य देना विज्ञान है पीपल को जल चढ़ाना विज्ञान है तीर्थो में स्नान करना विज्ञान है और तीन समय की संध्या उपासना करना विज्ञान है अतः सनातन पर उंगली उठाने से पहले इस धर्म के विज्ञान को समझे और गर्व करे के हमारा जन्म इस सनातन धर्म मे हुआ है जो धर्म केवल मानव मात्र के कल्याण की भावना रखता है डॉ रमनीक कृष्ण जी महाराज सद्भावना संस्कृत मन्दिर