उत्तर- संघ का इसके बारे में प्रस्ताव है उसी का वर्णन मैं करता हूं। जनसंख्या का विचार जैसे एक बोझ के रूप में होता है। मुंह बढ़ेंगे तो खाने को तो देना ही पड़ेगा। रहने को जगह देनी पड़ेगी, पर्यावरण का उपयोग ज्यादा होगा तो है लेकिन जनसंख्या काम करने वाले हाथ भी देती है।
अभी भारत तरुणों का देश है। 56 प्रतिशत तरुण है और हमको बड़ा गर्व है दुनिया में सर्वाधिक तरुण भारत में है। 30 साल बाद यही तरुण जब बूढ़े हो जायेंगे तब इनसे ज्यादा तरुणों की संख्या नहीं होगी नहीं तो भारत बूढ़ों का देश हो जायेगा जैसे आज चीन है। इसलिये जनसंख्या का विचार दोनों दृष्टि से करना चाहिए। तात्कालिक नहीं एक पचास साल का प्रोजेक्शन मन में लाकर यह सोचना चाहिए कि कितने लोगों को खिलाने की हमारी क्षमता होगी, रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य यह जो गृहस्थ की आवश्यकताएं छह रहती हैं वह देने की क्षमता हमारी क्या होगी। उस समय भार हमारा पर्यावरण कितना सहन कर सकेगा। कैसे उसकी क्षमता हम बढ़ा सकते हैं। उस समय ये सारा काम करने वाले हाथ हमको कितने चाहिए और जनसंख्या चर्चा तो हम सब करते हैं जन्म देने का काम माताओं को करना पड़ता है। तो वो हमारी कितनी सक्षम है, कितनी प्रबुद्ध है, भरण पोषण की व्यवस्था उसके हाथ में कितनी है ये सारा विचार करते हुए और एक महत्व की बात दूसरे प्रश्न में जो पहले प्रश्न में ही आयी है डेमोग्रैफिक बैलेंस, अब हम इसको माने या न माने यह महत्व की चीज तो सब जगह मानी जाती है।
इसकी बात न करने वाले भी लोग हैं लेकिन वह इसका महत्व भी समझते हैं। तो डेमोग्रैफिक बैलेंस भी रहना चाहिए। इसको ध्यान में रखकर एक जनसंख्या के बारे में नीति हो, अभी नीति है फिर यह देखा जाए कि यह सारा उसमें विचारित है कि नहीं, सुविचारित है कि नहीं ये पचास साल की स्थिति की कल्पना हुई क्यों, और उस नीति में जो तय होता है वह सब पर समान रूप से लागू किया जाए किसी को उसमें से छुट्टी न हो। जहां समस्या है वहां पहले उपाय हों यानी जहां बच्चों को पालन करने की क्षमता नहीं है लेकिन बहुत बच्चे हो रहे हैं, परवरिश ठीक नहीं होगी तो अच्छे नागरिक नहीं बनेंगे जहाँ नहीं है वहां लागू तो करना है सब पर लेकिन थोड़ा बाद में भी किया तो चलेगा। लेकिन ये कानून बनाकर लागू करने से स्वीकार करेंगे लोग ऐसा नहीं है। मैं स्वयं एक साल सरकारी नौकरी में था और फैमिली प्लानिंग कैम्पेन का वह पीक था। हम सब किसी भी डिपार्टमेंट के हों हमें काम करना पड़ता था। गांव गांव में जाकर मैंने इसका प्रचार किया है और देहातियों के प्रश्न सब मैंने सुने हैं।
मन बनाना पड़ेगा। सबका मन बनाना पड़ेगा। धैर्य से सोचना, ठीक से सोचना, जो तय किया है उसके बारे में मन बनाना और इसको समान रूप से सब पर लागू करना ये उसके उपकार ही होंगे फायदे होंगे। और इसमें एक बात और ध्यान में रखना चाहिए कि जन्मदर एक बात है, अब हिन्दुओं का जन्मदर घट रहा है या बढ़ रहा है जो भी आप कहेंगे इसके लिए नीति जिम्मेवार केवल नहीं रहती। वह सोच भी रहती है। उचित सोच क्या हो, परिवार में संतान यदि कितनी है यह केवल देश का ही प्रश्न नहीं है। यह एक-एक परिवार का भी प्रश्न है। तो उसका संतुलित विचार कैसे करना है इसका भी प्रशिक्षण समाज को मिलना चाहिए। लेकिन दूसरी दो बाते हैं। डेमोक्रेटिक इमबेलेन्स मतांतरण के कारण भी होता है। घुसपैठ के कारण भी होता है। मतांतरण के बारे में मैं बोल चुका हूँ। घुसपैठ सीधा सीधा अपने देश की संप्रभुता को आह्वान देने वाला विषय है उसका कड़ाई से बंदोबस्त होना चाहिए।