मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। आर्यसमाज धामावाला, देहरादून के साप्ताहिक सत्संग में आज दिनांक 6-5-2018 को सहारनपुर के आर्य विद्वान श्री शिव कुमार शास्त्री जी का जीवन का लक्ष्य और उसकी प्राप्ति के उपाय विषय पर व्याख्यान हुआ। कार्यक्रम का आरम्भ प्रातः अग्निहोत्र यज्ञ से हुआ जिसका पौरोहित्य पं. विद्यापति शास्त्री जी ने किया। यजमान की वेदि पर समाज के एक वृद्ध सदस्य सहित अमृतसर की शक्तिनगर आर्यसमाज के संयुक्त सचिव ऋषि भक्त श्री मुकेश आनन्द जी भी उपस्थित थे। श्री आनन्द जी पंजाब नैशनल बैंक, देहरादून में सहायक महाप्रबन्धक हैं। नियमित रूप से आर्यसमाज में आते हैं और आरम्भ से अन्त तक सत्संग में उपस्थित रहकर यज्ञ, भजन तथा उपदेश श्रवण करते थे। यज्ञ के बाद स्वामी श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम, देहरादून की चार छोटी कन्याओं ने एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘ऋषि क्या फरिस्ता था दिलों को करार दे गया।’ भजन बहुत प्रभावशाली रूप से बच्चों ने प्रस्तुत किया। इसके बाद आश्रम की ही पांच बड़ी छात्राओं ने दूसरा भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘कौन कहे तेरी महिमा कौन कहे तेरी माया, किसी ने हे परमेश्वर तेरा अन्त कभी न पाया।’ यह भजन भी प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत किया गया। इसके बाद समाज के सम्मानित पुरोहित पं. विद्यापति शास्त्री जो भजन गायन में भी निपुणता रखते हैं, उन्होंने एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘मिट्टी के पुतले चलना पड़ेगा जरूर, गांव तेरा बड़ी दूर।’ भजनों के बाद एक 2-3 वर्ष की बालिका शिवांगी ने गायत्री मन्त्र सुनाया। बालक रजत द्वारा सामूहिक प्रार्थना बहुत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत की गई। बालक रजत ने सुखी बसे संसार सब दुखिया रहे न कोय, पद्यानुवाद सहित गायत्री मंत्र, विश्वानि देव मंत्र और भाषा में ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना के विचारों व भावों को श्रद्धापूर्ण शब्दों में प्रस्तुत किया।
सत्संग में प्रवचन के लिए सहारनपुर के आर्य विद्वान पं. शिवकुमार शास्त्री जी को आमंत्रित किया गया था। अपने व्याख्यान के आरम्भ में उन्होंने कहा कि ईश्वर ने हमें संसार में यात्रा के लिए भेजा है। उसने हमें क्यों भेजा इस पर हमें विचार करना है। शास्त्री जी ने नामकरण संस्कार में पिता द्वारा सन्तान से किए जाने वाले चार प्रश्नों में प्रथम प्रश्न ‘त्वं कोऽसि’ अर्थात् तू कौन है की चर्चा की। उन्होंने श्रोताओं से पूछा कि क्या हम जान पायें हैं कि हम कौन हैं? उन्होंने कहा कि जिस दिन हम अपने आप को पहचान लेंगे तो हमें सब समस्याओं का समाधान मिल जायेगा। पंडित शिवकुमार शास्त्री जी ने कहा कि सारी दुनिया ईश्वर की खोज कर रही है। वेद कहते हैं कि हमें पहले स्वयं को जानना है। उन्होंने कहा कि हम बिना अपने आप को जाने परमात्मा को नहीं जान सकते। विद्वान आचार्य ने कहा कि परमात्मा ने मनुष्य के अतिरिक्त सभी प्राणियों के मुख नीचे की ओर झुके हुए बनाये हैं। मनुष्य का मुख सीधा व ऊपर की ओर है, इसका क्या कारण है? विद्वान वक्ता ने कहा कि सन्ध्या के प्रथम मंत्र में ही मनुष्य जीवन का उद्देश्य निहित है। वह उद्देश्य हमसे छूट जाता है। हम अन्यत्र चल पड़ते हैं। मार्ग भटक जाते हैं। उन्होंने कहा कि एक राही चौराहे पर खड़े एक व्यक्ति से पूछता है कि यह मार्ग कहां जाता है? वह व्यक्ति कहता है कि तू बता कि तूने जाना कहां है? वह कहता है कि उसे पता नहीं, कहां जाना है। इसका उत्तर मिलता है कि फिर तू किसी भी मार्ग पर जा, कहीं न कहीं तो पहुंच ही जायेगा। विद्वान शास्त्री जी ने कहा कि हमारी स्थिति भी कुछ इसी प्रकार की है।
आचार्य शिवकुमार शास्त्री जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द जी ने भी मनुष्य जीवन के लक्ष्य की चर्चा की है। उन्होंने बताया कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य ऐसे सुख की प्राप्ति है जो क्षणिक न हो अपितु जो बना रहे, कभी समाप्त न हो। उन्होंने यह भी कहा कि जीवन का उद्देश्य सुख प्राप्त करना व उनका भोग करना नहीं है। मनुष्य जीवन का उद्देश्य आनन्द की प्राप्ति करना है। आनन्द इन्द्रियों से नहीं अपितु आत्मा से भोगा जाता है। उन्होंने कहा कि कभी कभी दुःख में भी आनन्द आता है। इसका उन्होंने एक दृष्टान्त भी सुनाया और कहा कि एक व्यक्ति आफिस देर से पहुंचने पर अधिकारी की डांट खाता है। दूसरी ओर देरी का कारण उस व्यक्ति द्वारा रास्ते में किसी घायल व्यक्ति की सेवा करना होता है जिससे उसकी आत्मा को सुख मिलता है। ऐसी स्थिति में अधिकारी की डांट से भी उसे वह दुःख प्राप्त नहीं होता जो अन्य स्थिति में उसे होता। आचार्य जी ने कहा कि ऋषि के अनुसार हमें जीवन में ऐसे सुख को प्राप्त करना है कि जो थोड़े समय में समाप्त न हो। उन्होंने कहा कि ऐसा सुख मोक्ष सुख है जो छत्तीस हजार बार सृष्टि बनने और इसकी प्रलय होने की अवधि के बराबर स्थिर रहता है। इस लम्बी अवधि तक जीवात्मा ईश्वर के सान्निध्य में आनन्द रूपी विषिष्ट सुख को भोगता है।
श्री शिवकुमार शास्त्री ने कहा कि जीवन का उद्देश्य लौकिक साधनों को प्राप्त करना भी है। उन्होंने वेद मंत्र का उच्चारण कर कहा कि हम धनैश्वर्यों के स्वामी हों। उन्होंने बताया कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य पूर्णानन्द की प्राप्ति है जो हमें मोक्षावस्था में प्राप्त होता है। आचार्य जी ने कहा कि मनुष्य इच्छा करता है, वह पूरी हो जाती है, फिर और नवीन इच्छायें उत्पन्न होती जाती हैं। उन्होंने कहा कि परमात्मा प्राप्ति की इच्छा भी मनुष्य को करनी चाहिये। यही मनुष्य जीवन का लक्ष्य है। आचार्य जी ने सुकरात और एक युवक के प्रश्नोत्तर को भी प्रस्तुत किया जिसके निष्कर्ष में उन्होंने बताया कि मनुष्य को जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिये। उस लक्ष्य प्राप्ति के प्रति उसमें तीव्र इच्छा होनी चाहिये। इच्छा पूर्ति के लिए तप करना आवश्यक है। तप के बाद पुरुषार्थ करना होता है। इच्छा प्राप्ति में अनुकूल साधनों को भी एकत्रित करना होता है। लक्ष्य पर पहुंचने की सही विधि भी मनुष्य को ज्ञात होनी चाहिये। यदि सही विधि ज्ञात नहीं होगी तो जीवन का लक्ष्य प्राप्त नहीं होगा। यह विधि धर्मानुकूल ही होनी चाहिये धर्म विरुद्ध नहीं। ऐसा करके मनुष्य अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। आचार्य जी ने श्रोताओं को बताया कि तप द्वन्दों को सहन करने को कहते हैं। विद्वान वक्ता ने यह भी कहा कि ‘जाही विधि राखे राम ताहि विधि रहिये’ को बदल कर आप ऐसा पाठ किया करें ‘जाही विधि रहे राम ताही विधि रहिये’ और इसी के अनुसार आचरण व व्यवहार करें। पं. शिवकुमार शास्त्री जी ने कहा कि आत्मा और परमात्मा दोनों पुरुष कहे जाते हैं। इसका कारण यह है कि आत्मा शरीर में रहता है और परमात्मा भी ब्रह्माण्ड रूपी शरीर में रहता है। उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात यह बताई कि ईश्वर प्राप्ति के लिए किये गये सब कर्मों की गणना पुरुषार्थ में होती है। उन्होंने कहा कि पुरुषार्थ की परमात्मा की प्राप्ति के लिए आवश्यकता है। उन्होंने श्रोताओं को बताया कि मनुष्य का शरीर परमात्मा की प्राप्ति में मुख्य साधन है। ईश्वर की प्राप्ति में हमें अपने मनुष्य शरीर का उपयोग अर्थात् पुरुषार्थ करना है। आचार्य जी ने कहा कि हम सन्ध्या, यज्ञ व मोक्ष प्राप्ति के जो भी साधन करें उसकी विधि धर्मानुकूल होनी चाहिये। शास्त्री जी ने यह भी कहा कि ईश्वर एक है अतः उसकी प्राप्ति की विधि भी एक ही है। अपने प्रवचन में आचार्य जी ने कठोपनिषद का उल्लेख कर यम और नचिकेता की कथा को भी प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि नचिकेता के प्रश्नों को टालने के यम ने उसे अनेक प्रलोभन दिये। आयार्य शिवकुमार जी ने कहा कि ईश्वर की भक्ति वृद्धावस्था में करने की वस्तु नहीं है अपितु यह युवावस्था से ही आरम्भ करनी होती है। इसके लिए समय नहीं मिलता तो समय को निकालना होगा। विद्वान वक्ता ने यह भी कहा कि धीर पुरुष न्याय पथ से कभी विचलित नहीं होते भले ही उनके जीवन का अन्त क्यों न हो जाये।
आर्यसमाज के प्रधान डा. महेश कुमार शर्मा जी ने बताया कि मैडम एनी बेसेन्ट ने कहा है कि महर्षि दयानन्द पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत को आर्यावर्त्त कहा था और यह भी कहा था कि भारत भारतीयों का है। उन्होंने बताया कि एनी बेसेन्ट एक विदेशी महिला थी। वह कांग्रेस की प्रधान भी रहीं। जुलाई 2018 में आर्यसमाज, धामावाला, देहरादून का वार्षिक निर्वाचन होना है। प्रधान जी ने श्रोताओं को सभासदों वा सदस्यों की वर्ष भर की उपस्थिति की संख्या से अवगत कराया। समाज के प्रधान डा. महेश कुमार शर्मा जी की वर्ष भर में कुल 52 उपस्थितियां हैं अर्थात् वह वर्ष भर के सभी सत्संगों में आये हैं। अन्य किसी सदस्य की इतनी उपस्थितियां नहीं हैं। अतः ऐसे योग्य व्यक्ति ही अधिकारी बनने उचित हैं। प्रधान जी ने कहा कि यदि किसी सदस्य को अपनी उपस्थिति को लेकर कोई शंका हो तो वह एक माह के भीतर लिखित आपत्ति कर सकता है। इसके बाद सभी सदस्यों ने आर्यसमाज के दस नियमों को मिलकर बोला। पुरोहित पं. विद्यापति जी के द्वारा शान्तिपाठ कराया गया। इसी के साथ आज के सत्संग का समापन हुआ और प्रसाद वितरण के साथ सभा विसृजित हुई। ओ३म् शम्।