के.के.शर्मा : 15 अगस्त, 1947 का ऐतिहासिक दिन। उस दिन जहां भारत 1000 वर्ष की गुलामी से स्वतंत्र हुआ, वहीं यह दिन भारत राष्ट्र का एक दुर्भाग्यपूर्ण दिन भी था। भारत का एक और विभाजन हो गया। देश का 30 प्रतिशत भाग कटकर पाकिस्तान नाम से एक अलग देश बन गया। “पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा” की घोषणा करने वाले महात्मा गांधी असहाय से देखते रहे और शीघ्रता से सत्ता सुख भोगने की लालसा में कांग्रेस के नेताओं ने देश का विभाजन स्वीकार किया।
भारत का विभाजन और दो नए राज्यों/राष्ट्रों का निर्माण सन 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान (मुस्लिम राष्ट्र) एवं सन 15 अगस्त, 1947 को भारत (रिपब्लिक ऑफ़ इंडिया) में करने की घोषणा लॉर्ड माउन्टबेटन ने की। इस विभाजन में न केवल भारतीय उप-महाद्वीप के दो टुकड़े किये गये बल्कि बंगाल का भी विभाजन किया गया और बंगाल के पूर्वी हिस्से को भारत से अलग कर पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) बना दिया गया। वहीं पंजाब का विभाजन कर पाकिस्तान का निर्माण हुआ। इस विभाजन में रेलवे, फ़ौज, ऐतिहासिक धरोहर, केंद्रीय राजस्व, सबका बराबरी से बंटवारा किया गया। भारतीय महाद्वीप के इस विभाजन में जिन मुख्य लोगों ने हिस्सा लिया वो थे मोहम्मद अली जिन्ना, लॉर्ड माउन्ट बेटन, सीरिल रैडक्लिफ़, जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गाँधी एवं दोनों संगठनों (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग) के कुछ मुख्य कार्यकर्तागण। इन सब में सबसे अहम् व्यक्ति थे सीरिल रैडक्लिफ़ जिन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने भारत-पाकिस्तान के विभाजन रेखा की जिम्मेदारी सौंपी थी। इसीलिए भारत-पाकिस्तान विभाजन रेखा को ‘रैडक्लिफ़ रेखा’ कहा जाता है।
परन्तु उसी 15 अगस्त, 1947 को लाहौर में और पूरे पश्चिम पंजाब व सीमा प्रान्त में हिन्दू-सिख इलाके और उनके घर धू-धू कर जल रहे थे। हजारों लाखों के काफिले छोटा मोटा सामान लेकर छोटे बच्चों को उठाए, महिलाओं को बीच में रखकर बड़े-बूढ़ों को सम्हालते हुए भारत की ओर आ रहे थे। स्थान-स्थान पर लूटपाट, अपहरण व हत्याएं हो रही थीं। रेलगाड़ियां चल तो रही थीं, परन्तु भीड़ इतनी अधिक थी कि लोग रेलगाड़ियों की छतों पर बाल-बच्चों समेत बैठने को मजबूर थे। छतों पर बैठे कितने ही लोग पटरियों के पास बैठे पाकिस्तानी दरिंदों की गोलियों का शिकार होते थे।
विभाजन या बंटवारा किसी देश, भूमि या सीमा का नहीं होता। विभाजन तो लोगों की भावनाओं का हो जाता है जो हमेशा के लिए उनको इतने गहरे जख्म दे जाता है कि वह उनकी खुद की और आने वाली नस्लों की जिंदगी को झिंझोड़ कर रख देता है। यह ऐसा थप्पड़ है जिसकी गूंज प्रभावित होने वालों को हमेशा सुनाई देती है। बंटवारे का शिकार आम आदमी होता है और उसका असर सदियों तक रहता है, चाहे वह बंटवारा कहीं का भी हो, घर का या देश का।
जब देश का विभाजन होता है तो आम आदमी को बहुत नुकसान झेलना पड़ता है। लोग अपनों से बिछड़ जाते हैं, घर, जमीन, दोस्त, रिश्तेदार, यहां तक की एक ही मां-बाप के दो बेटे-एक भारत में तो दूसरे को पाकिस्तान में रहना पड़ता है।
साल 1947 में भारत देश का बंटवारा मजहब के नाम पर किया गया। परिणामस्वरुप भारत दो हिस्सों में बंट गया- भारत और पाकिस्तान। भारत दुनिया का एक अकेला देश है जिसमें आम आदमी को अपनी मर्जी से भारत या पाकिस्तान चुनने का विकल्प था। धर्म के नाम पर काफी संख्या में हिंदू पाकिस्तान से भारत आ गए और इसी तरह काफी संख्या में मुसलमान भारत से पाकिस्तान चले गए।
धर्म के नाम पर दंगे फसाद भड़क गए। हिन्दू द्वारा मुसलमान का, मुसलमान द्वारा हिन्दू का खून खराबा होना शुरू हो गया, जिसके परिणाम स्वरूप आम आदमी को चाहे वो हिन्दू था या मुसलमान अपना घर-बार, कारोबार, जमीन, जायदाद और परिवारों को मजबूरन छोड़ना पड़ा।
देश का बंटवारा मजहब के नाम पर क्यों हुआ, जब भी मैं इस प्रश्न के बारे में सोचता हूं तो मुझे केवल यही दिखाई देता है कि यह हमारे राजनेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए धर्म के नाम पर आम आदमी का भी बंटवारा किया। आज हालत यह है कि हिन्दू हो या मुसलमान, दोनों ही एक दूसरे को शक की नजरों से देखते हैं। मेरे विचार में यही सबसे बड़ा नुकसान है जो आम आदमी को मजहब के नाम पर उठाना पड़ा।विभाजन आम जनता के जीवन को प्रभावित करने वाली एक भयानक त्रासदी थी, जिससे अपने ही देश में लोग पराए हो गए। इस विभाजन की विभीषिका के कारण असंख्य लोगों को आजाद मुल्क के उगते सूरज की रोशनी, स्वच्छंद हवा भी नसीब न हो सकी, धार्मिक विद्वेष की ज्वाला ने न जाने कितनों को अपनों से जुदा कर दिया। विभाजन की विभीषिका के कारण आजाद मुल्क की ताजगी भरी हवा लाशों की दुर्गन्ध, रक्तपात, अलगाव में तब्दील हो गई। विभाजन ने मानवीय सभ्यता, संस्कृति वैचारिकता को सांप्रदायिक उत्कर्ष पर पहुंचाया।
विभाजन के कारण
भारत के ब्रिटिश शासकों ने हमेशा ही भारत में “फूट डालो और राज्य करो” की नीति का अनुसरण किया। उन्होंने भारत के नागरिकों को संप्रदाय के अनुसार अलग-अलग समूहों में बाँट कर रखा। उनकी कुछ नीतियाँ हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करती थीं तो कुछ मुसलमानों के प्रति। 20वीं सदी आते-आते मुसलमान हिन्दुओं के बहुमत से डरने लगे और हिन्दुओं को लगने लगा कि ब्रिटिश सरकार और भारतीय नेता मुसलमानों को विशेषाधिकार देने और हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करने में लगे हैं। इसलिए भारत में जब आज़ादी की भावना उभरने लगी तो आज़ादी की लड़ाई को नियंत्रित करने में दोनों संप्रदायों के नेताओं में होड़ रहने लगी।
सन् 1906 में ढाका में बहुत से मुसलमान नेताओं ने मिलकर मुस्लिम लीग की स्थापना की। इन नेताओं का विचार था कि मुसलमानों को बहुसंख्यक हिन्दुओं से कम अधिकार उपलब्ध थे तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसहिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करती थी। मुस्लिम लीग ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग मांगें रखीं। 1930 में मुस्लिम लीग के सम्मेलन में प्रसिद्ध उर्दू कवि मुहम्मद इक़बाल ने एक भाषण में पहली बार मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य की माँग उठाई।] 1935 में सिंध प्रांत की विधान सभा ने भी यही मांग उठाई। इक़बाल और मौलाना मुहम्मद अली जौहर ने मुहम्मद अली जिन्ना को इस मांग का समर्थन करने को कहा। इस समय तक जिन्ना हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्ष में लगते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि कांग्रेसी नेता मुसलमानों के हितों पर ध्यान नहीं दे रहे। लाहौर में 1940 के मुस्लिम लीग सम्मेलन में जिन्ना ने साफ़ तौर पर कहा कि वह दो अलग-अलग राष्ट्र चाहते हैं
“हिन्दुओं और मुसलमानों के धर्म, विचारधाराएँ, रीति-रिवाज़ और साहित्य बिलकुल अलग-अलग हैं।.. एक राष्ट्र बहुमत में और दूसरा अल्पमत में, ऐसे दो राष्ट्रों को साथ बाँध कर रखने से असंतोष बढ़ कर रहेगा और अंत में ऐसे राज्य की बनावट का विनाश हो कर रहेगा।
हिन्दू महासभा जैसे हिन्दू संगठन भारत के बंटवारे के प्रबल विरोधी थे, लेकिन मानते थे कि हिन्दुओं और मुसलमानों में मतभेद हैं। 1937 में इलाहाबाद में हिन्दू महासभा के सम्मेलन में एक भाषण में वीर सावरकर ने कहा था – आज के दिन भारत एक राष्ट्र नहीं है, यहाँ पर दो राष्ट्र हैं-हिन्दू और मुसलमान।
देश का विभाजन बहुत उतावलेपन में स्वीकार किया गया। इसके कारणों में एक प्रमुख कारण यह था कि जिस प्रकार का राष्ट्रवाद कांग्रेस ने विकसित किया था, वह इतना दुर्बल था कि मुस्लिम राष्ट्रवाद के नाम पर शुरू हुए अलगाववाद का प्रतिरोध नहीं कर सका। यह अलगाववादी प्रवृत्ति उन दिनों बहुत मजबूत था। उसमें हिंसा का एक बड़ा भाग था। दूसरी तरफ हिन्दुओं ने अपना पूर्ण समर्थन गांधी जी की अहिंसक नीतियों और कांग्रेस को दिया, यहां तक कि हिन्दू महासभा जैसे दलों को भी किनारे कर दिया। कारण, कांग्रेस ने दावा किया था कि मुस्लिम लीग का मुकाबला केवल कांग्रेस ही कर सकती है।
इन दोनों देशों के जन्म का मामला सन 1946 में अगस्त के एक और दिन से जुड़ा हुआ है, जिसे सौभाग्य से कभी दोहराया नहीं गया।
16 अगस्त, 1946 को मुस्लिम लीग ने ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ की घोषणा की थी। अगस्त 1946 में, रमजान के 18वें दिन (मुसलमानो का वह पवित्र दिन जिस दिन खुद मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई में अरब के काफिरों का कत्लेआम किया था) मुसलमानों ने जिन्ना के उस निर्देश का पालन करना शुरू किया जिसमे बद्र की लड़ाई में अपने नबी की तरह हिंदुओं और सिखों का वध करने के लिए कहा गया था। उस दिन हुई हिंसा ने ऐसे घटनाचक्र को जन्म दिया, जिससे भारत का विभाजन अनिवार्य हो गया। कलकत्ता में दंगे शुरू हुए और वे जल्दी ही बंगाल के ग्रामीण इलाकों में पहुंच गए। उसके बाद तो बिहार और संयुक्त प्रांत में दंगे फैल गए और अंत में सबसे भयानक दंगे पंजाब में हुए।
देश के विभाजन में मुसलमानों द्वारा की जा रही हिंसा एक प्रमुख कारक बनी। मुसलमानों द्वारा की जा रही हिंसा का कांग्रेस के पास कोई प्रत्युत्तर नहीं था, क्योंकि गांधीजी का पूरा आन्दोलन अहिंसा पर आधारित था। हालांकि सरदार पटेल ने एक बार कहा कि तलवार का मुकाबला तलवार से करेंगे, पर जिन्ना ने पूछा कि उनकी तलवार कहां है? क्योंकि जिन्ना जानते थे कि कांग्रेस गांधी जी की अहिंसक नीति से बाहर नहीं जा सकती। हालांकि हिन्दुओं के पास शक्ति की कमी नहीं थी। उन्होंने हिंसक मुसलमानों का जबरदस्त प्रतिकार किया भी, लेकिन कांग्रेस ने हिन्दुओं को दबाने का पूरा प्रयत्न किया। बिहार में हिन्दुओं ने जैसी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी उसके बाद मुस्लिम लीग को भय हो गया था कि अब हिन्दू जबरदस्त प्रतिकार करेंगे। इसी कारण लीग ने विभाजन के साथ ही जनसंख्या की अदला-बदली का प्रस्ताव भी रखा था। इस पर मौलाना आजाद ने कहा था कि कांग्रेस को जनसंख्या की अदला-बदली का प्रस्ताव मान लेना चाहिए, ऐसा करने से उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों के वे मुसलमान जो लीग के समर्थन में सबसे आगे हैं, उसका साथ छोड़ देंगे; क्योंकि वे अपना सब कुछ छोड़कर नहीं जाना चाहेंगे। पर, कांग्रेस ने बार-बार यही कहा कि हम जनसंख्या की अदला-बदली स्वीकार नहीं करेंगे, जो यहां रहना चाहें, रह सकते हैं। इस कारण भी हमारा पक्ष कमजोर हो गया।
भारत-विभाजन को लेकर अंग्रेज, कांग्रेस और मुस्लिम लीग सबके अपने-अपने उद्देश्य थे। अंग्रेज चाहते थे कि भारत छोड़ने के बाद भी उसका एक भाग उसके कब्जे में रहे या वह अंग्रेजों की कठपुतली बनकर रहे। जब लार्ड वेवल वायसराय बना तब चर्चिल ने उससे कहा था-“कीप ए बिट आफ इंडिया विद यू।’अंग्रेजों का उद्देश्य पूरा हुआ। उन्होंने पाकिस्तान का निर्माण कर भारत को कमजोर करने का जो षड्यंत्र रचा, वह सफल होता दिखता है। यदि देश का विभाजन न हुआ होता तो भारत आज वि·श्व का प्रथम श्रेणी का देश होता।
कांग्रेस को देश की सत्ता चाहिए थी, उन्हें मिल गयी। पं. नेहरू के समय तक केन्द्र मजबूत रहा, पर धीरे-धीरे कमजोर होता गया, क्योंकि मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति शुरू हो गई।
लीग की सोच थी कि वह पाकिस्तान को एक मुस्लिम देश बनाएंगे और वि·श्व के सभी मुस्लिम देशों का पाकिस्तान नेता बनेगा। अब परमाणु बम बनाकर वे सोच रहे हैं कि वे ऐसा करने में सफल रहे। इसी कारण वे उसे “इस्लामी बम’ कह रहे हैं। पाकिस्तान समझता है कि उसने इस्लाम को मजबूत कर दिया है। मुस्लिम लीग की सोच यह थी कि पाकिस्तान को इतना मजबूत कर दिया जाए कि वह भारत पर हावी हो जाए। उनका अंतिम लक्ष्य था कि विभाजन के बावजूद भारत में रह गए मुसलमानों का भी नेता बनें और उनकी सहायता से भारत पर भी कब्जा करें।
एक अनुमान के मुताबिक विभाजन की इस रूह कंपा देने वाली और मानवजाति के इतिहास को शर्मिंदा कर देने वाली इस त्रासदी में तकरीबन 20 लाख से ज्यादा लोग मारे गए। इसके बाद आजाद हिंदुस्तान और आजाद भारत दोनों में ही विस्थापन के बाद अपना सबकुछ छोड आए लोगों को अपने जीवन को पटरी पर लाने के लिए, घरबार काम धंधा दोबारा जमाने के लिए शरणार्थी बनकर जिस अमानवीय त्रासदी से गुजरना पड़ा वह तो एशिया के इतिहास का काला अध्याय है।
दरअसल, भारत और पाकिस्तान का बंटवारा महज 50 से 60 दिनों के भीतर लाखों लोगों का विस्थापन था, जो विश्व में कहीं नहीं हुआ। 10 किलोमीटर लंबी लाइन में लाखों लोग देशों की सीमा को पार हुए।आपको जानकार आश्चर्य होगा कि मनुष्य जाति के इतिहास में इतनी ज्यादा संख्या में लोगों का विस्थापन कभी नहीं हुआ। यह संख्या तकरीबन 1.45 करोड़ थी। 1951 की विस्थापित जनगणना के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए।
धर्म के नाम हुए इस विभाजन में दंगे-फसाद और मारकाट के बीच मानवता जितनी शोषित, पीड़ित, और छटपटाई है उतनी किसी घटना में नहीं हुई। 10 हजार से ज्यादा महिलाओं का अपहरण किया गया, उनके साथ बलात्कार हुआ, जबकि सैंकड़ों बच्चे अनाथ हो गए, कई मारे गए।
विभाजन का यह काला अध्याय आज भी इतिहास के चेहरे पर विस्थापित हुए, भगाए गए, मारे गए, भटक कर मौत को गले लगाने वाली मनुष्यता के खूने के छींटों से भरा है। इतिहास गवाह है, सियासत ने अपने ख्वाबों को तो पूरा किया, लेकिन धर्म के नाम पर, जाति के नाम भोली-भाले इंसानों को हिंदू और मुसलमानों में बांटकर। सियासतदान तो चले गए, लेकिन जनता के दिलों में, पीढ़ियों के दिलों में खूनी विभाजन और विस्थापन यह दर्द आज भी आधी रात को रह-रहकर उठता है..!