के.के.शर्मा : उस सती स्त्री के महान बलिदान को यदि मुम्बई का एक भांड अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर व्यभिचार में परिवर्तित करना चाहता है पर क्या वे चार पैसे कमाने के लिए अपनी माँ के जीवन पर भी ऐसा चलचित्र बनाएँगे????
“”सवाल यह है कि कला या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इतिहास से छेड़छाड़ की इजाजत होनी चाहिए या नहीं?”‘
रानी पद्मावती और जोहर
जयपुर में फिल्म पद्मावती की शूटिंग पर विवाद शुरू हो गया है. जयपुर में शूटिंग के दौरान फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली पर हमला हुआ और फिल्म की पटकथा को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गयी. ऐसे में यह सवाल आम आदमी की दिमाग में उठता है कि आखिर ऐसा क्या है जिस पर इस फिल्म को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है.
पद्मावती फिल्म की पटकथा पद्मावत पर आधारित है जिसे हिंदी साहित्य के अंतर्गत सूफी परंपरा के प्रसिद्ध रचानकार मलिक मोहम्मद जायसी ने लिखा था. वे भक्ति काल के प्रमुख कवियों में थे. जायसी की रचना में आरंभ में थोड़ी कल्पना और बाद में अलाउद्दीन खिलजी, राता रतन सिंह और पद्मावती के बीच के ऐतिहासिक संदर्भ पर आधारित है.इस रचना पर आधारित अपनी फिल्म में भंसाली यह दिखाना चाह रहे हैं कि रानी पद्मावती के मन में अलाउद्दीन के लिए प्रेम था और वे ऐसे दृश्य भी फिल्माना चाहते हैं, जबकि कई इतिहासकार और कुछ खास समुदाय के लोग इससे इनकार करते हैं. उनका मत है कि अलाउद्दीन पद्मावती को जबरन पाना चाहता था और पद्मावति के मन में उसके लिए कभी प्रेम भावना नहीं थी. ऐतिहासिक संदर्भ, लोकप्रिय पुस्तकों पर फिल्म बनाखे वाले संजय लीला भंसाली पर मूल कहानी में छेड़छाड़ के पहले भी करते रहे है .
फिल्मकार संजय लीला भंसाली इसे प्रेम कहानी के रूप में फिल्मांकित कर रहे हैं,इस फिल्म में कथित तौर पर अलाउद्दीन खिलजी और पद्मावती के बीच प्रेम प्रसंग को दिखाया गया है। जबकि पद्मावती को उनके ‘जौहर’ के लिए जाना जाता है।
राजस्थान में पद्मावती का बड़ा सम्मान है और माना जाता है कि उनके रणनीतिक कौशल से उनके पति राजा रतन सिंह को एक बार अलाउद्दीन खिलजी की कैद से मुक्त कराया गया और बाद में युद्ध में हार होने पर उन्होंने जौहर किया.. महारानी पद्मिनी को ख़िलजी के प्रति आसक्त बताना एक महापाप है जिसके लिए कोई भी दण्ड पर्याप्त नहीं है । यह ऐसा ही है जैसे कि एक बेटे को यह कहा जाए कि उसकी माँ के उसके परिवार के दुश्मन के साथ वासना का सम्बन्ध था ।भंसाली पैसे के लिए इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं. इसे दूसरे तरीके से पेश करने की कोशिश की जा रही है जिससे पद्मावती की असल कहानी कहीं छिपकर रह जायेगी.
महारानी पद्मिनी का जौहर ( जीवित अग्नि में प्रवेश ) एक युग प्रवर्तक घटना थी जिसने समूचे भारतवर्ष में जनमानस को झकझोर कर रख दिया था । रानी पद्मिनी, चित्तौड़ की रानी थी। रानी पद्मिनि के साहस और बलिदान की गौरवगाथा इतिहास में अमर है। सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी पद्मिनी चित्तौड़ के राजा रतनसिंह के साथ ब्याही गई थी। रानी पद्मिनी बहुत खूबसूरत थी और उनकी खूबसूरती पर एक दिन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नजर पड़ गई।[1] अलाउद्दीन किसी भी कीमत पर रानी पद्मिनी को हासिल करना चाहता था, इसलिए उसने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। रानी पद्मिनी ने आग में कूदकर जान दे दी, लेकिन अपनी आन-बान पर आँच नहीं आने दी। ईस्वी सन् १३०३ में चित्तौड़ के लूटने वाला अलाउद्दीन खिलजी था जो राजसी सुंदरी रानी पद्मिनी को पाने के लिए लालयित था। श्रुति यह है कि उसने दर्पण में रानी की प्रतिबिंब देखा था और उसके सम्मोहित करने वाले सौंदर्य को देखकर अभिभूत हो गया था। लेकिन कुलीन रानी ने लज्जा को बचाने के लिए जौहर करना बेहतर समझा.
एक युवा वीरांगना ने एक वहशी दरिन्दे की वासना का भोज बन कुछ वर्ष जीने के स्थान पर इस लोक से कूच करना उचित समझा क्यूँकि ऐसी घृणित दासता का जीवन उसे नहीं चाहिए था ,यदि पद्मिनी ने ख़िलजी की काम दासता स्वीकार कर ली होती तो समूचा भारतवर्ष हतोत्साहित होकर दासता को अभिशप्त हो जाता ।
क्या कारण है कि मुम्बई के कुछ दलाल महारानी पद्मिनी को ख़िलजी की प्रेमिका के रूप में दर्शाना चाहते हैं ?इसके कारणों पर जाने से पहले ज़रा यह परखा जाए कि क्या यह बात ऐतिहासिक रूप से सम्भव है कि पद्मिनी का ख़िलजी से प्रेम रहा हो ?
मेवाड़ राजपूत घराने के सबसे वीर व वैभवशाली राजा बाप्पा रावल थे जिन्होंने आठवीं शताब्दी में अरबों को पराजित कर ईरान की तरफ़ धकेल दिया था । बाप्पा रावल के वंशजों ने पीढ़ी दर पीढ़ी मध्य पूर्व के आक्रान्ताओं से रक्त रंजित संघर्ष जारी रखा ।आक्रान्ताओं से इतने वैमनस्य व घृणा के बीच पली बढ़ी पद्मिनी किसी दुर्दान्त हत्यारे से प्रेम करे यह बात समझ के परे है ।और चलिए एक क्षण को मान लिया जाए कि ख़िलजी के आसुरी चरित्र के उपरान्त भी पद्मिनी का चित्त उस पर मोहित हो गया , तो वह प्रेम फलित कैसे हुआ ? उसका पोषण कैसे हुआ ? इन दोनों की तो भाषा भी इतनी भिन्न थी कि दुभाषिये के बिना बातचीत भी संभव नहीं हो सकती थी ।क्या कबूतरों के द्वारा पत्राचार से पद्मिनी ने ख़िलजी को प्रेम निवेदन किया होगा ?
आप सही सोच रहे हैं ।पद्मिनी के ख़िलजी से प्रेम की बात हास्यास्पद ही होती यदि यह एक गहरे षड्यंत्र का हिस्सा ना होती,एक षड़यन्त्र जिसके तहत भारत के इतिहास को इस हद तक विकृत किया जाए कि भारतवासीयों का अपने मूल से ही सम्बन्ध विच्छेद हो जाए ।एक षड़यन्त्र जिसके तहत भारतीय मानस को इतना भ्रमित किया जाए कि आत्मरक्षा करना भी उसे अपराध बोध से भर दे ।एक षड़यन्त्र जिसमें हमारे आत्मसम्मान पर चोट कर कर के उसे पिलपिला कर दिया जाए ।हमारी युवा पीढ़ी पर एक सुनियोजित बौद्धिक अतिक्रमण किया जा रहा है जिसके अंतर्गत ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत कर उन्हें दिग्भ्रमित किया जा सके ।हमारी संस्कृति व धर्म पर चौतरफ़ा आक्रमण इसलिए हो रहे हैं क्यूँकि हमारे नेता नेतृत्व ना कर के , मात्र वोट बैन्कों का प्रबन्धन कर रहे हैं ,और केवल राजनैतिक नेतृत्व ही नहीं , हमारा धार्मिक व सामाजिक नेतृत्व भी खोखला हो चुका है ।रानी पद्मिनी को ख़िलजी की प्रेमिका बताकर वामपंथी व जेहादी तत्व वैचारिक स्वतन्त्रता की आड़ में भारतीय मानस के साथ एक भद्दा उपहास तो कर ही रहे हैं , साथ ही यह एक प्रयास है हमारी मातृशक्ति का व्यभिचारीकरण कर भारत के लोगों को उकसाने का ।
सवाल यह है कि कला या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इतिहास से छेड़छाड़ की इजाजत होनी चाहिए या नहीं?इससे पहले भी बॉलीवुड में कई ऐसी फिल्में बनीं हैं, जिनमें इतिहास को गलत तरीके से पेश किया गया है। प्रसंग पूरी तरह बदल दिए गए। कथानक विरोधाभारी रहे। दरअसल, बॉलीवुड अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हदें लाघंता रहा है।
उस सती स्त्री के महान बलिदान को यदि मुम्बई का एक भांड अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर व्यभिचार में परिवर्तित करना चाहता है पर क्या वे चार पैसे कमाने के लिए अपनी माँ के जीवन पर भी ऐसा चलचित्र बनाएँगे????