क्या कन्वर्जन छल, बल, धन से हो रहा है? क्या इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनना चाहिए। अगर सभी मत पंथ समान है तो संघ कन्वर्जन का विरोध क्यों करता है।
एक गुलाबराव महाराज हो गए। उनको भी यही आखिरी वाला प्रश्न पूछा गया था। उन्होंने जो उत्तर दिया वो ही मैं आपको देता हूं। अगर सभी मतपंथ समान है तो कन्वर्जन की आवश्यकता क्यों है? क्यों आप इधर से उधर ले जाने का प्रयास कर रहे हो। सभी मतपंथ समान है न, तो जिसमें है वो उसमें पूर्णतः प्राप्त करेगा। तपस्या करेगा तो। आप उसको फिर भी इधर ला रहे हो तो आपका उद्देश्य उसका अध्यात्म सिखाना नहीं है। भगवान मार्केट में बेचा नहीं जाता, भगवान जबरदस्ती स्वीकार नहीं किया जाता। लेकिन छल, बल और दल से होता है। तो वो होना ही नहीं चाहिए क्योंकि उसका उद्देश्य मनुष्य की आध्यात्मि उन्नति नहीं है, दूसरे कुछ उद्देश्य छिपे हैं, आप विद्वान लोग हैं मैं उसका वर्णन क्यों करूं। आप देश-विदेश के इतिहास पढ़ लीजिए उसमें कन्वर्जन करने वालों के क्या रोल रहे हैं। इसका डाटा निकालिए, सत्य डाटा। संघ वालों ने न लिखा हुआ डाटा। संघ के विरोधी विचार रखने वालों ने भी इसके बारे में लिख है। वो देख लीजिए तो आपको पता चलेगा कि इसका विरोध क्यों करना चाहिए। संघ वाले क्यों करे, पूरे समाज में ऐसे कन्वर्जन का विरोध करना चाहिए। ये मेरा मामला है मैं किसकी पूजा करूं। मेरे मन में आता है। एक नारायण वामन तिलक थे, ब्राम्हण थे। अच्छा परिवार था, उनके मन में आ गया कि ये यीशू का रास्ता ठीक है। और उन्होंने अपने आपको इसाई बना, वो पास्टर बने। उनकी पत्नी ने अपना धर्म नहीं छोड़ा। वो बने रहे। और संघ वालों सहित सब लोग महाराष्ट्र में उनको बड़े आदर की दृष्टि से देखते हैं। उन्होंने कन्वर्सन किया इसकी बात कोई नहीं करता। उन्होंने देशभक्ति की उत्तम-उत्तम कविताएं हमको दीं। और सात्विक जीवन का अर्थ अपने जीवन में, समाज में रखा। क्योंकि वो छल-बल से कन्वर्ट नहीं हुए थे, उनके मन में परिवर्तन आया। इसको तो मान्यता है हिन्दुओं में। लेकिन ऐसा नहीं होता है। चर्च में आने के लिए इतने रुपये देंगे, ऐसा नहीं होता है, उसका विरोध करना ही चाहिए। अध्यात्म, ये बेचने की चीज नहीं है।