भारत देश में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ जनता , संविधान एवं राजनेताओं के लिए अलग अलग क्यों हैं ?
मनीषा सिंह सूर्यवंशी : संविधान के अनुसार धर्मनिरपेक्ष का अर्थ होता है सब एक हैं चाहे वो किसी भी धर्म का हो सबके लिए अधिकार भी एक समान होना चाहिए और सबको साथ मिलकर रहना हैं और देश की जनता धर्मनिरपेक्ष की इसी परिभाषा की सम्मान करते हैं और इसी परिभाषा के साथ चलते हैं , परन्तु इस देश के राजनेता बिलकुल इसके उल्टा चाल चलते हैं किसी एक मज़हब को अतिमेह्त्वा देना वोटबैंक की राजनीती में अंधे राजनेताओं की राजनीती से ग्रस्त भारतवर्ष की दुर्दशा के फलस्वरूप दो धर्म में दंगे होना किसी एक मज़हब को ज्यादा आंकना और दुसरे धर्म की अवहेलना एवं तिरस्कार करना यही मुख्य कारण बनता हैं दंगे का ।
पश्चिम बंगाल में धर्मनिरपेक्ष का परिभाषा संविधान की परिभाषा से बिलकुल पृथक् हैं जैसे माननीय मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने धर्मनिरपेक्षता की नयी मिसाल कायम करते हुए ‘इन्द्रधनुष’या ‘रामधनु‘ से बदल कर ‘रंगधनु’ यानी रंगों का धनुष कर दिया , आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन्द्रधनुष के नाम बदलने का निर्णय3 महीने पुराना है लेकिन ७क्लास में नये स्तर से इसकी पढाई शुरू हो चुकी है बता दें इस क्लास में परिवेश पर्यावरण और विज्ञान शीर्षक पुस्तक में रामधनु को जहाँ इन्द्रधनुष लिखा गया ।
दूसरा परिभाषा मुहर्रम पर हिन्दुओं की दुर्गा उत्सव के समय मूर्ति विसर्जन पर रोक लगायी गयी जिसे हाईकोर्ट ने ममता सरकार के खिलाफ एक बड़ा निर्णयसुनाते हुए कहा था हाईकोर्ट ने कहाथा ‘मूर्ति विसर्जन प्रतिदिन होगा, विसर्जन के लिए लिए कोई एक दिन तय नहीं किया जा सकता है , कोर्ट ने कहा था कि मुहर्रम के दिन विसर्जन पर रोक नहीं लग सकती. कोर्ट नेमुहर्रम और विसर्जन का रूट अलग करने को कहा है. कलकत्ता हाईकोर्ट ने मूर्ति विसर्जन को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी।
तीसरा परिभाषा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा परिचालित की जानेवाली १२५ विद्यालयों को रद्द किया गया कारण पश्चिम बंगाल सरकार को भगवाकरण होते हुए दिख रह था पश्चिम बंगाल का , तो इसमें मेरा प्रश्न यह हैं मदरसा से हरयालीकरण भी हो सकता हैं तो मदरसा पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए था (भारत देश का संविधान भी यही कहता हैं सब एक समान है और सबका समान अधिकार हैं), चौथा वामपंथ के ३४ वर्ष की शासनकाल से भी अधिक सांप्रदायिक दंगाममता सरकार के समय में हुआ हैं कालियाचौक दंगा (मालदा) , इल्लाम्बज़र, बीरभूम दंगा , हाज़ीनगर दंगा , धुलागढ़ दंगा, कलकत्ता मेटियाब्रुज़ जलांगी दंगा, पश्चिम मिदनापुर , नदिया दंगा,डायमंड हार्बर उश्ती दंगा , बर्धमान रसूलपुर दंगा , इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार बंगाल में वर्ष २००८ में १२ दंगा , वर्ष २००९ में १२ दंगा , वर्ष २०१० में ३१ दंगा , २०११ में ४० दंगा , २०१२ में ३१ दंगा, २०१३ में १०६ दंगे हुए हैं एवं २०१५ से २०१७ तक आकड़े घटने की जगह बढ़ी है ।
Applications_MBB_26_02_2018-1 चौथा ममाता बनर्जी की सरकार की तुष्टिकरण का एक नमूना और देखने को मिला कोलकाता म्युनिसिपल कारपोरेशन ने हेल्थ डिपार्टमेंट में सचिव पद के लिए लोगो से आवेदन मंगाए है, और इसके लिए बाकायदा KMC ने अपनी वेबसाइट पर इस्तिहार भी लगाया है, पर इस में साफ़ लिखा हुआ है की इस आवेदन के लिए सिर्फ मुस्लिम ही अप्लाई करे, कैंडिडेट मुसलमान ही होना चाहिए, सिर्फ मुस्लिम को ही ये नौकरी दी जाएगी अब प्रश्न यह हैं क्या आवेदन किसी मौलवी, इमाम के पद के लिए था ???? दिए गए प्रचार से यही कह सकते हैं नही , आवेदन तो सचिव के लिए मंगाए गए है, पर सिर्फ मुस्लिम कैंडिडेट ही आवेदन कर सकते है ऐसा क्यों ??????? अगर ममता सरकार नौकरी के लिए यह लाइन लिख सकती है “Candidate Should Be Muslim” तो उन्हें चुनाव के समय में भी यह लाइन विशेषरूप से लिखना चाहिए “VotersShouldBeMuslim”क्योंकि जहाँ तक मुझे ज्ञात हैं लोकतंत्र चुनाव के तेहत उनकी सरकार हर धर्म के लोगों की सहमती एवं वोट से बनी है , और ममता सरकार के इस फैसले से कई सारे प्रश्न खड़े होते हैं क्या पश्चिम बंगाल की सरकार बंगाल को भारत क हिस्सा नहीं मानते हैं ??? कश्मीर की तरह पश्चिम बंगाल भी अपना अलग संविधान बनाने की और अग्रसर है ???? क्या सरकार संविधान से भी उप्पर हैं ???? क्या ममता सरकार के इस निर्णय से संविधान का अपमान नहीं हुआ है ?????क्योंकि संविधान में धर्म आधारित आरक्षण का कहीं उल्लेख नहीं है अब ऐसे में यह पश्चिम बंगाल की सरकार के समक्ष बहोत बड़ा प्रश्न खड़े करते हैं । जिसका उत्तर देना पश्चिम बंगाल सरकार का कर्तव्य बनता हैं ।
अंत में यही कहना चाहूंगी जो ममता सरकार भूल चुकी हैं की वो केवल एक धर्मविशेष समुदाय के लोगो का मुख्यमंत्री नहीं है 9.12 करोड़ आबादीवाली राज्य के मुख्यमंत्री है आप आज ऐसी परिस्तिथि आन पड़ी है बंगाल में दुसरे धर्म के लोग परेशांन होकर विकल्प की तलाश में जुट गया है, जिस वजह से बंगाल में दुसरे राजनैतिक दलों की जनाधार दिनों दिन बढ़ रही है।