के के शर्मा : युवाओ के लिए प्यार की परिभाषा है दिल का आदान प्रदान लेकिन अगर वैज्ञानिक तरीके से प्यार की परिभाषा देखीं जाए तो इसमें दिल की कोई भी भूमिका नहीं होती है . प्यार विशुद्ध रूप से दिमाग की देन है .कोई कहेगा दिल से होता है, कोई कहेगा दिमाग से होता है तो कोई कहेगा किस्मत से होता है. लेकिन मनोविज्ञान का कहना है कि प्यार दिमाग से होता है .अब बात आती है प्यार को दिल से क्यों जोड़ा जाता है या प्यार कि नीव दिल को ही क्यों माना जाता है. असल में जब व्यक्ति प्यार में होता है तो दिमाग में केमिकल लोचा हो जाता है यानी हार्मोन्स अपने व्यवहार से अलग दिखने लगते है जिसका असर हमारे शरीर पर साफ़ देखा जा सकता है जैसे पार्टनर के सामने आते ही बातें भूल जाना, दिल कि धड़कन तेज होना, हॉट सुख जाना, हथेलियों पर पसीना आना, आदि यानि मोटे तौर पर कह सकते है कि ये सब प्यार में होने के लक्षण है.प्यार या चाहत के लिए अभी तक दिल को दोषी माना जाता था, मगर अब हकीकत सामने आई है कि ‘लव एट फर्स्ट साइट’ यानी चेहरा देखते ही प्यार हो जाने की घटना मस्तिष्क का किया धरा होता है, चोट बेचारे दिल पर होती है।* *प्यार से जुड़ी हर इच्छा के लिए कोई न कोई हॉर्मोन जिम्मेदार होता है, जैसे परवाह करने की इच्छा ऑक्सीटोसिन और ताउम्र साथ रहने का इरादा वैसोप्रेसिन की वजह से बनता है.प्यार में पड़ने के बाद इतने हॉर्मोनों के स्त्राव से दिमागी तंत्रिकाओं को सक्रिय करने वाले घटकों के स्तर में बढ़ोत्तरी हो जाती है.यानी प्यार में पड़ने पर ही घटक सक्रिय होते हैं और इनके सक्रिय रहने की स्थिति में ही प्यार बना रह सकता है. और इसके लिए इंसान के पास एक अदद दिमाग (मस्तिष्क) होना अनिवार्य होता है क्योंकि प्यार दिमाग से ही होता है इसलिए हम कह सकते है लव इज एक्चुअली, स्टेट ऑफ माइंड………
मेरा आलेख आज वैलेंटाइन डे पर युगपक्ष में हैप्पी वैलेंटाइन डे