नीरज कुमार जोशी : कुछ लोग आजकल फेसबुक, व्हाट्सएप, हाईक हर जगह सिर्फ “HAPPY NEW YEAR” की पोस्ट कर रहे हैं या फिर पर्सनल मैसेज दे रहे हैं और कई लोग तो 31 दिसंबर की पार्टी मांग रहे हैं| और कैसी पार्टी…व्यभिचार, नशा यानि दारू, सिगरेट, चरस और साथ में निर्दोष प्राणियों को मारकर उनके मृतक शरीर को खा जाना यही है आजकल लोगों की पार्टी…. और यही है उनके New years के स्वागत का तरीका……. आप रात के समय नशे और व्यभिचार में लिप्त हैं, कानफोड़ू संगीत में ऐसे थिरक रहे हैं मानो आतंकी हमले में जान बचाने के लिए भाग रहे हों और बारह बजते ही एक दूसरे के उपर दारू छिड़कते हुए चिल्ला कर कहते हैं “HAPPY NEW YEAR 20…” क्या वास्तव में यही नववर्ष का आगाज है क्या ऐसे ही नव वर्ष का स्वागत किया जाना चाहिए?…
शास्त्रों में एक बात आती है कि, “एक होता है शुभ और एक है शुभ की तैयारी” माने यदि आपका दिन शुभ की तैयारी में बीतता है तो निश्चित ही आपकी रात शुभ होगी और यदि आपकी रात शुभ की तैयारी में बीतती है तो निश्चित ही आपका अगला दिन शुभ होगा… हमारा आने वाला दिन शुभ हो उसके लिए हमें अपने आज को शुभ की तैयारी में बिताना चाहिए|
क्या इस अंग्रेजी NEW YEAR में ऐसा ध्यान रखा जाता है? क्या इस अंग्रेजी NEW YEAR में आने वाला साल शुभ हो उसके लिए अपने आज (31st) को शुभ की तैयारी में बिताते हैं?
अरे जब यहाँ पर हमारा आज ही नशा, विषय – वासनाओं और व्यभिचार में बीत रहा है तब कैसे आने वाला दिन/साल शुभ होगा?
अब चलते हैं नववर्ष के शाब्दिक अर्थ की तरफ…. नववर्ष का शाब्दिक अर्थ है “नया साल” यानि जब प्रकृति में भी कुछ नयापन आ रहा हो, कुछ परिवर्तन हो रहा हो उस वक्त होना चाहिए “नववर्ष का आगाज” क्या आजकल कुछ परिवर्तन हो रहा है क्या प्रकृति में? और क्या रात के बारह बजे के घुप अंधेरे में कुछ नयापन आता है क्या प्रकृति में?…. यदि नहीं तब कैसा नववर्ष?….
अब तुलना करता हूँ हिन्दुओं के नववर्ष की अंग्रेजी NEW YEAR से……
भारतीय नववर्ष चैत्र शुदी १ को मनाया जाता है, शुदी ‘शुक्ल पक्ष’ का संक्षिप्त रूप है। और शुदी १ का मतलब शुक्ल पक्ष का प्रथम दिन है। इसका मतलब यह है कि हमारा नववर्ष चैत शुक्ल प्रतिपदा को शुरू होता है और इस दिन हम ब्रह्म मुहूर्त में उठकर बदन की सरसों के तेल से मालिश करने के उपरांत नित्य कर्म से निवृत हो सूर्योदय के समय नहा धोकर भगवान के भजन कीर्तन के साथ नववर्ष का स्वागत करते हैं| यहाँ बदन पर सरसों के तेल लगाये जाने का विधान है क्योंकि इससे मन में सात्विकता आती है और मन विषय – वासनाओं से मुक्त रहता है ताकि हमारा ध्यान शुभ की तैयारी में रहे जिससे कि आने वाला वर्ष शुभ हो| इस वक्त प्रकृति में भी परिवर्तन होते हैं जैसे पेड़-पोधों मे फूल, पत्तियां, मंजर, कलियां आदि आना शुरू होते है| वातावरण मे एक नया उल्लास होता है जो मन को आह्लादित कर देता है| कहा जाता है कि यह दिन कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिन है इसीलिए सारी सृष्टि सबसे ज्यादा चैत्र में ही महक रही होती है। इस समय न तो अधिक शीत होती है और न ही अधिक गर्मी। पूरा पावन काल। इसीलिए ऎसे पावन समय में सूर्य की चमकती किरणों की साक्षी में चरित्र और धर्म धरती पर स्वयं भगवान श्रीराम का रूप धारण कर उतर आए। श्रीराम का अवतार चैत्र की शुक्ल नवमी को हुआ था।
ऐसे संसारव्यापी निर्मलता और कोमलता के बीच प्रकट होता है हमारा अपना नया साल “विक्रम संवत्सर” । विक्रम संवत का संबंध हमारे कालचक्र से ही नहीं, बल्कि हमारे सुदीर्घ साहित्य और जीवन जीने की विविधता से भी है। कहीं धूल-धक्कड़ नहीं, कुत्सित कीच नहीं, बाहर-भीतर जमीन-आसमान सर्वत्र स्नानोपरांत मन जैसी शुद्धता। पता नहीं किस महामना ऋषि ने चैत्र के इस दिव्य भाव को समझा होगा और किसान को सबसे ज्यादा सुहाती इस चैत्र मेे ही काल की शुरूआत मानी होगी। वैसे तो वसंत ऋतु का आगमन फाल्गुन में ही हो जाता है पर पूरी तरह से व्यक्त चैत्र में ही होता है इस समय सारी वनस्पति और सृष्टि प्रस्फुटित होती है। पके मीठे अन्न के दानों में, आम की मन को लुभाती खुशबू में, गणगौर पूजती कन्याओं और सुहागिन नारियों के हाथ की हरी-हरी दूब में तथा वसंतदूत कोयल की गूंजती स्वर लहरी में हर जगह नयापन दिखाई देता है चारों ओर पकी फसल का दर्शन आत्मबल और उत्साह को जन्म देता है। खेतों में हलचल, फसलों की कटाई, हांसिए का मंगलमय खर-खर करता स्वर और खेतों में डांट-डपट-मजाक करती आवाजें। जरा दृष्टि फैलाइए, भारत के आभा मंडल के चारों ओर। चैत्र क्या आया मानो खेतों में हंसी-खुशी की रौनक छा जाती है |
नया फसल घर मे आने का समय भी यही है | इस समय प्रकृति मे उष्णता बढ्ने लगती है |जिससे पेड़ -पोधे ,जीव-जन्तु मे नव जीवन आ जाता है| लोग एकदम मदमस्त हो गीत गुनगुनाने लगते है| ऐसे प्रकृति के नयेपन के साथ सूर्य की सुनहरी रोशनी के बीच आता है हमारा नववर्ष और जिसके लिए पिछले कल को हमने शुभ की तैयारी में बिताया है तो आने वाला साल भी शुभ ही होगा
जो भारतीय इस लेख से संतुष्ट है | इसे अधिक से अधिक लोगो के बीच शेयर करे और देश को बचाए | चैत शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष मनाने का संकल्प ले | 31 दिसंबर की आधी रात और 1जनवरी के प्रारंभ में नशे और व्यभिचार के साथ शोरगुल में आप जो करते हैं कम से कम वह नववर्ष तो नहीं है और न ही वह शुभ की तैयारी है|
@नीरज भाई जी… राक्षस लोग का नया साल कुछ ऐसा ही होता है….