गोपुत्र कृष्णानन्द : आज एक लेख पढ़ा समाचार पत्रों में कुछ लोगो ने गुस्सा दिखाया कुछ लोगो ने फाँसी की मांग तक कर डाली समाचार पत्र हाथ में लिए मैंने सोचा कोई ऐसा कैसे कर सकता है फिर सोचा ये प्रतिक्रिया नही बीमारी के लक्षण है सबसे भयानक वाले बीमारी तो कुछ और है
कहि आशिफ़ा को लेकर प्रदर्शन तो कही गीता क्या यही देश की बेटियों के लिए सम्मान बचा है कि जन्म लेते ही लोग उनके साथ वासना का नँगा खेल खेल जाते है आज नारी समाज का जवाब चाहता हु तभी तुम्हें पत्र लिखने का ख्याल आया क्योंकि इस सब का जवाब तो तुम भी ढूढ रही होगी
अभी तुम खाना बना रही होगी मुस्कुराते हुए ये सोचकर कि पति थका हरा आएगा और पूरा परिवार साथ में बैठकर भोजन करेगे ,
तुम भाई के लिए शर्ट खरीद रही होगी ये सोचकर कि भाई पिकनिक जाने में माँ पिता से परमिशन दिलाने में मदद करेगा ताकि घूमने जा सको ,मिठाई बना रही होगी कि बेटा पता नहीं कब लौटेगा कब मिठाई खायेगा तो यह याद कर फोन करेगा
इस वजह से शायद तुम इतना लम्बा पत्र न पढ़ सको वैसे भी जिम्मेदारिया है तुम पर
दरअसल हमने ही तय किया है कि जिम्मेदारियां ज्यादातर तुम्हारी ही रहेगी और अधिकार ज्यादातर हमारे
ये भी हमने तय किया है कि तुम अपनी जिंदगी कैसे जियोगी तुम क्या पहनोगी,क्या करोगी, कहा जाओगी, कैसे बात करोगी, किस किस से बात करोगी,यहां तक की किस किस के साथ उठोगी बैठोगी सोओगी, कैरियर से लेकर मरना तक कि तुम्हारी तुम्हारी जिंदगी पर अधिकार हमारा होगा,
हह…… तुम्हें इंसान हम मानते ही कहा है तुम तो एक साधन हो हमारी जिंदगी को आसान बनाने का, इसलिए तुम्हारा महत्व ,तुम्हारी उपयोगिता, और आज्ञाकारिता, से तय करते हैं और शायद इसलिए हम तुम्हारे पहरेदार बन जाते है ,तुम्हे नियमो में बांध कर और बचाने का नाटक करते हैं हमारे ही किरदार से जो तुम्हें महज एक देह समझता है जिसका कोई आत्मा या मन नही होता, बिल्कुल एक वस्तु की तरह,
पर तुम ए सब क्यो मानती हो ?
क्योंकि जब तुम ये सब मानती हो तो हम तुम्हारी तारीफ करते हैं तुम्हारा ख्याल रखते है तुम्हें देवी मानते हैं ,और तुम इन सब से खुश हो जाती हो,
बहुत भोली हो तुम ,तुम ये नही समझ पाती की इतने से दिखावे के सहारे हम तुम्हारे लिए दायरा तय कर देते है जिससे बाहर नही जा सकती
न ही अपने मन का कर सकती जब कभी गलत काम कर भी देती हो हम नराज हो जाते है और खरी खोटी सुना देते है ,
आज हम तुम्हें सिर्फ पुरुषों की आबादी बढ़ाने का जरिया मानते है और गलती से कन्या पेट में आ गई तो मारदेते है ताकि महिलाएं सीमित रहे वही महिला जिसका हम शोषण करने में नही हिचकते ,उत्पीड़न कर देते है, बलात्कार करने में जरा भी नहीं हिचकते क्योकि महिलाएं होती ही इन्ही के लिए है, आये दिन महिलाओं का शोषण, उत्पीड़न, बलात्कार हो रहा है, दहेज के लिए मारी जा रही हैं मगर तुम चुप हो , और हम अपराधी होने के बाद भी केंडल मार्च, धरना प्रदर्शन, आंदोलन कर तुम्हारे लिए सुरक्षा की मांग कर तुम्हे सुरक्षित रखने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए प्रयास करते हैं जबकि इन सब के जिम्मेदार हम खुद ही है
ऑफिस में बॉस से डर लगता हैं पर जब तुम हमे बताती हो तो तुम्हे समझा बुझा कर बॉस के शोषण को गलत कह देते है कि ऐसा ओ नही कर सकते और एक दिन तुम शोषण का शिकार हो जाती हो,जिसे हम घर की इज्ज़त नीलाम होने के डर से दबा देते है,
घर में देवर ससुर मामा चाचा आपका शोषण करते हैं मगर उसे भी घर की इज्ज़त की दुहाई देकर तुम्हे चुप रहने के लिए कहते है, पर क्यो ?
पर आज सोच रहा हूं आज आप को बोलने का मौका दु आज तुम अपने दिल की बात हमसे कहो क्योंकि आज जमाना बदल गया है सबको जीने का हक है मै नही चाहता हूं कि तुम पुरुषों के अत्याचार को आगे भी बर्दाश्त करो ,