“जिस राष्ट्र की संस्कृति के पास अपने लिए इष्ट को जन्म देने की क्षमता न हो वह अपने लिए आराध्य, मान्यताएं और विचारधारा आयत करने के लिए स्वतंत्र है; आम तौर पर यह परिस्थिति वैसे ही राष्ट्रों की होती है जहाँ के लोगों में आत्मविश्वास, पुर्सार्थ, दृढ़निश्चय और सत्य के ज्ञान और उसके प्रति समर्पण का आभाव हो ;
एक राष्ट्र के रूप में भारत के पास ऐसी कोई समस्या नहीं; यह राम, कृष्णा, बुद्ध, महावीर, और गुरु नानक का देश है और इसलिए यह स्वाभाविकतः ही हिन्दू राष्ट्र है।
इस्लाम हो या ईसाई, उन धर्मों का जन्म भारत में नहीं हुआ, फिर भी अगर भारत ने उन धर्मों को स्वीकारा है तो केवल इसलिए क्योंकि हमारी संस्कृति ने ईश्वर के विविध प्रारूप और धर्म को सत्य के रूप में स्वीकार करना सिखाया है।
वर्तमान की परिस्थिति में जब हिंदुत्व ही अपनी वास्तविकता के बोध से वंचित है तो किसी अन्य धर्म अथवा मान्यताओं से अपनी सीमित सैद्धान्तिक समझ के आधार पर महत्व के लिए तुलना कर हिंदुत्व को श्रेष्ट सिद्ध करने के किसी भी प्रयास का मैं समर्थक नहीं, इससे बेहतर… मैं हिंदुत्व के सिद्धान्तों को कर्मों के द्वारा व्यावहारिक जीवन में रूपांतरित कर यथार्थ में आदर्श के उदाहरण को प्रस्तुत करने के किसी भी प्रयास को मानूँगा और उसका समर्थन भी करूँगा;
भारत हिन्दू राष्ट्र है …और इसीलिए यहाँ सभी धर्मों का सामान रूप से सम्मान किया जाता है; हम इस्लाम और ईसाई धर्म का सम्मान करते हैं क्योंकि भले ही उन धर्मों का जन्म भारत में न हुआ हो पर आज कई भारतीय ऐसे हैं जिनकी पीढियां भारत में जन्मी है और उन धर्मों को मानती है; हम अपने भारतीय बंधुओं का सम्मान करते हैं इसलिए हमारे मन में उनकी मान्यताएं, विचार और धार्मिक भावनाओं का सम्मान है ; वैचारिक विविधताओं को स्वीकार करना, यही तो हमारे पारिवारिक मूल्यों ने हमें सिखाया है ..
पर सम्मान परस्पर होता है; हिंदुओं को चाहिए की वो महत्व के लिए तुलना पर आश्रित न रहे और अपने कृत से अपने संस्कार व संस्कृति के लिए सम्मान अर्जित करें और यही अपेक्षा हम दूसरे धर्मावलंबियों से भी करते हैं;
वास्तविकता के परिदृश्य के लिए केवल दो ही विकल्प हैं; हम या तो जो देखें उसी पर विश्वास करें या फिर किसी विषय में हमारा विश्वास इतना दृढ़ हो की वह अपने प्रयास के बल से अपनी परिकल्पना को ही यथार्थ में रूपांतरित कर दे ;
परिवर्तन के प्रभाव में परिस्थितियों का बदलना भी स्वाभाविक है ऐसे में, प्रतिकूल व् विषम परिस्थितियों में संभव है की यथार्थ के पास विश्वास के लिए कोई कारन न हो और इसीलिए, हिंदुत्व ने अपनी भक्ति, प्रेम और कला से इश्वर्य तत्व को यथार्थ में मूर्त रूप प्रदान कर उसकी आराधना करता है ; अब अगर किसी को मूर्ति पूजा से शिकायत है तो मैं यही कहूंगा ही उसे प्रभाव से कारन तक सोच पाने की कला को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए।
अगर सत्य के लिए किया जाने वाला संघर्ष ही ‘जेहाद’ है तो हमें भी जेहादी मान लिया जाए क्योंकि हम भी सत्य के संघर्ष के समर्थक हैं, पर इसके लिए, सत्य की सही समझ होना अनिवार्य है; अपनी समझ से सत्य को परिभाषित कर जिहाद के नाम पर किये जाने वाले पाशविक कृत्यों को कोई भी धर्म किसी भी तर्क से सही नहीं सिद्ध कर सकता ;
इस्लाम ने भारत को कला और संस्कृति के क्षेत्र में बहोत कुछ दिया है, क्यों न अब भारतीय संस्कृति और ज्ञान की मदद से वह अपने सत्य की समझ को और विस्तृत करे; मानवता के उत्थान और विश्व के कल्याण की दृष्टि से शायद अब भारत का इस्लाम को देने की बारी है। और अगर संसार की विविधता में ही इसकी सम्पूर्णता निहित है तो भारत का इस्लाम तथा अन्य किसी धर्म के सन्दर्भ में ऐसे किसी योगदान से किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए;
आज धर्म के आधार पर ईश्वर को परिभाषित करने के बजाये ईश्वर के ज्ञान के आधार पर धर्म के व्याख्या की आवश्यकता है। और अगर सृष्टि का कल्याण और मानवता का उत्थान ही किसी भी धर्म का उद्देश्य है तो विभिन्न धर्म के मान्यताओं की विविधता से अधिक उनके उद्देश्य की समानता का महत्व होना चाहिए; क्या आपको ऐसा नहीं लगता ?”