डॉ विवेक आर्य : पूरे देश विशेष रूप से दिल्ली में तो मुसलमानों से सम्बंधित जो भी कुछ टुटा फुटा बचा हैं उसका तो पुनरुद्धार मुस्लिम वोटों के लालच में किया जा रहा हैं मगर महाराणा प्रताप से सम्बंधित इस ऐतिहासिक धरोहर की यह हालत चिंताजनक हैं।
इस गुफा में बैठ के राणा प्रताप ने खायीं थीं घास की रोटियां, मायरा की गुफाः यह है मेवाड़ की विरासतों में शुमार मायरा की गुफा। प्रकृति ने इस दोहरी कंदरा को कुछ इस तरह गढ़ा है मानो शरीर में नाडिय़ां। इसमें प्रवेश के तीन रास्ते हैं, जो किसी भूल-भुलैया से कम नहीं। हर तरफ से सुरक्षित। यही तो कारण था कि महाराणा प्रताप ने इसे अपना शस्त्रागार बनाया था। मायरा की गुफा में अश्वशाला और रसोई घर भी है। अश्वशाला में चेतक को बांधा जाता था, इसलिए इसे आज भी पूजा जाता है। पास ही मां हिंगलाज का स्थान है। प्रकृति और इतिहास की यह विरासत अरसे से अनदेखी का शिकार है। ध्यान नहीं दिया तो यह वापस प्रकृति में ही विलीन हो जाएगी।………हल्दी घाटी युद्ध से पहले और बाद में भी महाराणा प्रताप का शस्त्रागार और शरण स्थली, 1572 से 1597 के दौर में वीरवर प्रताप के साथ इस स्थल को पहचान मिली। यहां मां हिंगलाज का प्राचीन स्थान भी है।.., मोड़ी पंचायत (गोगुंदा) उदयपुर से दूरी, करीब 30 किमी.मायरा गुफा में स्थित रसोई संरक्षण के अभाव में प्रकृति में विलीन होती जा रही है।
क्या महाराणा प्रताप से सम्बंधित ऐसा महान स्मारक का पुनरुद्धार नहीं होना चाहिए?
जानिए कैसे पहुँचे मायरा की गुफा- दोस्तों इस ऐतिहासिक स्थान तक पहुँचने हेतु आपको उदयपुर के उत्तर पश्चिम में 35 किलोमीटर दूर गोगुन्दा पहुँचना होगा। गोगुन्दा आरावली की पहाड़ियों में स्तिथ सुरम्य व रमणीय स्थान है। इसी गोगुन्दा में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ था। महाराणा ने इसे अपनी राजधानी घोषित करके यहीं से अपने कार्यो का संचालन भी किया था।
निवेदक- डॉ विवेक आर्य