देश को आजाद कराने में कितने ही शूरवीरों ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी। इनमें से कुछ क्रांतिकारियों को वो मुकाम हासिल नहीं हुआ जो उन्हें हासिल होना चाहिए था। जंग-ए-आजादी के ऐसे ही वीर थे मदनलाल ढींगरा
हर तरफ दमन, उत्पीड़न, अत्याचार, जुल्म, ज्यादती का बाज़ार गर्म था। गोरों की हुकुमत का हर दिन उनकी करतूतों से स्याह होता जा रहा था।
तब एक नौजवान अपने दम पर अंग्रेजी हुकुमत को ललकारता है। ऐसे ही थे आजादी के मतवाले मदन लाल ढींगरा, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी।
वो उन क्रांतिकारियों में शुमार थे जो ब्रिटिश सरकार के गढ़ यानि लंदन में जाकर गरजे। वो लंदन में विनायक दामोदर सावरकर और श्याम जी कृष्ण वर्मा जैसे कट्टर देशभक्तों के संपर्क में आए।
ढींगरा अभिनव भारत मंडल के सदस्य होने के साथ ही इंडिया हाउस नाम के संगठन से भी जुड़ गए जो भारतीय विद्यार्थियों के लिए राजनीतिक गतिविधियों का आधार था।
इस दौरान सावरकर और ढींगरा के अलावा ब्रिटेन में पढ़ने वाले बहुत से भारतीय छात्र भारत में खुदीराम बोस, कनानी दत्त, सतिंदर पाल और कांशीराम जैसे देशभक्तों को फांसी दिए जाने की घटनाओं से बैचेन हो उठे और उन्होंने बदला लेने की ठानी।
1 जुलाई 1909 को इंडियन नेशनल एसोसिएशन के लंदन में आयोजित वार्षिक दिवस समारोह में बहुत से भारतीय और अंग्रेज़ शामिल हुए। ढींगरा इस समारोह में अंग्रेज़ों को सबक सिखाने के मकसद से गए थे।
अंग्रेज़ों के लिए भारतीयों से जासूसी कराने वाले ब्रिटिश अधिकारी कर्ज़न वाइली ने जैसे ही हॉल में प्रवेश किया तो ढींगरा ने रिवाल्वर से उस पर चार गोलियां दाग़ दी। उन्हें पकड़ लिया गया।
केस चला और उन्हें मृत्युदण्ड दिया गया। 17 अगस्त 1909 को फांसी दे दी गयी। इस महान क्रांतिकारी ने अपने रक्त से राष्ट्रभक्ति के जो बीज बोए वो हमारे देश के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान है। ऐसे वीर जवान को शत शत नमन।