पवन, चंडीगढ़ : वर्ष 1947 में भारत को आजादी प्राप्त हुई, इसी के साथ भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के प्रावधानों के अंतर्गत भारत का अपना शासन अधिकार स्थापित करने की स्वतंत्रता भी प्राप्त हुई । अगस्त 1947 के दौरान भारत मे लगभग 500 राजसी रियासतें थी और उनको एक शासनसत्ता में मिलाने के लिए विलय किया गया | इसी श्रंखला की कड़ी में के रूप में सन 1947 के अक्टूबर माह कि 26 तारीख को श्रीमान इंदर महिंद्र राजराजेश्वर महाराजाधीराज श्री हरि सिंह जम्मूकश्मीर नरेश तथा तिब्बतआदिदेशापति जी ने जम्मू कश्मीर का विलय भारत से अधिकारिक रूप से किया| 26 अक्टूबर को महाराजा श्री हरि सिंह जी ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर करके अपना आधिपत्य भारत में सम्मिलित कर दिया और इसकी पुष्टि उस वक्त के मौजूदा भारत के गवर्नर जनरल श्री माउंटबेटन ऑफ बर्मा ने विलयपत्र को स्वीकार करके की थी ।
विलय पत्र कोई लंबा चौड़ा कागज नहीं था अपितु मात्र दो पन्नों का था, जिसमें की महाराजा श्री हरि सिंह जी ने यह घोषणा की थी की वह अपना अधिपत्य भारत में सम्मिलित करते हैं और भारत की शासनसत्ता और शासन अधिकार को मानते हैं
जिस समय विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने की चर्चाएं महाराजा हरि सिंह जी कर रहे होंगे, तब अंग्रेजों ने अपने मन से यह मान लिया था कि जम्मू कश्मीर का विलय पाकिस्तान में संभव है| जिसका की कारण यह माना जा सकता है कि महाराजा हरि सिंह जी ने पाकिस्तान के साथ “स्टैंड स्टिल एग्रीमेंट” किया था जिसके चलते जम्मू कश्मीर और पाकिस्तान के मध्य में खुले में व्यापार और संवाद हो सकता था| अपितु अंग्रेजों की सोच के विपरीत महाराजा श्री हरि सिंह जी ने आज ही के दिन सन 1947 में जम्मू कश्मीर का विलय भारत से कर दिया था |इस का खुला विरोध पाकिस्तान ने पूरे जोर से किया था|
आज भी विलय के 71 वर्ष बाद भी जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान के द्वारा दिए गए अधिकार सामान्यजन पूर्ण रूप से अपने उपयोग में नहीं ले पा रहे हैं| जिसकी वजह से वहां रहने वाले सामान्यजन का दिन – प्रतिदिन, एक या दूसरे प्रकार से शोषण हो रहा है चाहे वह मानव अधिकार हो या राजनीतिक या सामाजिक अधिकार हो | आज वहां पर रहने वाली महिलाएं समान अधिकार से वंचित है | इसी प्रकार वहां के सफाईकर्मचारी, जोकि पंजाब राज्य से जम्मू कश्मीर कई वर्षों पहले लेकर गए लेकर जाए गए, अपने अधिकारों से और मानव अधिकारों से वंचित है और उनके लिए लड़ रहे हैं परंतु वहां के अलगाववादी नेता अपनी राजनीतिक रोटी सेकने में व्यस्त है और विलय पत्र को अपने अपने अनुरूप तोड़ मरोड़ के पेश करके, संविधान के अनुच्छेदो को उनके वास्तविक स्वरूप में प्रस्तुत करके लोगो के साथ छल की राजनीति कर रहे है।
अलगाववादी नेता विलय दिवस का विरोध करते हैं और इसे काला दिन मानते हैं परंतु महाराजा हरि सिंह जी बहुत ही दूरदर्शी थे जिन्होंने अपनी दूरदर्शीता का उदाहरण देते हुए जम्मू कश्मीर का विलय 26 अक्टूबर 1947 को भारत के साथ किया| उन्होंने जम्मू कश्मीर की उन्नति के सपने देखे थे| उन्होंने जम्मू कश्मीर को केसर के बाग के रूप में देखा था, परंतु आज वहां पर अलगाववादियों ने अपने स्वार्थ के लिए उसे बारूद का ढेर बना रखा है|
इस 71वे विलय दिवस पर हमें महाराजा श्री हरि सिंह जी के सपनों वाले जम्मू कश्मीर को शिखर तक पहुंचाने की इच्छा रखते हुए एकजुट होकर जम्मू कश्मीर की उन्नति के लिए प्रयत्न करना चाहिए और हम सब को यह भी प्रयत्न करना चाहिए कि संविधान के अनुच्छेद अपने वास्तविक भावार्थ में सामान्यजन को पहुँचे।