बोलो “जय श्रीराम”…!
यशर्क पांडे: राम का नाम लेने से क्या होता है? रामनाम कहने से पापों का नाश होता है। कष्ट दूर होते हैं। त्रिविध तापों का नाश होता है। मोक्ष मिलता है। लेकिन यह सब तो मनुष्यों के लिए है न? राक्षस जब राम नाम लेते हैं तब उनका क्या होता है? गोस्वामी जी ने इसका उत्तर दिया है। शूर्पनखा नाक कान कटाने के पश्चात खर-दूषण के पास गई। वहाँ उसने रोना-धोना मचाया जिससे राक्षस क्रोधित हो युद्ध हेतु आतुर हुए।
लेकिन खर-दूषण, राम-लक्ष्मण की सुंदरता पर मोहित हो गए थे, इतना कि उन्होंने उन्हें ‘नर भूषण’ तक कह दिया। युद्ध से पूर्व उन्होंने अपने सचिवों को बुलाकर स्ट्रिक्ट इंस्ट्रक्शन दिए कि देखो बंदी बना लेना लेकिन राम लक्ष्मण की हत्या मत करना। इसके पश्चात खर, दूषण और त्रिशिरा समेत चौदह हजार राक्षसों की सेना से भगवान राम ने अकेले युद्ध किया था। यह देख कर देवता भयभीय हो गए थे- “सुर डरत चौदह सहस प्रेत बिलोकि एक अवध धनी।” प्रभु बाण मारते जाते थे किंतु राक्षस मरते नहीं थे गिरकर पुनः उठ जाते थे।
तब राम ने माया का आह्वान किया। माया के प्रभाव से सभी राक्षसों को एक दूसरे में राम दिखने लगे। राम-राम कहते हुए वे एक दूसरे को ही मारने लगे। इस प्रकार आपस में ही लड़ मरे और निर्वाण को प्राप्त हुए- “राम राम कहि तनु तजहिं पावहिं पद निर्बान।”
मानस के इस वृत्तांत में समझने को बहुत कुछ है। अवार्ड वापसी गैंग अब सेलेक्टिव लिंचिंग सीकर्स का चोला पहनकर सामने आया है। पहले तो लोकतंत्र आदि खतरे में था लेकिन अब जाकर इनके मुँह में रामनाम आया है।
एक दिन आएगा जब ये एक दूसरे को ही राम समझकर मारने लगेंगे। अवार्ड लौटंकी से लेकर अब तक जितने भी पत्र आदि लिखे गए हैं या ‘मुहिम’ चलाकर हस्ताक्षर करवाए गए हैं उनकी संख्या चौदह हजार नहीं हुई है। जब एक अकेला रघुकुल शिरोमणि चौदह हजार को समाप्त कर सकता है तो उसके नाम से मोहित हुए ये आजकल के अर्बन नक्सल रूपी राक्षस तो कुछ भी नहीं है। ये बस राम राम कहते रहें इनका उद्धार इसी से हो जाएगा।
साभार
Yashark Pandey ji
सनद रहे……
तज्यो पिता प्रहलाद, विभीषण बंधु , भरत महतारी ।
बलि गुरु तज्यो, कंत ब्रज-बनित्नहिं भए मुद मगलकारी।
पूरी दुनिया में सब छूट जाए तो छूट जाए “ जय श्री राम” का उद्घोष न छूटे….!