विजय तेवाडी, भवाली, नैनीताल : जागेश्वर धाम में अनेक देवताओं का निवास स्थान है। इसलिए कहाँ गया है। देवता देखण जागेश्वर, गंगा नाणी बागेश्वर। जागेश्वर धाम शिव की तपोस्थली है। इस स्थान पर दक्सप्रजापति के यज्ञ को विध्वसं कर सती की राख लपेटकर यहाँ पर झांकरसेन में शिव ने तपस्या की थी। यह एक पौराणिक कथा है। इसी स्थान में कई ॠषि मुनि अपनी पत्नियो के साथ रहते थे। एक बार ॠषिमुनियो की पत्नियाँ जगंल गयी थी। वह शिवशंकर के नीले शरीर को देखकर मोहित होकर बेहोश हो गयी थी। जब ॠषिमुनियो ने अपनी पत्नियो को बेहोश देखा तो उन्होने भगवान शिवशंकर को श्वाप दे दिया कि आपका लिंग कट कर गिरे। भगवान शिव शंकर ने ॠषिमुनियो का मान रखा। लेकिन शिवभगवान ने सात ॠषिमुनियो को कहाँ आपने बिना जाने मुझे दण्ड दिया है अब तुम सदैव तारो के साथ रहोगे। शिवशंकर भगवान के लिंग जहाँ जहाँ गिरे वह धाम बन गये। इसी कारण उस दिन से शिवलिंग की पूजा होने लगी।
जागेश्वर में दो मंदिर है। एक वृध जागेश्वर का मंदिर ऊपर चोटी में है। दूसरा तरूणा जागेश्वर देवदारू की घनी बस्ती के अन्दर। यह धाम विष्णु भगवान के स्थापित किये हुए 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। ऐतिहासिक पृष्ण भूमि पर नजर डाले तो इस मंदिर में सोने चाँदी का जेवर, बरतन बहुत थे। कुमाऊँ मे जब चन्द राजाओं का राज्य था। एक बार 9 लाख का बीजक बना हुआ था। यह कहाँ जाता है। इस मंदिर में एक पीतल की मूर्ति है। यह पौन राजा की बताई जाती है। इस राजा को बहुत पुराना राजा बताते है, जिसने कुमाऊँ व गढवाल में राज्य किया था। इसी राजा नें, कहते है, गढवाल में गोपेश्वर में गोपी नाथ मंदिर का निर्माण कराया था। अगर हम देखे तो दोनो मंदिर एक ही शैली में बने है। राजा दीपचंद की मूर्ति भी यहाँ बतायी जाती है। पौन राजा कत्यूरी राजाओ में थें। जागेश्वर धाम में ही मुत्युज्जय महादेव का मंदिर भी है। स्वामी शंकराचार्यजी ने इसे ढक दिया था। इस सर्दभ में कई बाते कही जाती है। पुष्टिदेवी के मंदिर में भी लाखो का जेवर बताया जाता है। राजाओं ने इसे खर्च किया बदले में कई गाँव दिये। साथ में दंणीश्वर शिव का मंदिर बहुत पुराना है। मंदिर के ठीक ऊपर झाँकरसेन मंदिर है। जिसके चारो ओर देवदार के वृक्ष है। यह वह स्थान है। जहाँ पर शिव भगवान मे तपस्या की थी। यहाँ पर एक छोटा मेला भी लगता है। मंदिर के समीप एक श्मशानघाट भी है। कहाँ जाता है। अक्सर चंद राजाओं के मरने के उपरान्त इसी तीर्थ में जलाये जाते थे। और उनके साथ उनकी कई रानियाँ भी सती होती थी। यहाँ दो बार चतुदरशी को मेला भी होता है। यहाँ पर जो शिव का मंदिर है। वह कहाँ जाता है। कत्यूरी राजा शालिवाहनदेव ने बनाया था। मदिर परिसर से पाँच किलोमीटर की दूरी पर जटागंगा का उद्गम स्थल है। जो नदी मंदिर परिसर के साथ _ साथ बहती है। यहाँ पर एक ब्रहम कुन्ड भी है। जहाँ पर स्नान किया जाता है। जागेश्वर। में 124 मंदिरों का समूह है। लगभग आज कल 10 मंदिरों में पूजा अर्चना रोज होती है। मंदिर से कुछ दूरी पर पत्थरों री शिला पर शेषनाग की आकृति में बना खंड है। कहाँ जाता है। इसका शिरा पातालभुबनेश्वरवर में मिलता है।
स्थान चौगरखा परगना गंगोली काली कुमाऊँ बारामंडल तथा कत्यूर के बीच में है। वर्तमान में राज्य उत्तराखंड मंडल कुमाऊँ जिला अलमोड़ा में है। जागेश्वर धाम का पौराणिक एवं धार्मिक महत्त्व के साथ – साथ पर्यटन की दृष्टिकोण से भी यह स्थान उत्तम है। बहुत ही रमणीय मनोहारी दृश्य का अवलोकन होता है। नदी की कल कल ध्वनि प्राकृतिक सौन्दर्य। इस स्थान का धार्मिक महत्तव होने के कारण प्रत्येक। श्वधालु को मंत्र मुग्ध करता है। एक आध्यात्मिक प्रेरणा और प्राकृतिक सौन्दर्य की अनूभूति इस स्थान में आकर होती है। प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या मे श्वधालु अपनी मनोकामना को लेकर जागेश्वर धाम पहुँचते है। भगवान शिवशंकर अपनी कृपा सब भक्तजनो पर बनाये रखते है।..