इन अभिनेत्रियों के कपड़े उस जगह ही कम क्यों पड़ते है जहां कपड़े की ज्यादा जरूरत होती है। क्या नारी सिर्फ भोग की वस्तु है ?
जब वोडाफोन के एक विज्ञापन में दो पैसो मे लड़की पटाने की बात की जाती है तब कौन ताली बजाता है?
हर विज्ञापन ने अधनंगी नारी दिखा कर ये विज्ञापन एजेंसिया / कम्पनियाँ क्या सन्देश देना चाहती है ?
इस पर कितने चैनल बहस करेंगे ?
पेन्टी हो या पेन्ट हो, कॉलगेट या पेप्सोडेंट हो, साबुन या डिटरजेण्ट हो ,कोई भी विज्ञापन हो, सब में ये छरहरे बदन वाली छोरियो के अधनंगे बदन को परोसना क्या नारीत्व के साथ बलात्कार नहीं है?
फिल्म को चलाने के लिए आईटम सॉन्ग के नाम पर लड़कियो को जिस तरह मटकवाया जाता है ! या यू कहे लगभग आधा नंगा करके उसके अंग प्रत्यंग को फोकस के साथ दिखाया जाता है ! क्या वो स्त्रीत्व के साथ बलात्कार करना नहीं है?
पत्रिकाए हो या अखबार सबमे आधी नंगी लड़कियो के फोटो किसके लिए?और क्या सिखाने के लिए भरपूर मात्रा मे छापे जाते है? ये स्त्रीयत्व का बलात्कार नहीं है क्या?
दिन रात ,टीवी हो या पेपर , फिल्मे हो या सीरियल, लगातार स्त्रीयत्व का बलात्कार होते देखने वाले, और उस पर खुश होने वाले, उसका समर्थन करने वाले क्या बलात्कारी नहीं है ?
संस्कृति के साथ ,
मर्यादाओ के साथ,
संस्कारो के साथ,
लज्जा के साथ
जो ये सब किया जा रहा है वो बलात्कार नहीं है क्या?
निरंतर हो रहे नारीत्व के बलात्कार के समर्थको को नारी के बलात्कार पर शर्म आना उसी तरह है ! जैसे मांस खाने वाला , लहसुन प्याज पर नाक सिकोडे।
जिस देश में “आजा तेरी _ मारू , तेरे सर से _ _ का भूत उतारू” जैसे गाने ?
और इसी तरह का नंगा नाच फैलाने वाले भांड युवाओ के “आइडल” बन रहे हो वहा बलात्कार और छेडछाड़ की घटनाए नहीं बढेंगी तो और क्या बढ़ेगा?
कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य ये है कि जब तक हम नारी जाति को नारित्व का दर्जा नहीं देंगे तब तक महिला विकास या महिला सशक्तिकरण की बाते बेमानी लगती है ।
और हद तो तब हो जाती है जब आज कल की लड़कियां रानी लक्ष्मीबाई, कितुर चिनम्मा, कल्पना चावला,किरण बेदी, सुनीता विलियम्स बनने की जगह इन भांड नोटंकी करने वाली वेश्याओं जैसा बनना,और उनके जैसा दिखने की होड़ में लगी हुई हैं।शर्म आती है ऐसी घटिया सोच पे जिसे हम पच्छिम से आयात कर रहे हैं।
आज मिडिया चीख़ चीख़ कर कहती है महिलाओं को आज़ादी दो, फिर कहती है सुरक्षा दो। क्या दोनों ही चीजें एक साथ हो सकतीं है। मिडिया किसे बेवकूफ बना रही है अपने व्यापार के लिए।