श्री मोहन भागवत जी का उत्तर
– रोटी-बेटी व्यवहार का हम पूरा समर्थन करते हैं। लेकिन जब इसको करने जाते हैं तो रोटी व्यवहार तो आसान है। हम आसानी से कर सकते हैं और मजबूरन बहुत लोग आजकल कर भी रहे हैं, वो मन से होना चाहिए। इसकी आवश्यकता है समझदारी ठीक करनी पड़ेगी। बेटी व्यवहार थोड़ा कठिन इसलिए है कि उसमें केवल सामाजिक समरसता का विचार नहीं, दो परिवारों के मिलन का भी विचार है। वर-वधू के भी मैचिंग का विचार है। ये सब देख कर हम उसका समर्थन करते हैं। महाराष्ट्र में पहला 1942 में अंतरजातीय विवाह हुआ। पहला ही था और अच्छे सुशिक्षित लोगों का था इसलिए उसकी प्रसिद्धी हुई। उस समय उसके लिए जो शुभ संदेश आए थे, उसमें पूजनीय डॉ. बाबा साहब आम्बेडकर का भी संदेश था और पूजनीय श्री गुरुजी का भी संदेश था और गुरुजी ने उस संदेश में कहा था कि आपके विवाह का कारण केवल शारीरिक आकर्षण नहीं है, आप ये भी बताना चाह रहे हैं कि समाज में हम सब एक हैं, इसलिए आप विवाह कर रहे हैं। मैं आपका इस बात के लिए अभिनंदन करता हूं। और आपको दाम्पत्य जीवन की सब प्रकार की शुभकामनाएं देता हूं।
ये मानव, मानव में भेद नहीं करना, रुचि और अरुचि प्रत्येक की अपनी होती है। पूरा जीवन साथ में चलाना है। वो ठीक से चल सकता है कि नहीं इतना देखना चाहिए। तो बेटी व्यवहार के लिए भी हमारा समर्थन है। मैं तो कभी-कभी कहता हूं कि भारत में अंतरजातीय विवाहों की गणना करके असर परसेंटेज निकाला जाए तो शायद आपको सबसे ज्यादा परसेंटेज संघ के स्वयंसेवकों का मिलेगा, ऐसा करने वाले। इस रोटी-बेटी व्यवहार का चलन बढ़ाने से, यानी केवल विवाह और केवल साथ बैठकर खाने की बात नहीं। जीवन के हर कृति में समाज को अभैद दृष्टि से देखना, मन से उसको निकालना। ये जब करते हैं तो हिन्दु समाज जातियों में नहीं बटेगा। इसको हम सुनिश्चित कर सकते हैं। वो बटेगा नहीं ये मैं जानता हूं इसलिए कि प्रत्येक हिन्दू की जो आत्मा है वो आत्मा एकता में ही विश्वास करती है और मनुष्य का शरीर, मन, बुद्धि आत्मा से अलग होकर ज्यादा चल नहीं सकता। तो वो आत्मा जरूर देश, काल, परिस्थिति के अनुसार आवश्यक नया शरीर धारण करेगी। इस पर मेरा पूर्ण विश्वास है और इसलिए हम लोग सारे हिन्दुओं को एकत्र करने का प्रयास कर ही रहे हैं। इस विश्वास के साथ ही कर रहे हैं। नहीं तो जिस जमाने में संघ शुरू हुआ, उस जमाने में किसी का विश्वास नहीं था ऐसे हो सकता है। बहुत लोगों ने डॉ. हेडगेवार को कहा कि कंधे पर पांचवा न हो तब तक जिस समाज के चार लोग एक दिशा में नहीं चल सकते। उस समाज को कैसे एकत्रित करेंगे आप। लेकिन आज आप देखते हैं कि कर ही रहे हैं। तो इसलिए जरूर होगा। ये किया जा सकता है, हमने करके दिखाया गया है और ये किया जाना चाहिए और हम करेंगे।