वरुण, चंडीगढ़ : आज मैं अपने एक मित्र के साथ चंडीगढ़ में बाजार में कुछ दीपावली की शॉपिंग करने गया, वहां मेरा मन हुआ कि चाहे पटाखे पर्यावरण के खिलाफ ही हैं परंतु कुछ एक थोड़े बहुत पटाखे तो खरीद लेने चाहिए, वहां मैंने देखा एक दूसरी- तीसरी कक्षा में पढ़ने वाला छोटा सा बच्चा अपने पापा के साथ आया हुआ था, उसके पापा उसे पटाखे लेने के लिए पूछ रहे थे परंतु वह उनके बार बार आग्रह करने पर भी वह बच्चा बिल्कुल मना कर रहा था, मुझे जानने की उत्सुकता हुई मैंने उससे पूछा कि बेटा कल दिवाली है और कल फिर पटाखे नहीं मिलेंगे तो आप दूसरे बच्चों को पटाखे चलाते देख पटाखे चलाने की जिद करोगे, तो उसने मुझसे कहा कि हमारे अध्यापकों ने हमें पटाखे लेने से मना किया है,
मेरी जानने की और ज्यादा उत्सुकता हुई कि ऐसा इसके अध्यापक ने क्या कह दिया कि यह बच्चा दूसरे सभी बच्चों की तरह पटाखे लेने की जिद करना तो दूर, इसके पिता के आग्रह करने पर भी पटाखे लेने से मना कर रहा है, मैंने पूछा की ऐसा टीचर ने आपको क्या बोला है कि आप इतनी आसानी से मान गए, तो उसके अध्यापक ने जो उसे छोटी-छोटी कहानी और किस्से सुनाकर समझाया, वो मैं आपको बताना चाहूंगा, उसकी अध्यापिका ने कहा था कि दीपावली रोशनी का पर्व है इस दिन प्रकाश की अद्भुत रोशनी पूरी पृथ्वी को और वातावरण को कुछ इस तरह सकारात्मक रोशनी से उज्जवल कर देती है कि पेड़ पौधे पक्षी सहित सारा वातावरण तेल और घी के दीपों की महक से जगमगा उठता है और यहां तक की यह भी एक वैज्ञानिक तथ्य है कि मिट्टी के दीपक में घी और तेल डालकर प्रज्वलित करने से ऑक्सीजन गैस की मात्रा और ओजोन परत को बहुत लाभ पहुंचता हैं
क्योंकि हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी है वहीं दूसरी ओर पटाखों का धुआ तो वातावरण को काला तो करता ही है, साथ में पर्यावरण के वृक्षों, पक्षियों और हमारी जीवन दाहिनी ओजोन परत को भी बहुत गहरा नुकसान पहुंचाता है और पटाखों से निकलने वाला जो प्रदूषण है वह वातावरण को काला कर दीपावली के महत्व से बिल्कुल विपरीत प्रभाव डालता है तो पटाखे चलाना तो दीपावली के त्यौहार की परंपरा के बिल्कुल विपरीत बात है, उसकी बातें सुनकर मुझे यह भी स्मरण आया कि जब हम छोटे थे तो हमें अक्सर हिंदी और पंजाबी साहित्य की किताबों में हमारे भारतीय परंपरा और सभ्यता से जुड़ी कुछ कहानियां और कथाएं पढ़ाई जाती थी जिसमें बताया जाता था कि क्यों हमारे पूर्वजों ने पर्यावरण के महत्वपूर्ण घटक और तत्वों जैसे कि पेड़, नदियां, पंचतत्व और कुछ पर्यावरण सहायक जीव जंतुओं को पूजनीय बनाया,
मुझे जो उस बच्चे ने बात समझाई तो मुझे सच में लगा कि प्राथमिक शिक्षा से कैसे हम पर्यावरण प्रदूषण की मानव के आगे दानव रूपी खड़ी चुनौती का मुकाबला कर सकते हैं हालांकि मैं एक पीएचडी का विद्यार्थी हूं, परंतु जितनी आसानी और जितनी सरलता से इतनी गहरी बात बच्चे को उसके स्कूल के अध्यापक ने समझा दी, वह तो मैं बड़े-बड़े आर्टिकल लेख और रिसर्च पेपर पढ़ कर भी नहीं समझ पाया सच में प्राथमिक शिक्षा ही है जो हमारे पर्यावरण को बचा सकती है धन्य है ऐसे गुरु जन जो ऐसी शिक्षा देकर विद्यार्थियों को बच्चों के कच्चे मन मैं पर्यावरण से सही समरसता कायम करना सिखा रहे हैं,
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