1.खाने से पूर्व अन्नपूर्णा माता की स्तुति करके उनका धन्यवाद देते हुए, तथा सभी भूखो को भोजन प्राप्त हो इर्श्वर से ऐसी प्राथना करके भोजन करना चाहिए ।
2.गृहस्थ के लिए प्रातः और सायं (दो समय) ही भोजन का विधान है ।
3.दोनो हाथ, दोनो पैर और मुख, इन पाँच अंगो को धोकर भोजन करने वाला दीर्घजीवी होता है।
4.भींगे पैर खाने से आयु की वृद्धि होती है
5.सुखे पैर, जुते पहने हुए, खड़े होकर, सोते हुए, चलते फिरते, बिछावन पर बैठकर, गोद मे रखकर, हाथ मे लेकर, फुटे हुए बर्तन मे, बाये हाथ से, मंदिर मे, संध्या के समय, मध्य रात्रि या अंधेरे मे भोजन नही करना चाहिए।
6.रात्री मे भरपेट भोजन नही करना चाहिए ।
7.रात्री के समय दही, सत्तु एव तिल का सेवन नही करना चाहिए ।
8.हँसते हुए, रोते हुए, बोलते हुए, बिना ईच्छा के, सुर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन नही करना चाहिए।
9.पूर्व की ओर मुख करके खाना खाने से आयु बढ़ती है।
10.उत्तर की ओर मुख करके भोजन करने से आयु तथा धन की प्राप्ति होती है।
11.दक्षिण की ओर मुख करके भोजन करने से प्रेतत्व की प्राप्ति होती है।
12.पश्चिम की ओर मुख करके भोजन करने से व्यक्ति रोगी होता है।
13.भोजन सदा एकान्त मे ही करना चाहिए।
14.यदि पत्नि भोजन कर रही हो, तो उसे नही देखना चाहिए।
15.बालक और वृद्ध को भोजन करने के बाद स्वंय भोजन ग्रहण करे।
16.बिना स्नान, पुजन, हवन किए बिना भोजन न करें।
17.बिना स्नान ईख, जल, दुध, फल एवं औषध का सेवन कर सकते है।
18.किसी के साथ एक बर्तन मे भोजन न करे। ( पत्नि के साथ कदापि नही) अपना जुठा किसी को ना दे, ना स्वंय किसी का जुठा खाये।
19.काँसे के बर्तन मे भोजन करने से (रविवार छोड़कर) आयु, बुद्धि, यश और बल की वृद्धि होती है।
20.परोसे हुए अन्न की निन्दा न करे, वह जैसा भी हो, प्रेम से भोजन कर लेना चाहिए। सत्कारपुर्वक खाये गये अन्न से बल और तेज की वृद्धि होती है।
21.ईष्या, भय, क्रोध, लोभ, राग और द्वेष के समय किया गया भोजन शरीर मे विकार उत्पन्न कर रोग को आमंत्रित करता है।
22.भोजन मे पहले मीठा, बीच मे नमकीन एवं खट्टी तथा अंत मे कड़वे पदार्थ ग्रहण करे।
23.कोई भी मिष्ठान्न पदार्थ जैसे हलवा, खीर, मालपूआ इत्यादि देवताओ एवं पितरों को अर्पण करके ही खाना चाहिए।
24.जल, शहद, दुध, दही, घी, खीर और सत्तु को छोड़कर कोई भी पदार्थ सम्पुर्ण रूप से नही खाना चाहिए। (अर्थात बिल्कुल थोड़ा सा थाली मे छोड़ देना चाहिए )
25.जिससे प्रेम न हो उसके यहाँ भोजन कदापि न करे।
26.मल मूत्र का वेग होने पर, कलह के माहौल में, अधिक शोर में, पीपल, वट वृक्ष के नीचे, भोजन नहीं करना चाहिए ।
27.आधा खाया हुआ फल, मिठाईया आदि पुनः नहीं खानी चाहिए ।
28.खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए ।
29.गृहस्थ को ३२ ग्रास से ज्यादा नही खाना चाहिए ।
30.थोडा खाने वाले को आरोग्य, आयु, बल, सुख, सुन्दर संतान, और सौंदर्य प्राप्त होता है ।
31.जिसने ढिढोरा पीट कर खिलाया हो वहा कभी न खाए।
32.कुत्ते का छुआ, रजस्वला स्त्री का परोसा, श्राद्ध का निकाला, बासी, मुह से फूक मरकर ठंडा किया, बाल गिरा हुआ भोजन, अनादर युक्त, अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करे ।
33.कंजूस का, राजा का, चरित्रहीन के हाथ का, शराब बेचने वाले का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिए।
34.भोजन बनने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से, मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले ३ रोटिया अलग निकाल कर ( गाय, कुत्ता, और कौवे हेतु ) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालो को खिलाये |