सतर्कता जागरूकता सप्ताह 2016 का विषय ‘ईमानदारी को बढ़ावा देने और भ्रष्टाचार से लड़ाई में जन भागीदारी’ है। केंद्रीय सतर्कता आयोग की पहल के अंतर्गत मनाए जा रहे सतर्कता जागरूकता सप्ताह के पीछे मुख्य विचार यह है कि आयोग को महसूस हुआ कि भारत जैसे विशाल देश में हम जन भागीदारी के बिना ईमानदारी को प्रोत्साहन और भ्रष्टाचार से लड़ाई नहीं कर सकते हैं।
ईमानदारी और भ्रष्टाचार क्या है
ईमानदारी बुनियादी तौर पर वह स्थिति है, जो पूरी तरह से सुसंगत होती है और कोई अलगाव नहीं करती है। व्यावहारिक तौर पर देखें तो ईमानदारी की मतलब सच्चाई या सरलता से है। केंद्रीय सतर्कता आयोग को ईमानदारी के जिस मुद्दे का सामना करना पड़ता है, उसके तीन विभिन्न दृष्टिकोण हैं। एक ईमानदारी बौद्धिक सत्यनिष्ठा, दूसरी वित्तीय सत्यनिष्ठा और तीसरी नैतिक या नीतिपरक सत्यनिष्ठा है।
विश्व बैंक द्वारा वर्णित भ्रष्टाचार शब्द की परिभाषा ‘सरकारी कार्यालय का इस्तेमाल निजी लाभ के लिए हो’ है। जहां तक सख्त कानूनी पहली की बात है, भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम, 1988 फैसला लेने के वास्ते एक मामला सामने आने पर अदालत के लिए निष्पक्ष स्थिति का वर्णन करता है, चाहे भ्रष्ट आचरण हुआ हो या नहीं हुआ हो। इस कागज में हमारे विश्लेषण के लिए निजी लाभ के लिए सार्वजनिक कार्यालय के इस्तेमाल की विश्व बैंक की परिभाषा तुलनात्मक रूप से काफी सटीक और व्यापक है और समझने में आसान है।
जन भागीदारी
हम अब हमारे देश और भारत सरकार के संदर्भ में ‘ईमानदारी को बढ़ावा देने और भ्रष्टाचार से लड़ाई में जन भागीदारी’ का परीक्षण कर सकते हैं। वह भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी. एन. शेषन ही थे, जिन्होंने सुझाव दिया कि यदि केंद्रीय सतर्कता आयोग को वर्ष में एक सप्ताह को ‘सतर्कता जागरूकता सप्ताह’ के तौर पर मनाना चाहिए। इससे सभी सरकारी संगठनों में ईमानदारी को बढ़ावा देने और भ्रष्टाचार से लड़ाई लड़ने में मदद मिलेगी, जिससे प्रत्यक्ष तौर पर सीवीसी के अधिकार क्षेत्र में आते हैं लेकिन इस पूरे मुद्दे के जनता बीच जाने से इसके कई गुना असर होंगे।
श्री शेषन ने जैसी कल्पना की थी, आज वह उत्कृष्ट ट्रैक रिकॉर्ड के तौर पर स्थापित हो गया है और हम बीते दो दशकों के इतिहास पर गौर करते हैं तो हम पाएंगे कि आज का युवा ईमानदारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में तुरंत प्रतिक्रिया देता है, जो सुशासन की अनिवार्य शर्त भी है।
एक प्रकार से सतर्कता जागरूकता सप्ताह ने गुणात्मक चक्र की गति स्थापित करती है, जिसका मतलब एक अच्छे घटनाक्रम के बाद आने वाले दूसरे घटनाक्रम से है। यह उचित होगा कि सतर्कता जागरूकता सप्ताह के मौके पर 2000 के बाद से हमारे देश में सार्वजनिक प्रशासन के क्षेत्र में हुए घटनाक्रमों पर नजर डाली जाए। 2000 में ही सतर्कता जागरूकता सप्ताह की शुरुआत हुई थी।
इसकी शुरुआत के बाद से केंद्रीय सतर्कता आयोग में कई बदलाव सामने आए और सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को बढ़ावा देना और भ्रष्टाचार से लड़ाई हकीकत के तौर पर सामने आई, जिसके लिए सार्वजनिक भागीदारी भी संभव हो सकी।
आरटीआई कानून का प्रादुर्भाव
यह विडंबना ही है कि मौजूदा दौर की शुरुआत में राजस्थान में जन भागीदारी प्रशासन में विश्वसनीयता और भ्रष्टाचार रोकने की मांग कर रही थी, जो देश के सबसे ज्यादा पिछड़े राज्यों में से एक है। हमारे देश के विभिन्न राज्य विकास के विभिन्न चरणों से गुजर रहे हैं और भले ही भारत की सांस्कृतिक सत्यनिष्ठा कायम है, वहीं हम बहु जातीय, बहुभाषीय और बहु गति वाले देश हैं। जब हम कई क्षेत्रों में विकास की बात करते हैं तो बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश जैसे कई पिछड़े राज्यों की तुलना में गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्यों में बड़ा अंतर है।
यह राजस्थान था जब एक समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय जो भारतीय सिविल सेवा का हिस्सा भी रही हैं, की अगुआई वाले एक गैर सरकारी संगठन मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) ने गांवों के लोगों के बीच जागरूकता फैलाई कि उन्हें जानना चाहिए कि गांवों के विकास के लिए पंचायतों के मिलने वाला भारी धन का सही इस्तेमाल हो रहा है। उन्होंने विषय को रेखांकित किया कि कर राजस्व ‘हमारा धन है, हमें खाता दिखाइए कि हमारा पैसा कैसे खर्च किया जा रहा है।’ ‘हमारा पैसा, हमारा हिसाब’ ही वह विषय था जिस पर राजस्थान के गांवों में शांति और व्यवस्थित तरीके से काम कर सकीं। यह एक प्रभावशाली आंदोलन में तब्दील हो गया, जो आखिरकार 2005 में सूचना के अधिकार कानून के रूप में सामने आया।
यह कानून क्रांतिकारी था। यह उस अवधारणा के बिल्कुल उलट था, जिसके तहत राज्य अभी तक शासन कर रहे थे, विशेष रूप से औपनिवेश काल के बाद से। अभी तक ऐसा कोई तरीका नहीं था, जिससे नागरिकों को भरोसे में लिया जा सके और सरकार बता सके कि उनके कर के रूप में दिए गए धन को कैसे खर्च किया जा रहा है। आरटीआई एक गेम चेंजर के तौर पर साबित हुआ, क्योंकि इससे जन भागीदारी सुनिश्चित हुई जिससे जागरूकता फैसला और सुनिश्चित हुआ कि सरकारी व्यवस्था में भी पारदर्शिता लाई जा सकती है और सरकार को भी विश्वसनीय बनाया जा सकता है।
2010 में अन्ना हजारे जो महाराष्ट्र के रालेगांव शहर के गांव में तीन दशकों से ज्यादा वक्त से सक्रिय रहे हैं, लोकप्रिय आंदोनल इंडिया अंगेस्ट करप्शन (आईएसी) के नेता के तौर पर सामने आए। इसने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा, क्योंकि यह आजादी के बाद का दूसरा बड़ा आंदोलन था। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया के दम पर इसे खासी सफलता मिली।
इंटरनेट और विशेष रूप से सोशल मीडिया के विकास जो आज एससीएएम (सोशल, क्लाउड, एनालिटिकल, मोबाइल) संचार के विकास वाले क्षेत्र हैं, ने वर्चुअली हर नागरिक और मतदाता के हाथ में बड़ी ताकत दे दी है, जिससे वे सूचनाएं पा सकते हैं और अपने विचारों को फैला सकते हैं और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी राय दे सकते हैं। इसका असर विशेषकर पिछड़े इलाकों में ज्यादा दिखा है, जहां भौतिक बुनियादी ढांचा विकसित नहीं किया जा सका। हालांकि मोबाइल और सूचना प्रौद्योगिकी की पहुंच ने लोगों को खासा सशक्त बना दिया है।
हमारे जैसे देश में, विशेषकर पिछले दशक के दौरान ईमानदारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को बढ़ावा देने में जनता की भागीदारी बढ़ी है और इसके आधार पर राजनीतिक एजेंडा और चुनावी मुद्दे तय हुए हैं। 2014 के चुनाव ने काफी हद तक सिविल सोसायटी आंदोलनों और कई घोटालों की मीडिया कवरेज के आधार पर ही आकार लिया। इसलिए इस साल के सतर्कता जागरूकता सप्ताह में ईमानदारी को बढ़ावा देने और भ्रष्टाचार से लड़ाई में जन भागीदारी विषय उचित ही है।
यह एक व्यापक अवलोकन हो सकता है। बीते दो दशक और उससे ज्यादा वक्त से हमारा अनुभव हमें बताता है कि जन भागीदारी के कई पहलू हैं और एक स्पष्ट है कि हमें किसी के साथ अन्याय नहीं करना है और हमें निष्पक्ष रहना है। वास्तव में बीते कुछ साल में सामने आए भ्रष्टाचार रोधी आंदोलन जन भागीदारी के तरीकों के कुछ नकारात्मक असर पर भी सामने आते दिखते हैं। इस संदर्भ में मीडिया की भूमिका खासी अहम होगी। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया भ्रष्टाचार और सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा की कमी के मुद्दे को उठाने में अहम भूमिका निभाता है। हालांकि इसके पीछे जनता की सेवा का काल्पनिक उद्देश्य नहीं है, लेकिन कुछ अवसरों पर इसके व्यापक व्यावसायिक हित भी हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मामले में टेलीविजन रेटिंग अंकों को लेकर प्रतिस्पर्धा बनी रहती है। इसलिए सत्यता के पीछे छूटने की संभावना बनी रहती है।
इन सबके साथ हमें हमारी न्यायिक व्यवस्था द्वारा निभाई गई उल्लेखनीय भूमिका की प्रशंसा की जानी चाहिए, जो दोषी को जेल भेजने और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लडने वाली एजेंसियों के लिए मानकों को बरकरार रखने में सक्षम है।
वास्तव में कई घोटाले जिन्होंने हाल के दौर में पिछली सरकारों की छवि खराब की है, निजी लाभ के लिए अधिकारों के दुरुपयोग से ही संभव हुए हैं, जो मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ताओं की जागरूकता से ही सामने आ सकते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ पारदर्शिता सबसे बड़ा हथियार है। हमारे पास अब लोकपाल कानून है, लेकिन कोई नहीं जानता कि यह कैसे प्रभावी होगा, क्योंकि सत्यनिष्ठा की जिम्मेदारी हर व्यक्ति की है।
जैसे कि हमने देखा है कि इस बार सतर्कता जागरूकता सप्ताह में लेखक के तौर पर मैं एक अहम पहलू पर जोर देता हूं। यह पहलू है कि अब हमारे पास प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का प्रेरणादायी नेतृत्व है। उन्होंने प्रधानमंत्री के तौर पर कार्यभार संभालने के बाद पहले दिन से ही सुशासन पर जोर दिया। उनके हर कदम से जाहिर होता है कि उनकी सोच व्यापक है। हम सभी देश के सुनहरे भविष्य की उम्मीद कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री द्वारा मुख्यमंत्री रहने के दिनों से उठाए गए कदमों और उनके प्रचार के तरीकों से जाहिर होता है कि वह जानते हैं कि अनंत सतर्कता ही स्वतंत्रता का मूल्य है। उनके नेतृत्व में हम अपनी नैतिक सांस्कृतिक जड़ों से मिलने वाली प्रेरणा के दम पर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देशों में से एक बनने की राह पर हैं।
*यह लेख पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त श्री एन. विट्ठल द्वारा दिए गए एक भाषण का संक्षिप्त रूप है। भाषण पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) के चेन्नई कार्यालय में सतर्कता सप्ताह कार्यक्रमों का हिस्सा है।