प्रश्न – दी, भगवान को कैसे देख सकते हैं? भगवान केवल स्वर्ग में होता है या कण कण में सब जगह? कृपया बताइये?
उत्तर – आत्मीय भाई, देखो यदि मैं तुम्हारे प्रश्न से पीछा छुड़ाना चाहूँ तो कुछ धर्म सम्प्रदाय की तरह यह बोल सकती हूँ कि भगवान स्वर्ग में रहता है और पुण्य करने पर जब तुम मरोगे तब तुम्हे स्वर्ग में मिलेगा तब ही तुम उनसे भेंट कर सकोगे। इससे क्या होगा कि तुम उलझ जाओगे, और मरने के बाद की गारण्टी-वारण्टी को चेक करने का कोई उपाय नहीं है। तो मुझे कुछ कह न सकोगे। ऐसे ही लोग जिहादी बनाते हैं क्योंकि जीते जी का कोई वादा नहीं करते तो उन्हें कोई क्रॉस क्वेशचन नहीं कर पाता।
लेकिन युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव ने अपनी पुस्तको में कहा है कि जीते जी भगवान की उपस्थिति का अहसास सम्भव है। उनकी पुस्तक – *अध्यात्म विद्या के प्रवेश द्वार* में लिखा है भक्ति की शक्ति से जिस रूप में चाहो भगवान को पा सकते हो।
वेदांत भी कहता है भगवान कण कण में है, तो जब कण कण में है तो इस क्षण में भी है यहां भी है इसी वक्त भी है मुझमें भी है तो फिर दिखता क्यों नहीं। फिर समस्या कहाँ है?
अच्छा एक बात बताओ, जब दर्पण का अविष्कार नहीं हुआ था तो भी इंसान के पास आंख तो थी ही। इंसान सबकुछ देख सकता था लेकिन स्वयं की आंख नहीं देख पाता था। अर्थात आंखे है इसका सबूत यह था कि वो संसार देख सकता है लेकिन परेशानी यह थी कि वो स्वयं की आंख नहीं देख सकता था।
अब एक ही माध्यम उस इंसान के पास था स्वयं की आंख देखने का वो था जल में अपनी परछाई देखे और आंख अपनी देख ले। लेकिन जल यदि मटमैला हुआ और लहरों से भरा हुआ तो कुछ न दिखेगा। तो जल को शांत और स्थिर होना होगा तब चेहरा और आंखे दोनों दिख जाएंगी।
इसी तरह मेरे भाई आंखों की तरह उस परमचेतना परमात्मा के होने का अहसास हम सभी को है क्योंकि सृष्टि जो चल रही है उसका चलाने वाला कोई है। हम जानते है। लेकिन देखें कैसे? उसे देखने के लिए अंतर्जगत में मन के तालाब में देखना होगा। मन यदि मैला हुआ और विचारों की लहरों से भरा हुआ तो वो न दिखेगा। *मन रूपी जल जब शांत स्थिर होगा और विचार का ठहराव होगा तब ही स्वयं के भीतर विराजमान ब्रह्म को देख सकोगे।*
कृष्ण ने अर्जुन को दिव्यदृष्टि जिसे लोग कहते है वो एक प्रकार का दिव्य दर्पण दिया था जिससे उसने ब्रह्म को देख पाया। मेरे पास वो दिव्य दर्पण नहीं जो मैं तुम्हे दे दूं और तुम देख सको। लेकिन मन के तालाब में देखने की विधि मालूम है। जिसमें मैं स्वयं के भीतर ब्रह्म के दर्शन करती हूँ, वैसे ही तुम भी आसानी से कर सकते हो। केवल अभ्यास और वैराग्य से आसानी से मन सध जाएगा। इसके लिए कहीं बाहर भागने की जरूरत नहीं है, बस केवल भीतर मन के ठहराव की जरूरत है। जो निरन्तर ध्यान के अभ्यास से आसानी से सम्भव हो जाएगा।
(श्वेता चक्रवर्ती, डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन)