“जीवन को जीने के दो तरीके हैं। एक ऐसे कि जैसे कुछ भी चमत्कार नहीं है और दूसरा जैसे चारों ओर चमत्कार ही चमत्कार है” अल्बर्ट आइंस्टीन
आमतौर पर जीवन के शुरुआती दिनों में लोग स्वास्थ्य के महत्व को कम आंकते हैं। इसकी वजह निरंतर भविष्य की अनिश्चिता है। भारत और अन्य सभी विकासशील देशों के नागरिक अभी उस मानसिक अवस्था में नहीं पहुंचे हैं, जहां पर वह भविष्य में अपने उत्तरदायित्वों के प्रति आश्वस्त हो। स्वास्थ्य के प्रति एक बड़े वर्ग की उदासीनता का यह भी एक प्रमुख कारण है और उनके लिए स्वास्थ्य की परिभाषा सिर्फ शरीर में बीमारी का न होना है। परंतु यह स्वास्थ्य की नकारात्मक परिभाषा है। स्वास्थ्य मनुष्य के जीवन का एक सकारात्मक पक्ष है और यह सिर्फ स्वस्थ तन तक ही सीमित नहीं है। 15वीं शताब्दी के एक स्विस चिकित्सक डॉ. पैरासिलसस के अनुसार शरीर एक रासयनिक प्रणाली है और इसे न केवल आंतरिक रूप से संतुलन बनाना होता है बल्कि बाहरी पर्यावरण के साथ भी परस्पर तालमेल रखना होता है । अगर हम पैरासिलसिस की बातों को गहराई से समझें तो इसका अर्थ यह है कि पूर्ण स्वास्थ के लिए हमें न केवल एक स्वस्थ तन की आवश्यकता है अपितु एक स्वस्थ्य मन एवं मस्तिष्क की भी आवश्यकता है। एक स्वस्थ तन, मन एवं मस्तिष्क ही पूर्ण स्वास्थ्य की सकारात्मक परिभाषा है। आपने यह महसूस किया होगा कि शरीर में किसी रोग की उपस्थिति में व्याधि शरीर में होती है, लेकिन इसका नकारात्मक असर हमारे मन एवं मस्तिष्क पर भी पड़ता है । हर काम तभी सफल होता है, जब हमारा तन, मन एवं मस्तिष्क पूर्ण रुप से किसी काम में लगे । यदि शरीर में कहीं पर भी कोई व्याधि होती है तो तन तो अस्वस्थ होगा ही परंतु उसका नकारात्मक असर हमाने मन एवं मस्तिष्क पर भी पड़ता है ।
20वीं शताब्दी के एक महान जर्मन चिकित्सक डॉ मैक्स गर्सन अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि स्वास्थ के दो प्रमुख शत्रु है पहला शरीर में विषेले पदार्थों का इकट्ठा होना तथा दूसरा सुक्ष्म पोषक तत्वों, विटामिन एवं एंजाइमों की कमी । डॉ मैक्स गर्सन के अनुसार अच्छे स्वास्थ के लिए हमें इन दोनों शत्रुओं से निरंतर लड़ना होगा । हम आजकल देखते है कि कैसे वायु प्रदुषण जैसे वाहनों का धुआं, फैक्टरियों से निकलने वाले सुक्ष्म जहरीले कण, आसमान से गिरने वाले विमानिय ईंधन के अवशेष निरंतर हमारी वायु को प्रदुषित कर रहे हैं। ठीक इसी तरह प्राकृतिक जल के स्त्रोत भी लगातार दूषित हो रहे हैं। वायु और जल के साथ ही साथ हमारे खेतों की मिट्टी भी निरंतर रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशकों के प्रयोग से दूषित हो रही है और इसका प्रतिकूल असर ना सिर्फ हमारी फसलों पर भी पड़ रहा है बल्कि उनसे बनने वाले सभी खाद्य पदार्थों पर भी पड़ रहा है। रासायनिक उर्वरकों के कारण मिट्टी लगभग 50 से अधिक खनिजों, एंजाइमों और सूक्ष्म जीवों को प्रदान करने में सक्षम नहीं है और इसी के परिणामस्वरुप फसलों और खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की भारी कमी हो रही है । इसके साथ ही साथ संसाधित, डिब्बाबंद, जार्ड, स्मोक्ड, बोतलबंद एवं अचार वाले खाद्य पदार्थों का बढ़ता हुआ उपयोग शरीर में सूक्ष्म पोषक तत्वों, विटामिनों और एंजाइमों की कमी का एक प्रमुख कारण बन रहा है । इसके अलावा हमारे घरों में टेलिविजन, माइक्रोवेव, रेफ्रिजरेटर, वाई-फाई राउटर एवं तमाम ऐसे उपकरण लगे हैं जो लगातार इलेक्ट्रो स्मॉग छोड़ रहे हैं और मनुष्यों के प्राकृतिक विधुतीय चुम्बकीय क्षेत्रों में हस्तक्षेप कर रहें हैं जो कि स्वास्थय के लिए अत्यंत हानिकारक हैं
डॉ. पैरासिलसस एवं डॉ. गर्सन के अनुसार वास्तव में रोग शरीर की भौतिक प्रक्रियाओं का असंतुलन है और शारिरिक एवं मानसिक संतुलन ही इसका एकमात्र उपाय है । आज की तेज रफ्तार जिंदगी में तनाव एवं जल्दबाजी शारीरिक बीमारियों से पहले इसके कुछ खास लक्षण हैं और यदि आप समय रहते इन पर नियंत्रण नहीं करते हैं तो बीमारी का आना सिर्फ कुछ ही समय की बात है। चिकित्सा तंत्र एवं चिकित्सक आपको आपातकालीन मदद तो पहुंचा सकते हैं मगर यदि आप स्वास्थ्य के मौलिक सिंद्धांतों का पालन नहीं करेंगे तो देर सवेर रोग आपको जकड़ ही लेंगे । अच्छे स्वास्थ के लिए नियमित दिनचर्या बनाएं एवं अपने खानपान एवं अपने आपको व्यवस्थित रखें। सुबह जल्दी उठे एवं अपने आप को पूरा आराम दें। व्यायाम अथवा योग जरूर करें। जहरीले आहार, नशीले पदार्थ एवं भ्रष्ट आचरण से दूर रहें तथा सादे एवं रेशायुक्त भोजन का उपयोग करें । इसके साथ ही साथ नमक, शक्कर, वसा, तेल एवं मसालों का कम मात्रा में सेवन करें तथा दिन में एक या दो बार नींबू के रस एवं मौसमी फलों एवं सब्जियों का सेवन करें, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता को निरंतर बल मिलता रहे। क्रोध, ईष्या एवं ऐसे काम जिससे मन व्यथित हो, उनसे दूर रहें और जीवन में अपने परिवार एवं अपने प्रिय मित्रों का आभार अवश्य प्रकट करें। जीवन में सिर्फ स्वस्थ ही नहीं सुखी एवं शांत रहना भी अति आवश्यक है, ताकि हम अपनी पूरी क्षमता के साथ अपने कर्त्तव्यों का निर्वाहन कर सकें। सभी कार्य शरीर द्वारा ही संपन्न होते हैं, इसलिए तो हमारे शास्त्रकारों ने आज से हजारों वर्ष पूर्व लिखा है “शरीरमाद्य खुल धर्म साधनम” अर्थात शरीर की उत्तम प्रकार से सुरक्षा करना प्रत्येक मनुष्य का कर्त्तव्य है।
(लेखक दीपक जी पंजाब विश्व विद्यालय के शोध छात्र हैं )