प्रकृति के करीब जाने का उत्सव – हरियाली अमावस्या का त्योहार श्रावण मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस बार यह त्योहार 2 अगस्त, मंगलवार को है। हरियाली अमावस्या का पर्व मनाने के पीछे धार्मिक कारण भी है, लेकिन इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष अवश्य है। हरियाली अमावस्या का मूल उद्देश्य लोगों को प्रकृति के निकट लाना है।
हरियाली अमावस्या का पर्व सावन में प्रकृति पर आई बहार की खुशी में मनाया जाता है। छोटे-छोटे गांवों में यह त्योहार बहुत ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। गांवों में इस दिन मेले लगाए जाते हैं तो कहीं दंगल का आयोजन भी किया जाता है। कुछ स्थानों पर इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा कर उसके फेरे लगाने तथा मालपुए का भोग लगाने की परंपरा भी है। ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन हर व्यक्ति को एक पौधा अवश्य रोपना चाहिए ताकि प्रकृति से हमारा आत्मीय संबंध स्थापित हो।
महत्व –
हमारी संस्कृति में वृक्षों को देवता स्वरूप माना गया है। मनुस्मृति के अनुसार, वृक्ष योनी पूर्व जन्मों के कर्मों के फलस्वरूप मानी गई है। परमात्मा द्वारा वृक्षों की रचना परोपकार एवं जनकल्याण के लिए की गई है। हरियाली अमावस्या का पर्व इन वृक्षों व पेड़-पौधों को धन्यवाद प्रेषित करने का त्योहार है।
अवश्य करें पौधारोपण
हमारे धर्म शास्त्रों में पौधारोपण के लिए भी शुभ मुहूर्त बताए गए हैं जैसे- उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद, रोहिणी, चित्रा, अनुराधा, मूल, विशाखा, पुष्य, श्रवण, अश्विनी, हस्त इत्यादि नक्षत्रों में किए गए पौधारोपण शुभ फलदायी होते हैं। ऐसी मान्यता है कि हरियाली अमावस्या पर पौधारोपण अवश्य करना चाहिए।