अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष लेख
चंडीगढ़ : एक स्त्री का सुंदर होना उसके लिए वरदान की तरह है. स्त्री के लिए जब भी सुंदर शब्द का इस्तेमाल किया गया, उसे उसके सौन्दर्य से जोड़कर देखा गया. चमकता उजला चेहरा, गहरी आंखें, गुलाबी होंठ, सुडौल शरीर और कद-काठी से एकदम दुरुस्त. थोड़ी-सी मीन-मेख होने पर सुन्दरता का पैमाना गिर जाता है. अब जबकि विज्ञान का युग है तो सुन्दरता बरकरार रखना और मन मुताबिक शरीर को आकार देना सुगम हो गया है. अप्राकृतिक सौन्दर्य प्रसाधनों ने सुन्दरता के मायनों को अलग रूप में पेश कर दिया है.
सौन्दर्य की मूरत बॉलीवुड की सुपर स्टार अभिनेत्री श्रीदेवी की आकस्मिक मौत ने सबको चौंका दिया. हालांकि उनकी मौत नशे में अनियंत्रित होकर बाथटब में डूबकर हुई है. किन्तु अचानक हुई मौत के कारण तुरंत बाद से कई कयास लगाए गए और हर कहीं एक बहस छिड़ गई कि बिल्कुल स्वस्थ होने के बावजूद वो मौत का ग्रास कैसे बन गई. उन्हीं में से एक प्रश्न उठा कि लम्बे समय से फिल्मों से दूर रहने के बाद उनकी वापसी हुई और फिर चेहरे पर पहले जैसा नूर है. यह नूर शायद प्राकृतिक नहीं था! शरीर को अंदर से खोखला कर बाहरी सुन्दरता का सौंदर्यीकरण किया गया. इस नूर को लेकर उनके निधन के एक महीने पहले इवेंट के दौरान सामने आई एक तस्वीर के साथ भी जोड़ा गया, जिसमें उनके होंठों की शेप काफी अलग लग रही थी. हालांकि उस वक्त श्रीदेवी ने लिप सर्जरी करवाने की बात को नकार दिया था, लेकिन बहस के दौरान यह मुद्दा भी गर्म रहा कि प्लास्टिक सर्जरी और अत्यधिक दवाईयों के सेवन से श्री देवी को कार्डिएक अरेस्ट हुआ है. उनकी मौत का कारण भले ही कुछ और था लेकिन यह भी सच है कि बहुत से कलाकारों को फ़िल्मी दुनिया में बने रहने के लिए स्वयं को अप्राकृतिक तरीके से ढालना पड़ता है. जो जान को जोखिम में डाल कर किए जाते हैं.
फ़िल्मी दुनिया से लेकर एक आम लड़की को भी सुंदर दिखने की चाह बनी रहती है और इस चाहत के पीछे समाज की कुंठित सोच है. बॉलीवुड में पेशे के तौर पर सुंदर बने रहना कलाकारों की मज़बूरी कहा जा सकता है लेकिन इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि समाज की सोच भी स्त्रियों की सुन्दरता के पैमानों का तोलमोल करती है. खूबसूरत न होने पर तरह-तरह के ताने सुनने को मिलते है. कई बार तो लडकियों की शादियां तक टूट जाती है क्योंकि उनकी सीरत से ज्यादा सूरत को प्राथमिकता दी जाती है. हजारों ऐसी एसिड अटैक स्त्रियां है जो चेहरे की सुन्दरता खो चुकी है. इसका अर्थ यह नहीं कि वो सुंदर नहीं है. सूरत से ज्यादा सीरत मायने रखती है लेकिन इस तरह की बातों का दौर समाप्त हो चुका है. अब सुन्दरता के कॉम्पिटिशन जीते जाते है और कॉम्पिटिशन जीतने वाली को सुन्दरता का ताज पहना दिया जाता है.
किसी एक महिला को खूबसूरती का ताज पहना कर यह कहना अनुचित होगा कि सुन्दरता की दृष्टि से केवल वही सर्वोतम है. दुनियाभर की महिलाएं खूबसूरत है. शहर, गांव, गली-मोहल्लों में लाखों-करोड़ों ऐसी महिलाएं है जो खूबसूरती की मिसाल है लेकिन उनका दुर्भाग्य यह है कि वो घर से निकल कर ब्यूटी कॉम्पिटिशन में भाग नहीं लेती. उनके पास एक बढ़िया किस्म का पोर्टफोलियो बनाने के लिए 15 से 20 हज़ार रूपए नहीं होते. उनके पास इतने पैसे नहीं होते कि शरीर के किसी भी अंग को मन चाहे शेप में ढाल दें.
अभी पिछले सप्ताह बॉलीवुड अभिनेत्री सोनम कपूर ने एक बहुत अच्छी पोस्ट शेयर की जिसे पढ़कर स्त्रियां और यकीन के साथ कहा जा सकता है कि पुरुष भी अपनी सहमति जताएंगे. सोनम ने लिखा है कि अगर सुबह उठकर अपने बेडरूम के शीशे में खुद को जब देखती हों और ये सोचती हो कि आख़िर तुम उन तमाम सेलिब्रिटीज़ की तरह क्यों नहीं दिखती हैं, तो ये जान लो कि कोई भी लड़की बिस्तर छोड़ते ही वैसी नहीं दिखती. मैं तो नहीं दिखती, न ही कोई और हीरोइन जिन्हें तुम फ़िल्मों में देखती हो. (बियॉन्से भी नहीं, मैं कसम खाकर कह रही हूं.) मैं मेकअप के लिए 90 मिनट का समय देती हूँ. तीन से छः लोग मेरे बाल और मेकअप पर काम करते हैं, जबकि एक आदमी मेरे नाख़ून तराशता रहता है. हर सप्ताह मेरी भवें सँवारी जाती हैं,उनकी थ्रेडिंग और ट्वीज़िंग की जाती है. मेरे शरीर के कई हिस्सों पर ‘कन्सीलर’ लगा होता है जिसके बारे में मैं कभी सोच नहीं सकती थी कि इन्हें छुपाने की ज़रूरत होती होगी. सोनम ने अपनी खूबसूरती को लेकर बेबाकी से सांझा किया है. उन्होंने कहा कि मेरे खाने से लेकर कपड़े चुनने, जिम जाने ये बताने के लिए कि कब और किस दिन क्या खाना है, के लिए टीम को रखा गया है. मेरे फेसपैक में मेरे भोजन से ज्यादा चीज़े होती हैं. उसके बाद भी कोई कमी रह जाती है तो फोटोशॉप का सहारा लिया जाता है. इस तरह किसी मॉडल/सेलिब्रिटी को वैसा दिखाने के लिए कई लोगों की एक पूरी फ़ौज, बहुत ज्यादा पैसा,और काफ़ी समय लगता है. सोनम आगे लिखती है कि किसी मैगजीन कवर पर चमकती बॉलीवुड सेलिब्रिटी की तस्वीर को अगर ललचाई निगाहों से देखो तो उसी वक्त उसे ये बता कर उसका भ्रम तोड़ दो कि इस खूबसूरती के लिए कितने जतन और पैसे खर्च किए है.
सोनम की इस पोस्ट ने काफी कुछ बयाँ कर दिया कि मॉडल/अभिनेत्री को बाहरी सुंदरता के लिए कितने जतन करने पड़ते हैं. बहुत कुछ खोने के बाद बाहरी सुन्दरता पैसों से खरीदी जा सकती है लेकिन स्त्री के लिए उसकी आंतरिक सुन्दरता ही असली पहचान होनी चाहिए. इस महिला अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर महिलाएं ये शपथ लें कि समाज या पुरुष जब भी सुन्दरता को बाहरी सुन्दरता से जोड़ता है तो उन्हें बेबाकी से ये महसूस करवा दो कि मन की सुन्दरता के आगे तन की सुन्दरता शून्य है. जब भी बाह्य सुन्दरता की कमी को लेकर तुम्हें अस्वीकार किया जाता है, तुम भी उन्हें ये महसूस करवा दो कि प्राकृतिक सुन्दरता के साथ मन की सुन्दरता ही उनकी असली पहचान है. खुद की पहचान खोने के बाद बनावटी पहचान उनके लिए कोई मायने नहीं रखती और न ही वो इंसान मायने रखते है जो इस बात के लिए दवाब बनाते हैं कि तुम्हें हर वक्त बनावटी सुन्दरता में रहना होगा. स्त्री परमात्मा की एक सुंदर रचना है. उसको पुरुष समाज या अन्य कोई भी किन नजरों से देखता है ये उसका अपना दृष्टिकोण है. इंसान की नजरें वहीं देख पाती है जैसा उसका नजरिया होता है।