आचार्य अर्जुन तिवारी : हमारे भारतवर्ष में जितने भी त्यौहार मनाये जाते हैं उन सभी त्यौहारों में होली का मंगलोत्सव विलक्षण है |अपने अन्दर रस , रंग एवं माधुर्य को समेटे हुए हुए यह त्यौहार आंतरिक उल्लास को उभारने वाला एक ऐसा पर्व है जो कृषि कुसमित संस्कृति के एक प्रतीक के रूप में भी प्राचीन समय से ही प्रचलित है | होली की विशेषता यह है कि यह भारत में ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व में हर वर्ग , जाति , धर्म एवं सम्प्रदाय के लोगों द्वारा बिना किसी भेदभाव के हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है |
रंगों का यह पर्व प्रकृति से मानव को एकाकार कर तादातम्य स्थापित करके जीवन को उल्लास के साथ जीने की रीति नीति की शिक्षा भी देता है | सनातन हिन्दू संस्कृति में अनावश्यक व हानिकारक वस्तुओं को हटाने एवं मिटा देने को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है | होली में भी यही संदेश छुपा है | हम अपनी भीतरी एवं बाहरी गंदगी को साफ करके चतुर्मुखी पवित्रता की स्थापना करें | सामाजिक , मानसिक , राजनैतिक विकृत विकारों के जो कंटक इधर उधर विखरे पड़े हैं उनको इकट्ठा करके होलिका के रूप में जला दें | यह बात बुद्धिजीवी जानते हैं कि सिर्फ लकड़ी और कंडों को जलाने से अनिष्ट का विनाश नहीं हो सकता | वास्तव लकड़ी और कंडे मनुष्य की आदते हैं जो जीवन में शुष्कता , कटुता , क्रूरता एवं विकाररूपी झाड़-झंखाड़ के प्रतीक हैं एवं अग्नि की प्रतीक “योगाग्नि” है | बुरे संस्कारों का परमात्मा रूपी अग्नि में दहन कर देना ही वास्तविक होलिका – दहन है |
रंगों से सराबोर इस त्यौहार की छटा ही कुछ अलग है | न तो कोई गिला – शिकवा और न ही कोई भेदभाव | चारों ओर सिर्फ और सिर्फ उल्लास और अपनों का साथ | आज की व्यस्ततम जिंदगी में किसी के पास इतना समय ही नहीं बचा है कि वह किसी के पास बैठे | अपनी जीवन रूपी मकड़जाल में हर मनुष्य इतना जकड़ा हुआ है कि उसके पास स्वयं भी चैन से जीने का समय नहीं है | तो ऐसी व्यस्तताओं में ये त्यौहार ही ऐसे हैं जो मनुष्य को कुछ देर के लिए रुककर अपनों के साथ समय बिताने का अवसर देते हैं | भारत जैसे विशाल देश में विभिन्न जाति एवं धर्म के लोग एक होकर भारतीय हो जाते हैं उसी प्रकार अलग अलग रंग जब एक दूसरे पर डाले जाते हैं तो रंगों में एकरूपता ही देखने को मिलती है | एक दूसपे पर रंग डालते समय सिर्फ सामने वाले की खुशी ही मिलती है | न कोई ऊँच – नीच , न कोई जाति , न किसी का अलग रंग और न ही राग – द्वेष | एक बार जब रंग लग गया तो सभी जातियों के लोग एक समान दिखने लगते हैं | फिर कौन क्या है यह पहचान छुप जाती है | उस समय पर उसकी पहचान सिर्फ मनुष्य की रह जाती है , और मनुष्य उस समय भेदभाव को भुलाकर सिर्फ प्रसन्नता का अनुभव करता है | रोजी रोटी के चक्कर में अपने गाँव और परिवार से दूर रहकर जीवन यापन करने वाले लोग इन्हीं त्यौहारों के अवसर पर अपने गाँव और परिवार के पास आने का प्रयास करते हैं | बचपन की होली की यादें , गाँव की मिट्टी की खुश्बू मनुष्य को अपने ओर खींचती ही है और मनुष्य इस त्यौहार के अवसर पर अपने गाँव आकर अपने बचपन के मित्रों के साथ होली खेलकर पुरानी यादें ताजा करके प्रसन्नता का अनुभव करता है |
होली मनाने का अर्थ है कि हम अपने मन में बैठी हुई आसुरी प्रवृत्तियों , कुसंस्कारों को ज्ञान के रंग में रंग लें|
(आचार्य अर्जुन तिवारी प्रवक्ता श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा संरक्षक संकटमोचन हनुमानमंदिर बड़ागाँव फैजाबाद श्रीअयोध्याजी (उत्तर-प्रदेश))