मित्रों चण्डीगढ़ में पला बढ़ा हूँ तो स्वाभाविक ही सिक्ख पड़ोसी , मित्र बन्धु आदि के साथ घुला मिला था ; किन्तु घर परिवार और कुछ सम्बन्धियों से इन्दिरा गांधी की हत्या के समय फैले दंगे और सिक्ख अलगाववादियों व भिंडरावाला समर्थकों द्वारा सनातन धर्म के अनुयायियों की हत्याओं व उन पर हुए अत्याचार की घटनाओं को सुन सुन कर मन में तीव्र सिक्ख विरोध था ।
आज से लगभग 15 वर्ष पहले हिंदुओं की सिक्ख श्रृंखला के प्रथम गुरु श्री गुरुनानक देव जी का प्रकटोत्सव था । पिछली रात्रि को पिताजी ने मुझेआदेश किया बेटा भीतर फलां जगह पर लाइटों की लड़ियाँ रखी हैं , वो निकालो और बाहर आँगन सजा दो ।
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वैसे मेरे पिताजी “कट्टर” हिन्दू थे , किन्तु जब उन्होंने यह कहा तो मुझे हैरानी हुई । पहले तो मैंने बात अनुसनी की , फिर दो तीन बार उन्होने कहा तो पलट कर मैंने गुस्से में lights लगाने से मना किया और सिखों को भला बुरा कह कर भड़ास निकाली और बैठा रहा । पिताजी अतिशय बीमार रहते थे, अपितु उठने बैठने में भी उन्हें समस्या रहती थी । तभी वे उठे और stool पर चढ़ कर अमुक स्थान से प्रयास कर lights निकाली और आँगन में चले गए । तब तक मैं अनमने भाव से बीमार पिता की पुत्र धर्म निभाते हुए सहायता करने चला गया । पर उस दिन जो उन्होंने मुझे प्रेम से समझाया ,उसकी अनुगूँज मेरे मन में उनकी मृत्यु के उपरान्त भी आज तक बसी है ।
उन्होंने कहा बेटा हम हिमाचल वासी यहाँ बाहर से आ कर बसे हैं तो इस स्थान के उत्सव और मान्यताओं के प्रति हमारे मन में असंदिग्ध श्रद्धा होनी चाहिए । हमें यहाँ के मूल निवासियों के साथ मिल कर रहना चाहिए और उनके सुख दुख में अपना सुख दुख समझना चाहिए । कुछ सिक्खों के बुरे व्यवहार से इस पवित्र पंथ के प्रति हमें वैरभाव नहीं पालना चाहिये और वैसे भी ये हमसे भिन्न थोड़े हैं , हिन्दू ही हैं । अपने भाई के मन में कोई शिकायत है तो क्या हम बुरा भला मान कर उससे सम्बन्ध तोड़ देंगे ??
उनके वह वचन सुन कर मैं हृदय से परिवर्तित हो गया ।
पिताजी निष्णात रूढ़िवादी , परम्परावादी ब्राह्मण थे , किन्तु मुझे आश्चर्य हुआ जब उनकी मृत्यु के बाद उनकी फाइलों और पूजा के सामान आदि में मैंने जपूजी साहिब , चंडी दी वार , सुखमणी साहिब आदि सिक्ख रचनाएँ देखीं , जो आज तक मेरे पास सुरक्षित भी हैं और यदा कदा उन्हें पढ़ा भी ।
श्रीगुरुनानक देव जी के प्रकटोत्सव पर उनके वालपेपर , शुभ बधाई संदेश और उनकी महिमा वर्णन करते अनेक पोस्ट होंगे , किन्तु मुझे लगा जिस समाज को मुस्लिम आक्रांताओं के समय में उन्होंने एकजुट करने हेतु जीवन लगा दिया उसी विषय पर अपना अनुभव आप सबसे साझा करूँ ।
आप सब को विरक्त ब्रह्मानुरागी संत श्री गुरुनानक देव जी के आविर्भाव दिवस पर बहुत बहुत शुभकामना । हमारा प्रिय राष्ट्र व समाज सदा भ्रातृत्व से युक्त रहे ।