अरुण लवानिया : राहुल कंवल वामपंथी मानसिकता के पत्रकार ने सोशल मीडिया में लिखा कि दलितों को गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में प्रवेश की मनाही हैं। ध्यान दीजिये कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी इसी मंदिर के महत भी है। इसलिए राहुल कंवल जैसे वामपंथी पत्रकार ने सोचा होगा कि उसके इस बयान से संभवत शहरी नक्सली जमात को लाभ मिलेगा। पर जब सच्चाई सामने आई तो उसके लिए थूक कर चाटने जैसे नौबत आ गई। न निगलते बना न उगलते।
सच्चाई यह है कि गोरखनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी कमल नाथ दलित है, भंडार गृह में भोजन और नाश्ता तैयार करने वाले बारह में से सात भंडारी दलित हैं (जिनके हाथ से बने भोजन को मंदिर के प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है), गोशाला में दलित कार्यरत हैं, मीडिया विभाग के प्रभारी विनय कुमार गौतम दलित हैं, गोरखनाथ मंदिर से जुड़े पाटेश्वरी देवी मंदिर के महंत मिथिलेश नाद योगी दलित हैं, महाराजगंज, चौक बाजार, गोरखनाथ मंदिर के पुजारी फलाहारी बाबा दलित हैं, जंगल धूसड़ में नाथ पीठ से संचालित बुढ़िया माता मंदिर के पुजारी संतराज निषाद हैं।
इसलिए मैं दलित भाइयों को यही कहना चाहूंगा कि अम्बेडकरवादवाद के नाम पर भड़कावें में मत आये। हिन्दू समाज ने पिछले 150 वर्षों में जातिवाद उन्मूलन के महत्वपूर्ण विषय में बहुत कार्य किया हैं। आज वैसे हालात नहीं है जो कभी पहले थे। अंतिम सन्देश यही है कि देश, समाज,स्ववंश, धर्म और तथागत् द्रोही बन जीवन व्यतीत करने से कोई लाभ नहीं है।