राम गोपाल : अपने विचार , अपने उद्देश्य , अपने लक्ष्य और अपने समर्पण के प्रति साहस पूर्वक दृढ रह कर बड़े से बड़ा मूल्य चुकाने वाले शूरवीर संसार मे विरले ही होते हैं | जिस विचार व प्रेरणा से एक बार दिल की गहराइयों तक एकाकार हो गए फिर उसी पर अटल , अडिग रह कर अपने जीवन की साधना करना किसी दृढ सकंल्प व्यक्तित्व के बूते की बात होती है |
शहीद पतंगा जी एक ऐसे ही शूरवीर इंसान थे जो देश की खातिर अपने सीने को देशद्रोहियों की गोली का निशाना बन जाने के भय से कभी भयभीत नही हुए | आपका जन्म 4-11-1940 को एक साहित्य व देश प्रेमी परिवार मे हुआ | आपके अग्रज श्री गुरचरन सिंह दीपक जैतोई को हर पंजाबी साहित्य प्रेमी जानता है | पतंगा जी को भी साहित्य , पठन व लेखन मे गहरी रूचि थी | पतंगा जी ने पंजाबी साहित्य को कई सुंदर रचनाएँ दी |
साहित्य कर्म के साथ साथ राजनीति मे भी आप पूरी तरह सक्रिय रहे | आपका राजनितिक जीवन भारतीय जनसंघ से शुरू हुआ | अपनी किशोरावस्था से ही आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क मे थे | फिर योजनानुसार पतंगा जी राजनितिक क्षेत्र मे उतरे और अपनी शहादत तक उसी मे सक्रिय रहे | स्वयं को डा. हेडगेवार का सेनानी कहने वाले पतंगा जी ने एक सेनानी योग्य मृत्यु का वरण किया |
प्रारम्भ मे पतंगा जी भारतीय जनसंघ के स्थानीय सचिव , जिला सचिव , जनता पार्टी के जिला महासचिव तत्पश्चात भाजपा के जिलाध्यक्ष व 1989 मे पंजाब भाजपा के प्रदेश सचिव बने | 1975 मे आप आपातकाल मे जेल मे रहे | उस समय घर की स्थिति यह थी कि दो वक्त की रोटी भी नसीब नही हो रही थी | फिर भी आप अपने इरादे पर अटल रहे और राजनितिक सक्रियता बनाई रखी व आपातकाल मे छह माह की सजा काटी |
सादा वेष , साधारण सा दिखने वाला व्यक्तित्व साइकिल पर दौड धूप करने का अभ्यासी , संगठन के लिए सतत अनवरत परिश्रम करने का भाव ……….श्री पतंगा जी यही सब स्वाभाविक रूप से थे | दिन हो या रात कोई भी जरूरत मंद उनके पास जब कभी आता उसके साथ उसी समय चल पड़ते , उनकी सुनार की दुकान थी पड़ोसी को ध्यान रखने को कह कर दुकान खुली छोड़ कर चल पड़ते | कई बार किसी गरीब आदमी को अपनी जिम्मेदारी से घर का सामन दिलवा देते व जिसकी वजह से स्वयं को उसका भुगतान भी करना पड़ जाता |
पंजाब मे जब राष्ट्रीय एकता की शमा पर कुर्बानियों का दौर चल रहा था | जिस समय पंजाब मे राजनीतिज्ञ , पत्रकार , पुलिस व प्रशासनिक अफसर तथा आम जन नित्य प्रति शहीद हो रहे थे , जन सामान्य उग्रवाद का शिकार हो निराश हो चला था ,
पतंगा जी दृढ प्रतिज्ञ बने रहे | उग्रवादियों की हिट लिस्ट मे आ गए व धमकियों से डरे नहीं | अंततः आप 29 जनवरी 1990 को देशद्रोहियों के हाथों शहीद हो गए | आपकी अपनी ही एक पंजाबी कविता आपके जीवन –विचार –कृतित्व और बलिदान का प्रत्यक्ष साक्षात्कार करवाती है –
शेखी मारनी घरे है बहुत सौखी ,
कफन बन्न के मैदान विच आइदा ऐ
परख हौंसले दी हुंदी उस वेले ,
मत्था पहाड़ां थीं जदों लाइदा ऐ
विरला जितदा ऐ बाजी मौत कोलों ,
बाजी जितने नुं जिगर चाहिदा ऐ
जदों इश्क दी होवे अजमाइश ओदों ,
दारां उत्ते वी इश्क अजमाइदा ऐ
सीस रख के तली उत्ते ,
जो आखिए कर विखाइदा ऐ
गल्लां नाल नही पतंगे हुंदे फर्ज पूरे ,
जानां वार के फर्ज निभाइदा ऐ
पतंगा जी एक साधारण गरीब परिवार मे जन्मे किन्तु अपनी प्रतिभा , अपनी कर्तव्य निष्ठा , अपने परिश्रम व समर्पण साधना के कारण वे एक सर्वमान्य राजनीतिज्ञ के नाते प्रतिष्ठित हुए भारत माँ के महान सपूत शहीद पतंगा जी को शत शत प्रणाम !