देवेन्द्र सिकरवार : यह सही है कि इतिहास विजेताओं को याद रखता है ,पराजितों को नहीं । परंतु भारत के योद्धाओं ने जय पराजय से भी ऊपर मानवता को रखा और भारी कीमत भी चुकाई पर फिर भी मानवता में उनकी अदम्य आस्था की बदौलत ना केवल विजयें प्राप्त कीं बल्कि उस ‘ आदर्श ‘को बचाने में कामयाब रहे जो सच्चे अर्थों में भारत को भारत बनाता है और वह है हिंदुत्व
ये सभी योद्धा महापुरुष प्रातःस्मरणीय हैं और अतुलनीय हैं फिर भी निम्नलिखित कुछ कसौटियों के आधार पर इनकी तुलना करने की धृष्टता कर रहा हूँ —-
1– संसाधन , सेना व परिस्थितियाँ
2– रणनीति
3– युद्धों की संख्या
4– विजयें
5– युद्धों व विजयों के दीर्घकालीन परिणाम
पृथ्वीराज चौहान 1191 के तरायन युद्ध में अक्षम्य भूल और 1192 के द्वितीय तरायन युद्ध की खराब रणनीति व लापरवाही के कारण …
दुर्गादास राठौर औरंगजेब को घेरने का अवसर मिलने पर भी उसकी कूटनीति का मुकाबला करने में असफलता के कारण Top 10 में जगह नहीं बना सके ।
शेष टॉप 10 में हैं —-
राणा सांगा & हेमचन्द्र विक्रमादित्य
दोनों ने प्रारंभ बहुत कठिन जीवन से किया ।
हेमूँ अगर नमक के व्यापारी थे तो सांगा मालवा में स्वनिर्वासित ।
रणनीति दोनों की पारंपरिक व कमजोर रही हालांकि व्यक्तिगत शौर्य एवं उच्च नेतृत्व के कारण सभी युद्ध जीते पर दोनों ही अपनी अपनी भयानक रणनीतिक भूलों से अपने अंतिम युद्ध हार गये जिसका फल भारत को मुगलों की सैन्य सर्वोच्चता के रूप में भुगतना पड़ा ।
इसलिये नंबर 10——–
बंदा बैरागी
अद्भुत संगठनकर्ता ,
चुस्त व गतिशील सैन्य संगठन , छापामार व ‘ मंगोल रणनीति ‘ को नये रूप में प्रयोग किया ।
सर्वक्षार और भयंकर प्रतिशोध द्वारा मुस्लिम सेनाओं में मनोवैज्ञानिक आतंक पैदा किया ।
लगभग सभी युद्ध जीते और रणजीत सिंह के खालसा राज्य के लिये भूमिका तैयार की
परंतु आखिर में पकड़े व मारे गये ।
इसलिये नंबर 9———–
महाराज सूरजमल
जाट जाति के ‘ प्लेटो ‘ ।
सीमित संसाधन , परंपरागत सेना ।
छापामार और मैदानी पद्धति का कुशलता पूर्वक उपयोग मुगल सल्तनत की राजधानी के ठीक नाक नीचे भरतपुर को एक सैन्यशक्ति के रूप में स्थापित किया ।
सदाशिव राव भाउ अगर इनकी रणनीतिक सलाह मान लेते तो आज भारत का इतिहास दूसरा होता ।
परंतु सैन्य सफलताओं का क्षेत्र सीमित ।
————-इसलिये नंबर 8———–
महाराणा प्रताप
वीर शिरोमणि , भारत में गुरिल्ला युद्ध के जनक ।
सेना छोटी व संसाधन सीमित ,
अकबर के रूप में मुगल शक्ति का मध्यान्ह सूर्य और विरोध में मानसिंह जैसे बंधुघाती ।
गुरिल्ला युद्ध की रणनीति ।
हल्दीघाटी जैसे विश्वप्रसिद्ध युद्ध के अतिरिक्त कई युद्ध । हल्दीघाटी युद्ध को छोड़कर शेष में विजयी ।
संघर्ष का क्षेत्र सीमित होने तथा पिता उदय सिंह की खुले मैदान में ना उतरने की रणनीति का त्याग कर हल्दीघाटी में खुले युद्ध का जोखिम उठाया व पराजित होना पड़ा ।
——– इसलिये नंबर 7
महाराज कृष्णदेव राय & राणा कुंभा
दोनों का प्रारंभ संकटपूर्ण परंतु राज्य के संसाधन व विशाल सेनायें ।
रणनीति पारंपरिक ।
कृष्णदेव राय बहमनी राज्य संघ के लिये व राणा कुंभा उत्तर के तुर्क/पठान सुल्तानों के लिये आतंक ।
सभी युद्ध जीते ।
सैन्य सफलतायें मूलतः सेना की विशालता पर आधारित थी और रणनीति में कोई क्रांतिकारी सुधार नहीं …..
——————- इसलिये नंबर 6
महाराज छत्रसाल
प्रारंभ अत्यंत विपन्नावस्था से ।
सेना व संसाधन सीमित परंतु स्वामी प्राणनाथ के मार्गदर्शन में हीरों की खदानों की खोज तथा शिवाजी के आशीर्वाद से स्थितियां बदलीं ।
छापामार युद्ध व नयी नयी रणनीतिक युक्तियों का प्रयोग
सभी युद्ध जीते व बाजीराव प्रथम के उत्तर अभियान की भूमिका तैयार की ।
पर बुंदेलखंड तक सीमित ।
——– इसलिये नंबर 5
महादजी सिंधिया
गडरिये वंश में जन्मे , रक्षिता माँ से उत्पन्न होने के कारण पैतृक विरासत से वंचित व पानीपत में घायल एकाकी सेनानायक योद्धा जिसने अपने दम पर पुनः उत्तरी भारत में मराठों को सर्वोच्च सैन्य शक्ति बना दिया ।
पारंपरिक सेना के अलावा डी बोइन द्वारा प्रशिक्षित आधुनिक सैन्य टुकड़ी का भी गठन किया ।
गतिशीलता तथा तोपखाने का बेहतरीन तालमेल ।
परंतु अंग्रेजों के विरुद्ध इतने सफल नहीं रहे …
—–इसलिये नंबर 4
छत्रपति शिवाजी
प्रारंभ विषम परिस्थितियों से ।
सेना सुगठित , गतिशील , चरित्रवान , राष्ट्रवादी भावना से ओतप्रोत ।
चोलों के बाद पहली भारतीय नौसेना का गठन ।
रणनीति छापामार ।
सैन्य सफलतायें आश्चर्यजनक खासतौर पर ये देखते हुए कि उनका सामना क्षेत्रीय मुस्लिम सत्ताओं व एशिया की सबसे बड़ी सैन्य शक्ति औरंगजेब से था ।
परंतु जंजीरा के सिद्दियों , जयसिंह के विरुद्ध असफल —
—— इसलिये नंबर 3
हरी सिंह नलवा
महाराज रणजीत सिंह की ‘ दांईं भुजा ‘ ‘
अफगानों के लिये खुदा का कहर ‘
सेना फ्रांसीसी जनरलों एलार्ड और वेन्तुरा द्वारा प्रशिक्षित रणनीति आकस्मिक और अत्यधिक गतिशीलता ।
हर युद्ध जीते ।
अफगानिस्तान के द्वार तक खालसा के रूप में हिंदू ध्वज को फहराया ।
परंतु अंतिम युद्ध में सेनापति योग्य सावधानी को त्याग आगे चले गये और अफगानों के चंगुल में फंसकर गंभीर रूप से घायल होकर मृत्यु को प्राप्त हुये ।
——- इसलिये नंबर 2
अब वो नाम जो वाकई नंबर 1 को डिजर्व करता है ।
इन्होंने सेना संगठन को चुस्त और मारक बनाया ।
सेना की गतिशीलता इतनी बढ़ा दी कि मुस्लिम उन्हें ‘ भूत ‘ मानते थे ।
प्रत्येक युद्ध में विजयी ।
निजाम के विरुद्ध पालखेद व भोपाल का घेरा तो विश्व की सैन्य पुस्तकों में पढ़ाया जाता है जिसमें सिर्फ रणनीति की उत्कृष्टता के कारण दुश्मन को बड़ी सेना के बावजूद घुटने टेकने पड़े ।
इन्होंने ‘ अटक से कटक ‘ तक जिसने भगवाध्वज लहराया व एक भी युद्ध नहीं खोया इसलिये
नंबर 1 पर हैं …………42 वर्ष के छोटे से जीवन में आधे से ज्यादा जीवन शिविर और घोड़े पर बिताने वाले युगदृष्टा व सेनापति शिरोमणि , अजेय , अपराजित….पेशवा_महाबली_बाजीराव_प्रथम