ग्रामीण क्षेत्रों, प्राकृतिक संसाधनों के विकास और शिक्षा में अपने कार्य के लिए सम्मानित
पद्मा भार्गव ; यह हम सभी के लिए, भारतवासियों के लिए बहुत गर्व और सम्मान की बात है की विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी अगले वर्ष विवेकानंद रॉक मेमोरियल की 50वीं वर्षगांठ मनायेगा और इस समय उसे वर्ष 2015 के लिए गौरवमय गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
थोड़ा पीछे मुड़कर देखें तो, वर्ष 1970 में विवेकानंद रॉक मेमोरियल का निर्माण कार्य समाप्त होने के बाद, माननीय एकनाथजी, विवेकानंद केंद्र के संस्थापक ने युवाओं के हृदयों में एक सजीव स्मारक को बनाए रखने की कल्पना की जो की स्वामी विवेकानंद जी के प्रति और उचित श्रद्धांजलि होगी। इस भाव को स्वामी विवेकानंद जी के विचार द्वारा प्रकट किया गया, “एक लाख स्त्री व पुरुष पवित्रता के उत्साह से प्रज्वलित, ईश्वर में अनंत विश्वास से मजबूत, सिंह जैसी साहस के साथ गरीबों और पिछड़े और कुचले लोगों के प्रति दयाभाव रखते हुए समस्त मातृभूमि में जायेंगे और मोक्ष का धर्मसिद्धांत, सहायता का धर्मसिद्धांत, सामाजिक उत्थान का धर्मसिद्धांत, समानता का धर्मसिद्धांत उपदेश देंगे।”
विवेकानंद केंद्र को यह पुरस्कार उसके भव्य कार्यों के लिए दिया गया है जिसे यह केंद्र दो प्रकार के क्रियाकलापों द्वारा सम्पन्न करता है, एक है संगठनात्मक कार्यों द्वारा और दूसरा, सेवा कार्यों द्वारा। इन कार्यों को पूरे देश में काम कर रहे 830 क्रियाकलाप केन्द्रों द्वारा पूरे किए जाते हैं।
आइए, केंद्र के क्रियाकलापों पर एक नज़र डालें;
शैक्षिक क्रियाकलाप
विवेकानंद केंद्र विधिवत और अविधिवत दोनों प्रकार की शिक्षा के क्षेत्र में अपने सेवा कार्यों और साथ ही शाखाओं द्वारा कार्य करता है।
विधिवत शिक्षा के क्षेत्र में
विवेकानंद केंद्र विद्यालय अथवा VKV कई राज्यों में काम कर रहे हैं, जैसे, अरुणाचल प्रदेश में 37, असम में 24, नागालैंड में एक, अंडमान द्वीपों में 10 और दक्षिण भारत में 3। कुल 75 विद्यालय हैं।
अरुणाचल प्रदेश को क्यों चुना गया? 1962 के चीनी आक्रमण के दौरान, इस राज्य के लोगों को अनेकानेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ा था क्योंकि सूचना के लिए सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं। माननीय एकनाथजी को यह आभास हुआ की राष्ट्रवाद की भावना के अभाव में कितनी भी बड़ी सेना क्यों न हो, देश की अखंडता को लंबे समय तक सुरक्षित नहीं रख पाएगी और वहाँ हमारे देशवासी की रक्षा नहीं हो पाएगी। उन्होंने विषेशरूप से अरुणाचल प्रदेश पर और सामान्य तौर पर उत्तर पूर्व पर अपना ध्यान केन्द्रित किया, मुख्यरूप से इस इलाके की भूगौलिक विशिष्टता के कारण। उत्तर पूर्व का 98 प्रतिशत हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय सीमा से जुड़ा हुआ है और केवल 2 प्रतिशत सीमा भारत से जुड़ा हुआ है।
शुरुआत में अरुणाचल प्रदेश में काम करना बहुत कठिन था क्योंकि वहाँ पर सड़कें नहीं थीं, यातायात के साधन नहीं थे और इसके अलावा वहाँ पर भूस्खलन, बाढ़, आदि की समस्याय भी थी। बच्चे दूरगामी गाँवों से सात दिनों तक पैदल चलकर अपनी पाठशालाओं तक पहुँच पाते थे। इसलिए केंद्र ने यहाँ पर आवासिक विद्यालयों के बारे में सोचा। बच्चों में रूपांतरण को देखते हुए, आज अरुणाचल प्रदेश में VKV एक ब्रांड नाम बन गया है। छात्र सभी विषयों में अव्वल आ रहे हैं, वे राष्ट्रिय एवं कई बार तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपना नाम रौशन कर रहे हैं। वे खेलकूद में अच्छे हैं, उनके शैक्षिक परिणाम भी बहुत उत्कृष्ट हैं और साथ ही छात्रों का शिष्टाचार और विकास की हर ओर प्रशंसा होती है।
VKV के भूतपूर्व छात्र सभी क्षेत्रों में हैं जैसे, भारतीय प्राशासन सेवा, सेना, शिक्षा, उद्यमी आदि। अरुणाचल प्रदेश में VKV के भूतपूर्व छात्रों द्वारा 18 पाठशालाएं चलाई जा रही हैं। असम, अंडमान, नागालैंड और दक्षिण की पाठशालाओं में भी उत्कृष्टता की यही कहानी दोहराई जा रही है जो ग्रामीण छात्रों के लिए चलाई जा रही हैं।
अविधिवत शिक्षा के क्षेत्र में
असम के चाय बागानों में केंद्र द्वारा 120 आनंदलाय चलाये जा रहे हैं। इस उपक्रम से चाय बागानों के परिवारों के सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इससे उनके जीवन की गुणवत्ता बढ़ी है और चाय बागानों के मजदूरों और उनके बच्चों का जीवन सुधरा है।
इसी प्रकार से, ओड़ीशा के कियोंझार जिले के देवबंध में, प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाई छोड़ देने का दर बहुत ज़्यादा थी। अगर छात्र प्राथमिक कक्षा में पढ़ाई अच्छी नहीं कर पाता था तो, उस छात्र की छटी कक्षा में पढ़ाई छुड़वा दी जाती थी। केंद्र के उपक्रम के बाद, यह दर शून्य हो गई है, क्योंकि शिक्षक और छात्र दोनों का ही हौंसला अब बुलंद है। इस समय, विवेकानंद केंद्र द्वारा करीब 227 आनंदलय और 200 से ज़्यादा बालवाड़ी चलाये जा रहे हैं।
इन दिनों, छात्रों को विधिवत पाठ्यक्रम में उस प्रकार की शिक्षा नहीं मिल पा रही है जिससे वे एक मजबूत चरित्र का निर्माण कर सकें। इसलिए, विद्यालय और महाविद्यालय के छात्रों के लिए विवेकानंद केंद्र लगभग 17000 बच्चों के लिए 565 संस्कार वर्ग, 2500 महाविद्यालय के छात्रों के लिए 147 स्वाध्याय वर्ग और गुणवत्ता जांच के द्वारा युवा विकास के कार्यक्रमों को चलाता है और लगभग 748 महाविद्यालयों के 65000 छात्रों के लिए एक दिवसीय कार्यशालाएं और आवासीय शिविरों का आयोजन करता है।
ग्रामीण विकास परियोजनाएं (तमिलनाडू, असम,ओड़ीशा, महाराष्ट्र)
स्वामी विवेकानंद जी ने इस बात पर बल दिया था की आर्थिक विकास के साथ-साथ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विकास भी अनिवार्य है। इसलिए, विवेकानंद केंद्र के ग्रामीण विकास परियोजनाओं को दक्षिण तमिलनाडू, महाराष्ट्र के नाशिक, ओड़ीशा के किओंझार और संभलपुर जिलों में, असम और अरुणाचल प्रदेश में लाभार्थियों के भौतिक हित के साथ-साथ चहुंमुखी विकास पर ध्यान केन्द्रित किया है। छोटे बच्चों के लिए बालवाड़ी चलाई जा रही हैं जहां उन्हें पोषक आहार भी दिया जा रहा है। इतना ही नहीं, केंद्र ग्रामीण कौशल को पहचान कर बच्चों को उनकी पाठशालाओं में भी मदद कर रहे हैं। इसी तरह से, नेतृत्व विकास, प्ल्म्बींग, घरेलू-नर्सिंग, मोटर मेकानिक आदि में कौशल विकास के कार्यों को युवा और महिलाओं के लिए सिलाई केंद्र चलाये जा रहे हैं।
इसके अलावा चिकित्सा केंद्र चलाये जा रहे हैं, नियमित रूप से चिकित्सा और शल्य चिकित्सा शिविरों, गतिशील चिकित्सा वैन का आयोजन किया जाता है, और अंदरूनी इलाकों में आरोग्यरक्षक योजनाओं को भी चलाया जा रहा है।
केंद्र द्वारा चलाई जाने वाली एक बहुत दिलचस्प योजना है “दादी को गोद लो” (“Adopt a Granny”), जिसके तहत बूढ़ी औरतों को एक जोड़ी कपड़ा और मासिक राशन देकर उनका ध्यान रखा जाता है। दीप पूजा के द्वारा, ग्रामीण महिलाओं को स्वास्थ्य, स्वच्छता, और बच्चों की परवरिश के बारे में भी शिक्षा दी जाती है। अमृत सुरभि एक विशेष योजना है जिसमें फसल काटने के समय गृहस्थ प्रति दिन एक मूट्ठी भर कर और किसान एक बोरा भर कर अनाज को अलग रख देते हैं। इस तरह से लगभग 35,000 मूल्य का चावल इकट्ठा किया जाता है और इसे समय-समय पर वृद्ध महिलाओं, बच्चों और अनाथाश्रमों में भी दिया जाता है।
विवेकानंद केंद्र – NARDEP (प्राकृतिक संसाधन विकास परियोजना)
VK-NARDEP विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी की एक आधारभूत परीयोजना है। इसे वर्ष 1986 में भारतीय ऋषियों की दूरदृष्टि: इसवास्यम इदं सर्वम – सारी सृष्टि इस दिव्य शक्ति द्वारा रची गई है और स्वामी विवेकानंद जी की दबे कुचले लोगों के उत्थान के लिए आह्वान से प्रेरित होकर आरंभ किया गया था। VK-NARDEP पारंपरिक बुद्धिमता और आधुनिक विज्ञान को जोड़कर आधुनिक जीवनशैली की समस्याओं विशेषकर ग्रामीण समुदायों के लिए किफ़ायती वैकल्पिक सर्वांगीण समाधानों को प्रदान करता है।
किफ़ायती निर्माण कार्य
इसके अंतर्गत, NARDEP ने पैंतीस से अधिक पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों के बारे में प्रचार किया है, प्रशिक्षण व जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करता है, राजमिस्त्रियों, इंजीनियरों आदि को वास्तविक नमूनों का प्रदर्शन करवाता है, ग्रामीण निर्माण केंद्र को चलाता है।
जल संचयन तकनीक
समुदाय जल संचयन, छत पर जल संचयन और पारंपरिक जल संचयन ढांचों की बहाली, शहरी व ग्रामीण जल संचयन परियोजनाओं के नमूनों को इस क्रियाकलाप द्वारा पूरा किया जाता है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है की VK-NARDEP को समुदाय प्रयासों के द्वारा जल संरक्षण में अपने योगदान के लिए जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा भूमजल संवर्धन पुरस्कार- 2007 प्रदान किया गया था।
संधारणीय कृषि
संधारणीय कृषि एक और क्षेत्र है जहां VK-NARDEP ने बहुत बड़े पैमाने पर काम किया है। यह कृषि के लिए बायो-गैस घोल आधारित जैविक निवेश, आँगन में अज़ोला उपज जिसे मुर्गी और मवेशी के लिए जैविक आहार के रूप में उपयोग किया जाता है, प्रदान करता है। इसके अलावा, वृद्धिकारियों को जैविक सूत्र और कीट प्रबंधन, कृषि अभ्यासों के पारंपरिक ज्ञान का प्रलेखन भी प्रदान करता है।
अज़ोला तकनीक को 2008 में राष्ट्रिय अनुसंधान विकास प्राधिकरण द्वारा सामाजिक नवीनता पुरस्कार, नई दिल्ली से सम्मानित किया गया था।
देशी और सर्वांगीण स्वास्थ्य
इस क्रियाकलाप के जरिये, NARDEP ग्रीन हैल्थ होम अथवा मरीजों के उपचार के लिए सिद्ध प्रणाली का उपयोग कर रहा है, यह ग्रामीण स्वास्थ्य जागरूकता और स्वास्थ्य शिविरों को बड़े पैमाने पर आयोजित कर रहा है। इसके अलावा, NARDEP ग्रामीण गृह स्वास्थ्य उपवन का भी आयोजन करता है, पारंपरिक चिकित्सा विज्ञान का प्रलेखन, ग्रामीण महिलाओं के स्वयं स्वास्थ्य समूहों द्वारा हर्बल दवाइयों को भी तैयार करता है।
ग्रीन हैल्थ होम ने भारत के दक्षिणी प्रांत से 1000 से अधिक चिकित्सकों और वैद्यों को पिछले एक दशक से वर्म चिकित्सा की कला और विज्ञान में प्रशिक्षित किया है। अब यह “वर्म संसाधन केंद्र” बन गया है।
अक्षय ऊर्जा
अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में VK-NARDEP ने गोबर आधारित बायो-गैस यंत्रों का देशभर में निर्माण करने में मदद की है। इसके लिए बायोगैस संयंत्र उपयोगकर्ताओं और राजमिस्त्रियों को नियमावली प्रदान की गई है, राजमिस्त्रियों और आम जनता के लिए जागरूकता और प्रशिक्षण शिविरों का गठन किया है, बायो गैस संयंत्र के नए प्रतिरूपों को विकसित करने के लिए अनुसंधान का कार्य किया जा रहा है।
अक्षय ऊर्जा और कृषि के क्षेत्र में इसके बहुमूल्य योगदान के लिए इसे वर्ष 2006 में अंतराष्ट्रीय अश्डेन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
वर्ष 2009 में VK-NARDEP को पानी में उपजने वाले अवांछित पौधों के जरिये बायो गैस उत्पन्न करने की परियोजना के लिए NRDC पुरस्कारदिया गया था। इसके “शक्ति सुरभी” बायो-मेथेनन प्रतिरूप के लिए श्री लंका, चीन, दक्षिण अफ्रीका और भारत से पैटंट मिले हैं।
अंदरूनी संधारणीयता और नेटवर्किंग
अंदरूनी संधारणीयता VK-NARDEP के प्रमुख क्रियाकलापों में से एक है जिसके लिए उसे सभी क्षेत्रों से अपार प्रशंसा और पहचान मिली है। सरकारी विभागों, पंचायत अध्यक्षों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, स्वयं सेवी संस्थाओं, स्वयं सहायता समूहों, छात्रों आदि सहित समाज के विभिन्न वर्गों के लिए प्रेरणा कार्यशालाएं, व्यक्तित्व विकास कार्यशालाएं नियमित रूप से आयोजित की जाती हैं। इसके अलावा, यह संधारणीय विकास और अन्य विषयों पर हिन्दी, तमिल और अंग्रेजी भाषाओं में 50 से ज़्यादा पुस्तकों का प्रकाशन करता है। सरकारी अधिकारियों के लिए पुनश्चर्या पाठ्यक्रम और प्रेरणा कार्यशालाओं का भी आयोजन किया जाता है। यह दूसरे स्वैच्छिक संगठनों और वैज्ञानिक संस्थाओं के साथ मिलकर विद्यालय और महाविद्यालयों के छात्रों के लिए ईको-कैंपों का आयोजन करता है।
हरित रामेश्वरम
यह विवेकानंद केंद्र – NARDEP का ही उपक्रम है की रामेश्वरम को स्वच्छ एवं हरा बनाएं और यह हरे-भरे रामेश्वरम को बनाने के लिए उत्प्रेरक के रूप में काम कर रहा है। यह कई भागीदार संगठनों, वैज्ञानिक संस्थाओं, स्थानीय साझेदारों, राज्य और केन्द्रीय सरकार के साथ काम कर रहा है। इस परियोजना को 28 जनवरी 2014 में भूतपूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉक्टर. ए. पी.जे. अब्दुल कलाम जी ने लोकार्पण किया था जबकि इसकी कार्य योजना का विमोचन माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 27 जुलाई 2017 को किया था।
इसके अलावा, विवेकानंद केंद्र के रणनीतिज्ञ 2012-2013 से हरयाणा और पंजाब में काम कर रहे हैं, यह वह समय था जब केंद्र स्वामी विवेकानंद जी का 150वां जन्म दिवस मना रहा था। इस समय, इसकी शाखाएँ हरयाणा प्रांत के अंतर्गत फ़रीदाबाद, गुरुग्राम, रेवाड़ी, भिवानी, नारनौल, रोहतक, सोनीपत, पानीपत, करनाल, और पंचकुला में हैं और पंजाब प्रांत के अंतर्गत चंडीगढ़, लुधियाना, अमृतसर और पठानकोट में भी हैं। बच्चों के लिए सप्ताहिक संस्कार वर्ग, युवा के लिए स्वाध्याय वर्ग भी आयोजित की जाती हैं और उसके साथ-साथ विभिन्न उत्सवों और कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।