योगी अनंत : CNN अमेरिका के चैनल के एक प्रोमो में दावा किया गया कि रामसेतु के बारे मैं साइंटिस्टिफिक जांच से पता चलता है कि भगवान राम के श्री लंका तक सेतु बनाने की पौराणिक कथा सच होसकती है।
यह शो “साइंस चेनल पर प्रसारित हुआ ” अमरीकी पुरातत्विक विद्ववानों ने भारत और लंका के बीच 50 किलोमीटर लम्बी रेखा चट्टानों से बनी हुई है । ये चटटाने 7000 साल पुरानी है । जबकी जिस बालु पर टिकी है , वह बालू 4000 साल पुरानी है । NASA के सेटेलाइट तस्वीरों ओर अन्य प्रमाणो के साथ विशेषज्ञ कहते है कि , चट्टानों ओर बालू की उम्र विसंगतियों को बताती है , कि इस पूल का निर्माण कार्य मानव ने ही किया है । पुरातत्वविद ओर सर्दन ऑर्गेनि यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाली डॉ चेल्सी रोज़ का कहना है कि, “चट्टानों की उम्र उस बालू से ज़्यादा है जिस वह टिकी है, इसका मतलब हिन्दुओ के पोराणिक गर्न्थो पर बहुत कुछ रिसर्च बाकी है” वही भू गर्भ विशेषज्ञ एलन लेस्टर कहते है कि , भगवान राम ने लंका ओर भारत को जोड़ने के लिये एक पुल बनाया था । इसके लिए दूर दूर से पत्थरों को लाया गया उन्हें बालू के टीलों की एक लाइन के ऊपर रखा गया , उनका कहना है कि यह पुल बनाना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है ।
भोगलिक स्थिति भारत के दक्षिण में धनुष कोटि तथा लंका के ऊपर पश्चिमी भाग मैं पम्बन के बीच समुद्र से 48 किलोमीटर चौड़ी पट्टी के रूप मे उभरे एक भू भाग के सेटेलाइट से खिंचे गए चित्र को अमेरिका के NASA ने 1993 में जारी किया । इस पुल जैसे भू भाग को रामसेतु कहा जाने लगा । अमेरिका इसे एडम ब्रिज कहता है
रामसेतु की तस्वीरों को 14 दिसम्बर 1966 में zemini 11 सेटेलाइट से अंतरिक्ष से प्राप्त किया इसके22 साल बाद ISS-1A ने तमिलनाडु तट पर स्थित रामेश्वरम ओर जाफना द्वीपों के बीच समुद्र के अंदर भूमि भाग का पता लगाया । और उसका चित्र लिया , इससे अमेरिका के सेटेलाइट की चित्रों की पुष्टि होती है । भारत के दक्षिण पूर्व में श्री लंका ओर रामेश्वरम के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच उथली चट्टानों की एक पँक्ति है समुद्र में इन चट्टानों की गहराई 3 फुट से 30 फुट है । यह पूल मन्नार की खाड़ी ओर पाक जलडमरूमध्य को एक दूसरे को काटते हैं। इस इलाके में समुद्र बहुत उथला है। 1500 ई तक इस पूल पर चल कर मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था।
इस पूल को लेकर शोध करता एक मत नही है , कुछ इसे 3500 साल पुराना बताते , कुछ 7000, तो कुछ 17 लाख साल पुराना मानते है ।
वाल्मीकि रामायण, तुलसीदास रचित रामचरित मानस ओर पोराणिक ग्रन्थों को जो प्रचीन भारत का महत्वपूर्ण अंग है , लेकिन इन्हें ऐतिहासिक दस्तावेज नही कहा जा सकता है। यह बात अहमदाबाद के मैरीन एंड वाटर रिसोर्स ग्रुप स्पेस एल्पीकेशन सेंटर ने कही, ओर इसी से मिलतिजुलती बात भारतीय पुरातत्व विभाग ने भी कही।
नरेन्द्र कोहली ने उपरोक्त बातों का खंडन किया , कि तत्कालीन सरकार झूंट का प्रसार कर रही है , कि भगवान राम अयोध्या लौटते समय रामसेतु को तुडवा दिया था , जबकि भगवान राम वायु मार्ग से अयोध्या लौटे थे ।तो फिर कैसे रामसेतु तुडवा सकते, ।
लालबहादुर शास्त्री विद्या पीठ के लेक्चरर डॉ राम सलई द्विवेदी ने कहा कि , वाल्मीकि ओर तुलसीदास के अलावा कालिदास ने रघुवंश के तेरहवें सर्ग में भगवान राम के आकाश मार्ग से लौटने का वर्णन है।इसलिए यह कहना गलत है कि, भगवान राम ने रामसेतु को तुडवा दिया था।
सेतुसमुद्रम परियोजना को लेकर चल रही राजनीति के बीच कोस्ट गार्ड R F कॉन्ट्रेक्टर ने कहा , कि, यह परियोजना देश के लिये खतरा हो सकती हैं। इसकी पूरी संभावना है कि इस चैनल का इस्तेमाल आतंकवाद , ओर उग्रवादियों द्वारा हो सकता हैं।
मेरा मत
मेरा मानना है कि , भगवान राम अवश्य ही रामेश्वरम तक आये होंगे , तथा अपनी सेना की सहायता से , रामसेतु का निर्माण किया होगा । समुद्र के जल स्तर के बढ़ने की जो गणना की गई है, उसके मुताबिक रामसेतु निर्माण के समय जल स्तर काफी नीचा रहा होगा
भगवान राम ने लंका तक पहुंचने के लिए समुद्र तट का निरक्षण किया होगा और यह स्थान जिसे हम रामेश्वरम कहते है यहाँ से लंका की दूरी 45 48 किलोमीटर दूर हो सकती हैं। और बिच बिच में टापू भी थे , इसलिए भगवान राम ने रामसेतु निर्माण कार्य यहीं करवाया होगा।
रही बात रामसेतु की प्राचीनता की , मेरा मत यह कि , यह 4000 साल की तिथि ठीक लगती क्योंकि , बालू को मानव द्वारा हाथों से पंक्ति बद्ध किया और बालू 4000 वर्ष पुरानी है। चट्टानों की तिथि 7000 हो सकती है क्योंकि ये दूरस्थ इलाके से लाई गई थी ।
अभी और खोज बाकी है , तिथियों में परिवर्तन हो सकता है।