पंकज शाह : एक नगरी में एक बड़ा धनी अभिमानी रहता था। एक बार बाजार में एक गरीब छाबड़ी वाले से उसने भल्ले-छोले लिए। बड़े आदर से छाबड़ीवाले ने पानी से हाथ धुलाए और धनी हाथ धोकर चलने लगा तो छाबड़ीवाले ने पूछा ! श्रीमान् जी पैसे, पैसे का नाम सुनते ही धनी आगबबूला हो उठा, कहने लगा, ‘अरे ! उल्लू ! कहीं हम भाग चले थे या परदेशी थे, जो तुमने माँग लिये? तुम हमारे मकान पर आकर ले जाते, या हम स्वयं ही भेज देते।’
गरीब बेचारा हाथ जोड़कर कहने लगा―महाराज ! मैं तो गरीब आदमी हूं। मकान आपका जानता नहीं, ना ही मुझे रात तक अवकाश मिलता है, मैं यह भी नहीं जानता कि आप कौन साहब हैं, हम गरीब को, जो दिन-रात मजदूरी में रहते हैं, किसी का क्या पता लग सकता है?
धनी यह सुनकर कि यह मुझे जानता ही नहीं, बोला―’मैं इतना प्रसिद्ध आदमी हूं, अफसरों में मेरा मेल है। शहर के लोग मेरे पास ही सिफारिश कराने के लिए आते हैं।’
यह झूठ बकता है, ऐसा समझकर बड़ा क्रोधित हुआ। मूंछों पर हाथ मारकर कहने लगा―अब यदि दो घण्टे के भीतर-भीतर तुम्हारा चालान न कराया, तो मुझे धिक्कार है। मैं मूंछे भी मुड़वा लूंगा।’
धनी के पास खुशामदी खुशामद करके उसे फुलाते और उस गरीब को धिक्कारते। गरीब बड़ा विस्मित है, कोई उसकी सुनता नहीं। धनी घर चला गया, दो-तीन गुण्डों को बुलाया और कहा―’जैसे भी हो, कोई ऐसा उपाय करके उस छाबड़ीवाले को दो घण्टे में ही हथकड़ी लगवा दो।’
उन्होंने भी शपथ खाई कि हम दो घण्टे तो क्या जाते ही पुलिस साथ ले जाते हैं। उसे छिपाकर खड़ा कर देंगे, और एक खोटा (जाली) रुपया उसके छाबे में डाल देंगे, और फिर हम उससे चीजें खाने लग जायेंगे। बाद में पैसे चुकाने के लिए पांच का नोट उसे देकर उसका तोड़ा मांगेंगे। वह वही रुपया हमको देने लगेगा। हम शोर मचा देंगे कि जाली है। शोर पर सिपाही निकट आ जाएगा। तत्काल उसे पकड़ लेगा। देर ही क्या लगती है। वाह ! सेठ साहब ! यह भी कोई बड़ा काम है?’
धनी इनकी यह युक्ति सुनकर अति प्रसन्न हुआ और प्रसन्नता से खूब हंसा। वे तो चले छाबड़ीवाले के पास। इधर देखो―छाबड़ीवाले का हाल। वह बेचारा था तो गरीब पर था कुलीन। विपत्ति के मारे ऐसा छोटा काम कर रहा था। था भी परदेशी। पहले किसी ग्राम में साहूकार था। व्यापार में हानि पड़ जाने के कारण, वह जीविका के लिए दूर परदेश में निकल गया था। उसे अपनी मानहानि का बड़ा भय लगा। सब लोगों ने भी उसे डराया कि ‘अब तेरी कुशल नहीं।’
उसने सोचा―’मेरा यहां कोई सम्बन्धी सहायक नहीं। पकड़ा गया तो किसी ने छुड़वाना नहीं। चलो अब छाबा बन्द करो और मन्दिर में प्रभु का नाम लो उसी की शरण पड़ो।’
इसने तत्काल छाबा संभालकर रख दिया और प्रभु उपासना में बैठ गया (अभी उधर गुण्डे तो सलाह ही बना रहे थे) वह प्रार्थना करता रो पड़ता, प्रभु से अपनी लाज की रक्षा चाहता, गायत्री का जाप करता रहा। गुण्डे बाजार में आये। पुलिस-मैन को कहा―’आओ ! एक शिकार है।’ छाबड़ीवाले को देखा तो है नहीं। इधर-उधर खोजा, पता नहीं मिला। खूब खोज की बाजार में, उसके मकान को पूछा कि शायद घर चला गया हो। घर का पता न मिला। लोगों ने बताया कि ‘आगे तो सारा दिन यहां ही रहता है आज पता नहीं कहां चला गया।’
एक गुण्डा धनी के पास गया कि उसका ठीक पता पूछ आए। जब वह धनी के पास गया तो देखा भीड़ लगी है डॉक्टर वैद्य इकट्ठे हैं और धनी के मुंह से धाड़ निकल रही है। पूछा तो उसके पुत्र ने बताया कि ‘आप लोगों के चले जाने के बाद आप लोगों की युक्ति फिर उन्हें याद आई। वे अनायास हंस पड़े। उसी हंसी में पेट में बल पड़ गया, और कहने लगे ‘हाय ! मैं मरा।’ सख्त पीड़ा पड़ गई। डाक्टर साहब को बुलाया। उन्होंने देखा, दवाई पर दवाई दी, निकल पड़ी, और दो वह भी निकल पड़ी। सब कहते हैं कि यह कुलज्ज है।’
वह गुण्डा भी अब क्या पूछे, कैसे पूछे? उसके बैठे-बैठे इन ही दो घण्टों के अन्दर जिनमें गरीब को हथकड़ी लगवानी थी―अब काल ने धनी महोदय के हाथ में हथकड़ी, पांव में बेड़ी और मुख पर पत्थर रख दिया। प्राण लेकर रामनाम सत हो गई।
*”अरे ! गरीब को मत सता, गरीब रो देगा।*
*सुनेगा उसका मालिक तो जड़ से खो देगा।”*