दलितों और मैला साफ करने वालों जमादारों भाईयों आँखे खोलो…
विपुल (दलित सेवक), प्रयागराज : डा० भीम राव अम्बेडकर द्वारा रचित आत्म कथा लेखनी पुस्तक में… उनका स्वयं आँखों देखा हाल और उनका हृदय विदारक वाक्यांश …अम्बेडकर जी की आत्म कथा पुस्तक के 42 खण्ड में से एक खण्ड का संक्षिप्त विवरण … आजादी और बटवारे का एक दृश्यांश …
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की मजबूत और गहराई तक जमी जड़ों को भारतवर्ष के देश भक्तों ने हिलाकर रख दिया था । भारतीय जनमानस में स्वतंत्रता के प्रति चेतना जागरूकता तथा उत्कंठा ने , उनके अनवरत संघर्ष, त्याग व नागरिक अवज्ञा ने 15 जुलाई सन 1947 ईस्वी को, ब्रिटिश संसद को, भारतीय स्वतंत्रता का कानून पारित करने के लिए विवश कर दिया ।
15 अगस्त का दिन विश्व इतिहास का महान दिन था । जब भारत अंग्रेजी उपनिवेश की अधीनता से मुक्त होकर एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह एक महत्वपूर्ण घटना थी ।
मगर आजादी की इस खुशी के साथ ही एक दुखद घटना भी घटी । वह घटना थी भारतका विभाजन । मैने (डॉ अम्बेडकर) देश के विभाजन का प्रस्ताव इस सुझाव के साथ रखा था कि हिंदुओं और मुसलमानों की पूरी जनसंख्या संबंधित क्षेत्रों को स्थानांतरित कर दिया जाए ताकि रक्तपात और गृह युद्ध ना हो मगर मेरे इस निष्कपट का आवाहन पर किसी ने ध्यान तक नहीं दिया ।
भारत की आजादी की खुशी पर सांप्रदायिक दंगों का कलंक लग गया । विभाजन ने दोनों पंजाब के सामाजिक ताने-बाने को पूरी तरह छिन्न-भिन्न कर दिया । भारतीय पंजाब तथा पाकिस्तानी पंजाब में वहां के आगुंतकों को दुर्भाग्यवश कोई सुरक्षा नहीं मिल पाई थी । उन्होंने हर तरह के वाहनों (बैलगाड़ी , घोड़ गाड़ी , ऊँट इत्यादि )का इस यातायात में प्रयोग किया था ,फिर भी सबसे ज्यादा पैदल यात्रियों की संख्या थी ।
आगंतुक शरणार्थी तबाही और बर्बादी की कहानियों के साथ-साथ अपने-अपने दिलों में बदले की भावना और आक्रोश लेकर आए थे । महात्मा गांधी के अहिंसा का संदेश देने पर भी भारत के बंटवारे से अभूतपूर्व रक्त पात , आगजनी , अपहरण , बलात्कार हजारों हिन्दू स्त्रियों- पुरुषों और बच्चों का जबरन इस्लामीकरण , हजारों हिन्दू सिक्ख स्त्रियों को मुसलमानों से जबरन विवाह जैसी घटनाएं हुई। इसी बंटवारे का परिणाम था , कि 7300000 हिंदुओं और सिक्खों को भारत में शरण लेनी पड़ी ।जहां यह सच है ,वही यह भी सच है ,कि इन भयावह हादसों व घटनाओं के महत्वपूर्ण तथ्यों को मुसल मानों द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए तोड़ा मरोड़ा गया ।
मेरे (डा० अम्बेडकर) मन में यह बहुत क्षोभ ( दुःख) है कि इस बंटवारे से भारतीय जनता की हजारों लाशें बिछ गई ।
भारत बंटवारे के बाद हुई हृदय विदारक घटनाओं से पूरा देश थर्रा उठा था …जख्मी हो गया था ।लाखों लोगों के घर उजड़ गये और राष्ट्रीय रक्त व आंसुओं के सागर में डुबकी लगाता रहा । असंख्य बेकसूर लोग यातनाओं का शिकार होकर हताहत हो गये , उनके घर जला दिए गए , संपत्ति लूट ली गई , स्त्रियो के साथ दुर्व्यवहार किया गया ,उन्हें अपहृत (अपहरण)कर जबरदस्ती मुसलमान बनाया गया ।
अनुसूचित वर्ग भी इसी दुर्दशा से अछूता नहीं रहा था । उन्हें जबरन मुसलमान बना दिया गया । फिर पाकिस्तानी भू स्वामियों ने उन्हें भूमिहीन श्रमिकों के रूप में कार्य करने के लिए जबरन रोक लिया । उनको (मुसलमानों) अनुसूचित जाति विशेषकर जमा दारों की जरूरत थी । उन्हें (अनूसूचित दलित वर्ग ) पाकिस्तान में-जबरन आवश्यक सेवा कर्मी घोषित कर दिया था , ताकि वे (अनूसूचित दलित वर्ग ) वहीं (पाकिस्तान) रह जाएं और मैला ( मुष्य-मल , टट्टी ) साफ करने का काम हमेशा करते रहें । हैदराबाद में मुसलमानों द्वारा उन्हें (दलित अनुसूचित वर्ग) जबरन मुसलमान बनाकर मुस्लिम आबादी में वृद्धि की गई , इत्तेहाद-उल-मुसलमीन का वहां बराबर अभियान चला । जिसके तहत अछूतों (अनुसूचित,दलितों) के घर , मुसलमानों द्वारा जला दिए गए , ताकि वह आतंकित (घबरा , डरे-सहमे) हो जाएं और राज्य में एक जिम्मेदार भारतीय सरकार बनाने के आंदोलन में शरीक (हिस्सा , भागीदारी , शामिल ) ना हो सकें , जो हैदराबाद , भारतीय संघ में शामिल करने के लिए विवश हो सकता था ।
पाकिस्तान बँटवारे के समय हजारों -लाखों निर्दोष भारतीय हिन्दू-सिक्खों का मुसलमानों द्वारा कत्लेआम देखकर यह प्रश्न प्रज्ज्वलित अग्नि की भांति मेरे (बाबा साहब) समक्ष उपस्थित हो उठा , कि विभाजन को रोकने के लिए गांधीजी ने उपवास क्यों नहीं किया ? जबकि उन्होंने बार-बार यही कहा था , कि देश का बंटवारा उनकी (महात्मा गांधी) लाश पर होगा , मगर इस बंटवारे ने हजारों-लाखों भारतीय जनता की लाशें बिंछा दी। महात्मा गांधी ने अपनी इस धारणा को गोलमेज सम्मेलन में क्यों नहीं रखा ? और दलित हिन्दुओं के पृथक निर्वाचन के मामले पर …आमरण अनशन (भूख हड़ताल) पर क्यों दृढ़ (अकड़ू) हो गए , उन्होंने अपना व्रत पूना पैक्ट पर दस्तखत कर क्यों तोड़ा ?
महात्मा गाँधी जी और उनके साथी कांग्रेस के हमेशा से एक जाति को दूसरी जाति से भिड़वाने वाली चाल चलते आ रहे है…। यही इन सब की भूमिका सदा से रही है…।
कथन (आरोप)
डा० भीम राव अम्बेडकर , टाईम्स ऑफ इंडिया…के नाम एक पत्र में…लिखा…।
28 सितम्बर , 1931 ई० , अखिल भारतीय दलित कान्फ्रेस के दौरान……..।
स्वतंत्रता आंदोलन की गति तीव्र हो चुकी थी , इसके साथ देश विभाजन की मांग भी जोर पकड़ती जा रही थी। उस दौरान हालांकि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का स्वतंत्रता आंदोलन मे जरा भी योगदान नहीं था ..किंतु फिर भी उन्होंने (डा०अम्बेडकर) भारतीय राजनीति में अपना स्थान बना लिया था । उन्हें विधि विधान के विषय में अधिकृत व्यक्ति माना जाता था..। भारतीय नेताओं की दृष्टि में उनका सम्मान था.. जबकि मुस्लिम नेता मोहम्मद अली जिन्ना की दृष्टि में उनके (डा० अम्बेडकर) कुछ करने और कहने का कोई महत्व नहीं था । जिन्ना ने मुस्लिम लीग की सहायता से अम्बेडकर के लिये जो भी किया वह राजनीतिक दृष्टि जिन्ना ने अपने लाभ के लिये (स्वार्थ हेतु)किया ।