ज्योति तिवारी : शुक्ला जी की छोटी बेटी बहुत सशक्त महिला थी तो उसने सशक्तिकरण का परिचय देते हुए 498a और गुज़ारा भत्ता का केस कर दिया। उसका पति पहले तो घबराया फिर सर पर कफ़न बाँध कर बैठ गया कि जेल चला जाऊंगा पर इसको वापस नहीं लूँगा, यहाँ तक कि नवजात बेटे का मुँह भी देखने नहीं आया। शुक्ला जी का दांव उल्टा पड़ गया,बेटी घर बैठ गयी वो भी नाती के साथ, “हाय री किस्मत !” मुझे एक दिन शुक्ला जी की बड़ी बेटी मिल गयी मैंने जले पर नमक छिड़का ( यह करने में मुझे बहुत आनंद मिलता है ) – “अरे कैसी हो भाई तुम्हारी बहन तो गजब की बोल्ड निकली क्या धूल चटाई ससुराल वालों को, लड़की हो तो ऐसी हो। ” वो खून का घूँट पीकर बोली,”अरे क्या बोल्ड स्टुपिड है वो सिर्फ कलेस करना होता है केस थोड़ी ना घर आकर बैठ गयी मेरे हिस्से पर हमेशा से कब्जा करती थी आज भी वही कर रही है। ”
“ओह हाँ अब तो तुमको मायके से क्या ही मिलेगा उसका खर्च भी शुक्ला जी ही उठा रहे होंगे या फिर गुज़ारा- भत्ता मिलता है ?” मैंने ज़रा और आग लगायी तो वो तुनककर बोली ,”क्या गुज़ारा भत्ता पढ़ी लिखी है तो कोर्ट ने सिर्फ 6000 रुपये बांधे उतने में क्या होता है, हम औरतों की लॉन्जरी भी नहीं आती उतने में, ऊपर से बच्चा भी है उसका अलग खर्च कम्बख़्त देखने भी नहीं आया अपने बच्चे को ब्लडी इनह्यूमन डेडबीट फादर हुँह !” एक सांस में बहुत सी गाली दी उसने अपने बहन के पति को। मैंने बोला,” हाँ क्यों नहीं वो पैसा दे और तुम ऐश करो तो वो अच्छा आदमी है तुम पैसे लिए बिना बच्चे का मुँह भी ना देखने दो तो वो डेडबीट बाप” मैंने सोचा थोड़ा सुना ही दूँ। वो आखें तरेरकर बोली,”रहने दीजिये आप हमारी व्यथा क्या समझेंगी जिसको सब कमियां औरतों में लगती हैं। ” मैंने बोला,”बहन बस व्यथा तो तुम्हारी ही है तुम्हारे जीजा की माँ भी तो औरत है उसकी व्यथा भी समझना कभी।” यह कह कर मैं चल दी।
उधर शुक्ला जी की समझ में नहीं आ रहा क्या करे और उनका बेटा भी चिंता में है कि अब उसका विवाह कैसे होगा,जहाँ ननद घर बैठी हो उस घर में बेटी देगा कौन। आखिर लड़कियों की भी हज़ार शर्तें होती है विवाह से पहले ….. (क्रमशः)
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